नई सुबह

उसने अहिस्ता से अपनी जेब में हाथ डाला, ‘ठीक है’ चेहरे पर संतुष्टि के भाव ला कर कहा और एक पुरानी फिल्म का गाना गुनगुनाने लगा।
अहिस्ता से उसने अपनी जेब से पांच सौ के नोटों की गड्डी निकाली। उसकी नज़र सीधी महात्मा गांधी की शांत तस्वीर पर पड़ी जो नोट पर बनी हुई थी। उसने अपनी ही धुन में उसे नमस्कार किया। महात्मा जी उसे कुछ गुस्से में लगे। उसने फिर महात्मा जी की तस्वीर की ओर देखा वो वाक्य ही गुस्से में थे। वह बहुत ही बेचारगी से महात्मा जी की तस्वीर से नज़रें चुराने लगा किन्तु वह महात्मा जी के गुस्से से बच न सका। उसने देखा महात्मा जी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उसे लगा जैसे महात्मा जी अभी उसके दोनों कान पकड़ लेंगे। उसे अपनी मां का चेहरा याद आ गया जो उसे अभी-अभी गुस्सा होकर हटी थी। ‘मैं आपका बहुत भगत हूं जी’ उसने महात्मा गांधी जी के गुस्से से बचने के लिए कहा। ‘मेरा भगत है या फिर नोटों का बंधु’ महात्मा जी ने उसे कहा। ‘महात्मा जी आपका’।‘भगत बंधु, आदमी बन, तुम्हारे जैसे नोटों के भगतों ने संपूर्ण देश का बेड़ा गर्क कर रखा है। आप लोग तो हमारे सोने जैसे देश को बेच-बेच कर खा रहे हो, क्या होगा आने वाली नस्लों का? क्या होगा यहां बसते ईमानदार लोगों का? आप तो उन्हें फिर से गुलाम बना देंगे, शहीदों की शहादत को क्यूं मिट्टी में मिला रहे हैं, आप लोग।’ वह भाव-विभोर होकर महात्मा जी की ओर देखने लगा। ‘मैंने तो थोड़ी सी रिश्वत ली थी महात्मा जी, आपने तो मेरा हाल बुरा कर दिया, लेकिन जो बेईमान नेता देश को लुटेरों की तरह लूट रहे हैं उनका क्या, जो भोली-भाली जनता की मेहनत की कमाई को दोनों हाथों से लूट रहे हैं और अपने भरे हुए पेट में डाले जा रहे हैं, उनको आप कुछ नहीं कहते हो’ उसने मन ही मन महात्मा जी को कहा। ‘वो भगवान को भूल चुके हैं, सब को यह पता है कि साथ कुछ भी नहीं जायेगा, फिर भी वह लोग अंधे होकर भोली—भाली जनता का पैसा लूट रहे हैं, भगवान उनको सद्बुद्धि दे, नहीं तो परमात्मा स्वरूप जनता एक दिन उनको खुद ही सबक सिखा देगी, आप लो एक-दूसरे की ओर देख-देख कर बिगड़ रहे हैं। संभलो और संभालों और आपको नहीं तो यह देश फिर से गुलाम हो जायेगा और तुम लोग फिर से अपने ही देश में गुलामों जैसा जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो जाओगे। आप के बच्चे आपको इसके लिए कभी माफ नहीं करेंगे। अपने-आप को सुधार लो, सुधरने और अच्छेपन की शुरुआत अपने से करो, किसी दूसरे की ओर मत देखो, क्या मालूम आप की ओर देख कर दूसरा भी सुधर जाए। हम अक्सर कहते हैं कि सिस्टम खराब है, यह नहीं सुधर सकता लेकिन कभी हमने यह सोचा है कि हम भी तो इसी सिस्टम का ही हिस्सा हैं। हम कितने बिगड़े हुए हैं और हमें कितने सुधरने की ज़रूरत है, अगर हम सुधर जाएं तो क्या सिस्टम में सुधार नहीं हो सकता। जाओ और जाकर परिवर्तन की शुरुआत अपने आप से करो। यह सब कह महात्मा गांधी फिर से अपनी तस्वीर में जा विराजे, उसने सकून की सांस ली, किन्तु उसे अभी भी डर लग रहा था कि कहीं फिर से महात्मा जी आकर उसे डांटने न लग जाएं, उसे अभी कुछ-कुछ होश आने लगा था, उसके ऊपर गांधी जी की बातों का काफी असर होने लगा था, अब उसको सब कुछ साफ-साफ नज़र आने लगा था। मां की तस्वीर भी उसे अब साफ-साफ नज़र आ रही थी, उसने मन ही मन मां और उसके बगल में लगी शहीद भगत सिंह की तस्वीर को नमन किया और उनसे माफी मांग बिना कुछ सोच-विचारे घर से निकल गया और सारे के सारे नोट अनाथालय के दान-पत्र में डाल आया। अब तक मौसम साफ हो चुका था। सितारे अपने-अपने घरों को जा चुके थे। उसने फिर से उगते सूर्य की निर्मल किरणों के सिरों को खोजना शुरू कर दिया जिसे वह बचपन से खोजता आया था, उसे लगा जैसे आज सूर्य उसके लिए एक नई सुबह लेकर आया है। 

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