पुस्तकें तथा धन

प्राचीन समय की बात है कि एक रियासत का राजा दूर-दूर से बड़े-बड़े विद्वानों को आमंत्रित करके एक सभा का आयोजन करवाया करता था। उस सभा में विद्वान अच्छाई, बुराई, गुणों, अवगुणों, बुरे-भले तथा अन्य भिन्न-भिन्न विषयों पर अपने-अपने विचार प्रस्तुत किया करते थे। उन विद्वानों के विचार सुनने के लिए काफी मात्रा में लोग इकट्ठे हुआ करते थे। राजा स्वयं उस सभा में पूरा समय बैठक कर विद्वानों के विचार सुना करता था। जिस विद्वान के विचार उसको प्रभावित करते थे उसे विशिष्ट सम्मान प्रदान किया जाता था। उस रियासत के कई विद्वान भी उस सभा में अपने विचार प्रकट किया करते थे। उस रिसायत में बुद्ध देव नाम का एक विद्वान भी रहता था। वह ज्ञान का भण्डार था, क्योकि वह बहुत सी पुस्तकें पढ़ता था। उसके पास अधिक धन नहीं था, क्योंकि उसका अधिकतर समय पुस्तकें पढ़ने में ही लग जाता था। उसके परिवार का जीवन निर्वाह अच्छे ढंग से नहीं होता था। एक दिन उसकी पत्नी ने उसे कहा—‘श्री मान जी, आप हर समय पुस्तकें पढ़ने में समय व्यतीत करते रहते हो। आपके बहुत से साथी अनेक काम-धन्धे करके धन कमाते हैं। उनके परिवारों का जीवन-निर्वाह बहुत अच्छे ढंग से होता है। उनके पास धन की भी कोई कमी नहीं। हमारे पास न धन है और न ही हमारे परिवार का निर्वाह अच्छे ढंग से होता है।  आप भी कोई काम धंधा आरम्भ करो। बच्चे बड़े हो रहे हैं। परिवार का खर्च पहले से बढ़ जायेगा। बुद्ध देव ने अपनी पत्नी को कहा—‘श्रीमती जी, पुस्तकों के ज्ञान से कोई बड़ा धन नहीं। तुम चिन्ता मत करो। एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जिस दिन मेरे ज्ञान की परीक्षा होगी। हमारे पास अन्य लोगों से अधिक धन होगा। परन्तु उस धन में अलग प्रकार का संतोष तथा सम्मान होगा। उसकी पत्नी यद्यपि उसके साथ सहमत नहीं थी परन्तु वह उसके समक्ष कुछ बोल न सकी। वह समय आने की प्रतीक्षा करने लगी। समय  व्यतीत होने लगा। उस रियासत के राजा ने अनेक विद्वानों को आमंत्रित करके सभा बुलाने का निर्णय लिया। उन विद्वानों ने सब्र, संतोष, ईमानदारी तथा त्याग आदि विषयों पर अपने-अपने विचार अभिव्यक्त करने थे। सभा में प्रत्येक विद्वान ने अपने-अपने विचारों की अभिव्यक्ति की। बुद्धदेव ने अपने विचार-प्रकट करते हुए कहा—‘सभा में उपस्थित प्रबुद्ध नागरिकों, सब्र, संतोष तथा ईमानदारी के गुण मानव में तभी उत्पन्न होते हैं, जब हमारे भीतर ज्ञान का धन होगा। ज्ञान ही त्याग पैदा करता है। ज्ञान पुस्तकें पढ़ने से प्राप्त होता है। जिस देश के लोगों के पास पुस्तकों का ज्ञान होता है, उनमें ये अमूल्य गुण अपने आप उत्पन्न हो जाते हैं। उनके पास आवश्यकता अनुसार धन भी अपने आप पैदा हो जाता है।  बुद्धदेव के विचारों से सभा में उपस्थित सभी लोग बहुत प्रभावित हुए। रियासत के राजा ने उसे बुला कर कहा—‘बुद्ध देव जी, आज से आप हमारी रियासत के प्रबुद्ध तथा सम्मानित विद्वान हो। आप भविष्य में रियासत के शाही महल में अपने परिवार के साथ रहोगे। रियासत को आपके ज्ञान की आवश्यकता है। राजा ने उसे सम्मान के रूप में बहुत ही सोने की मोहरें प्रदान की, उसकी पत्नी को पुस्तकों के ज्ञान रूपी धन का अर्थ समझ आ गया।

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