राहुल गांधी का खत क्या पार्टी की नई पटकथा लिखेगा ?

2019 के आम चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की नैतिक ज़िम्म्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अब दो टूक अंदाज़ में स्पष्ट कर दिया है कि वह पार्टी के अध्यक्ष पद पर नहीं बने रहेंगे। इसलिए कांग्रेस को नया अध्यक्ष खोजना ही पड़ेगा और फिलहाल सुशील कुमार शिंदे प्रबल दावेदार प्रतीत हो रहे हैं। राहुल गांधी ने जो अपना लम्बा ‘अलविदा पत्र’ लिखा है वह राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और उससे काफी संकेत मिलते हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के भीतर की सियासत कैसी होने जा रही है? हालाँकि इससे कांग्रेस को नया जीवनदान मिलेगा या नहीं, यह तो समय ही बतायेगा। गौरतलब है कि लोकसभा चुनावी नतीजे आने के बाद 25 मई को कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक हुई थी, जिसमें राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे की घोषणा की थी। इसके बाद सारे कांग्रेसी उन्हें मनाने के लिए तरह-तरह से प्रयास करते रहे कि वह अपने निर्णय को वापस ले लें, लेकिन राहुल गांधी ने 3 जुलाई के अपने अलविदा पत्र में ऐसी किसी भी संभावना से इंकार कर दिया। वह कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं रहेंगे। आज़ाद भारत में भी कांग्रेस के अध्यक्ष ऐसे व्यक्ति रहे हैं जिनका नेहरु-गांधी परिवार से खून का रिश्ता नहीं था, जैसे सीताराम केसरी। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ जब कांग्रेस पर नेहरु-गांधी परिवार का नियंत्रण न रहा हो, भले ही नाम के लिए अध्यक्ष कोई भी हो। साठ के दशक के अंत में कुछ कांग्रेसियों ने पार्टी पर कब्जा करने का प्रयास किया था, कांग्रेस का विभाजन भी हुआ। पुराने कांग्रेसियों ने अपने धड़े को ‘असल कांग्रेस’ बताने का भरपूर प्रयास भी किया। लेकिन वह सभी हाशिये पर चले गये और जनता ने उसी धड़े को कांग्रेस माना जिसका नेतृत्व व नियंत्रण श्रीमती इंदिरा गांधी के पास था। नब्बे के दशक में पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद कांग्रेस को नेहरु-गांधी परिवार के नियन्त्रण से बाहर निकालने का प्रयास किया, मगर असफल रहे। अब अपनी इच्छा से राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटे हैं, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता व जनता अब भी उन्हें ही कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में स्वीकार करेंगे। इसलिए कांग्रेस को नेहरु-गांधी परिवार से अलग करके नहीं देखा जा सकता, खासकर इसलिए कि आज भी जनता नेहरु-गांधी परिवार के सदस्य को देखने सुनने के लिए एकत्र हो जाती है जैसा कि प्रियंका गांधी के रोड शो से ज़ाहिर हुआ। लेकिन अन्य कांग्रेसियों को तो पहचानना भी कठिन हो जाता। इसलिए महानगरों के एयर कंडीशंड कमरों में, ज़मीनी सच्चाई से बेखबर, यह स्वयंभू विशेषज्ञ जो राय दे रहे हैं कि कांग्रेस के नये अध्यक्ष को पार्टी पुनर्गठित करने के लिए स्वतंत्रता प्रदान की जाये और गांधी परिवार उसके मामले में कोई दखल न दे तो यह पूर्णत: अव्यवहारिक है। वास्तविकता यही है कि लीडर राहुल गांधी ही रहेंगे, अध्यक्ष चाहे जो बन जाये। कड़वा होने के बावजूद सत्य यही है। लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय राजनीति में पारिवारिक या सुप्रीमो नेतृत्व वाली पार्टियों का टॉप लीडर अपनी जवाबदेही ज़िम्मेदारी को स्वीकार करते हुए अपने पद से ससम्मान इस्तीफा दे दे। राहुल गांधी ने यही दुर्लभ काम करके दिखाया है। साथ ही उन्होंने बड़ा अक्लमंदी भरा सुझाव दिया है कि पार्टी के भविष्य के विकास के लिए जवाबदेही महत्वपूर्ण है।दरअसल, कांग्रेस को पुन: मजबूती प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि अनेक लोगों को जवाबदेह बनाया जाये। खासकर जो कांग्रेस शासित राज्यों में उच्च पद संभाले हुए हैं और उनका लक्ष्य अपने पुत्रों को सांसद, विधायक या मंत्री बनाना है न कि पार्टी को मज़बूत करना। राहुल गांधी की यह शिकायत बेजा प्रतीत होती है। ‘मैं लड़ता रहा क्योंकि मैं भारत से प्रेम करता हूं। मैं लड़ा उन आदर्शों की रक्षा के लिए जिनपर भारत का निर्माण हुआ है और अक्सर मैं पूर्णत: अकेला खड़ा रहा और मुझे इस बात पर बहुत गर्व है। राहुल गांधी के इस्तीफे का अर्थ है कि पार्टी के अन्य पदाधिकारियों के भी इस्तीफे होंगे और नई कांग्रेस कार्यकारिणी समिति का गठन होगा। दूसरे शब्दों में हम कामराज योजना-2 देखने जा रहे हैं। यह सही भी रहेगा। अनुमान यह है कि पीसीसी व एआईसीसी को भंग नहीं किया जायेगा और यह नई सीडब्लूसी का गठन होने पर उसका अनुमोदन कर देंगे। राहुल गांधी ने अपना उत्तराधिकारी नामांकित करने से इंकार कर दिया है इसलिए पार्टी का महासचिव (संगठन) सीडब्लूसी की बैठक बुलायेगा, राहुल गांधी का इस्तीफा स्वीकार किया जायेगा और एआईसीसी संविधान के अनुसार नये नेता का चयन किया जायेगा। राहुल गांधी ने सुझाव दिया है कि एक समूह को नया अध्यक्ष तलाशने की ज़िम्मेदारी दी जाये। लगता है कि ऐसा ही होगा। राहुल गांधी ने अपने पत्र में एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह कही है, ‘भारत में यह आदत है कि शक्तिशाली लोग सत्ता से चिपके रहते हैं, कोई सत्ता की कुर्बानी नहीं देता। लेकिन हम अपने प्रतिद्वंदियों को उस समय तक पराजित नहीं कर सकते जब तक सत्ता की कुर्बानी देने की इच्छा न हो और विचारधारा का गहरा युद्ध न लड़ें।’यह इशारा किस तरफ  है, किसी से छुपा हुआ नहीं है। इन लोगों के विरुद्ध कार्यवाही होगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता, लेकिन अगर कांग्रेस को पुन: मजबूत होना है तो राहुल गांधी, सोनिया गांधी (संसदीय दल की प्रमुख) और प्रियंका गांधी (महासचिव) की भविष्य की भूमिकाएं स्पष्ट परिभाषित करनी होंगी। ऐसा न करना कांग्रेस के लिए घातक हो सकता है। ध्यान रहे कि जब पीवी नरसिम्हा राव व सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो उन्हें अपने-अपने कार्यकाल के दौरान निरंतर उन नेताओं के असंतोष का सामना करना पड़ता था जो गांधी परिवार की वफादारी का दम भरते थे। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि संभावित नये पार्टी अध्यक्ष के लिए जो नाम सामने आ रहे हैं, वह गांधी परिवार के वफादारों के ही हैं। नया प्रमुख युवा व सशक्त होना चाहिए जो परिवार पर पार्टी को प्राथमिकता दे और आंतरिक लोकतंत्र को महत्व दे ताकि कांग्रेस 2024 के आम चुनाव में पूर्ण तैयारी से उतरे। 

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