मृत्यु का सत्य

एक औरत रोते-बिलखते हुए भगवान बुद्ध के पास आई और कहने लगी, ‘महाराज मेरे एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई है। आप उसे जीवित कर दीजिए अन्यथा मेरा जीवन निरर्थक और घोर अंधकारमय हो जायेगा।’ बुद्ध ने कहा कि ‘माई जो इस संसार में आया है, उसे एक न एक दिन जाना ही होगा। इस कटु सत्य को स्वीकार करना ज़रूरी है।’ औरत ने कहा, ‘मैं कुछ नहीं जानती। मैं बस इतना जानती हूं कि आप उसे जीवित कर सकते हैं और आपको उसे जीवित करना ही होगा।’ ‘जब तुम इतना आग्रह कर रही हो तो मैं तुम्हारे मृत पुत्र को अवश्य जीवित करूंगा लेकिन तुम्हें एक काम करना होगा।’ भगवान बुद्ध ने औरत से कहा। ‘आप जो कहोगे मैं वही करूंगी। बस आप किसी भी तरह मेरे पुत्र  को जीवित कर दीजिए।’, औरत बोली। भगवान बुद्ध ने उससे कहा कि ‘तुम बस इतना करो कि किसी घर से एक मुट्ठी सरसों के बीज मांग लाओ, लेकिन ध्यान रहे कि केवल उसी घर से सरसों के बीज मांग कर लाने हैं, जिस घर में आज तक किसी की मृत्यु न हुई हो।’ औरत खुशी-खुशी एक मुट्ठी सरसों के बीज मागंने के लिए निकल पड़ी। वह दिन भर घूमती रही, लेकिन उसे कोई ऐसा घर नहीं मिला जहां आज तक किसी की भी मृत्यु न हुई हो। दिन-भर दौड़-धूप करने के बाद शाम को थकी-हारी वह औरत चुपचाप बुद्ध के पास आकर बैठ गई। बुद्ध ने कहा कि माई लाओ सरसों मुझे दो ताकि मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर सकूं। औरत शांत और निरुत्तर थी। बुद्ध ने समझाया, ‘जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। इस कटु सत्य को स्वीकार करना ही श्रेयस्कर है। मृत्यु को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इस तथ्य को समझ कर ही हम दुख से ऊपर उठ सकते हैं। वास्तव में हम जिन परिस्थितियों को नहीं बदल सकते, उनके प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाकर उन्हें स्वीकार कर लेना ही उनका उपचार है।

—सीताराम गुप्ता