नशों के काले दौर में उम्मीद की किरन पैदा करने का प्रयास

संगरूर, 21 जुलाई (सत्यम्): इस समय पंजाब कई संकट में से गुजर रहा है। नशाखोरी, बेरोज़गारी तथा सामाजिक असुरक्षा के कारण नैतिकता, सदाचार, उच्च आदर्श, सहनशीलता तथा सराफत से वंचित पंजाब इस तरह लग रहा है जैसे कोई गुब्बारा अनगिनत सूईयों की नोक पर खड़ा हो। स्मैक, हैरोइन तथा चिट्टे जैसे महंगे नशे ने पंजाब की जवानी निगल ली, घरों की बरकत छीन ली। खौफ की दीवारों, टूटते हुए घर, बिगड़ रहे बच्चे, नपुंसक नौजवान, अपराध की ओर बढ़ते कदम, एड़ज में इजाफा तथा घर घर मौत के फरमान बांटते नशों के व्यापारियों ने घर की बरकत छीन ली तथा पंजाब के नौजवान मानसिक तथा शरीरिक तौर पर खोखले हो चुके हैं। गैर सरकारी सर्वेक्षण अनुसार पंजाब में 76.47 प्रतिशत शराब, 40.14 प्रतिशत अफीम, 25.39 प्रतिशत तम्बाकु, 21.45 प्रतिशत भुक्की, 8.65 प्रतिशत नशे के टीके, 20.41 प्रतिशत ड्रगज़ तथा 4.65 प्रतिशत चर्स के प्रयोग कारण पिछले दशक में नशेड़ियों की संख्या में अंदाजन 213 प्रतिशत इजाफा हुआ है। ऐसी आंधी में रोशनी की दीया जलाकर सीमित से साधनों से रैड क्रास नशा मुक्ति केन्द्र संगरूर पंजाब को नशा मुक्त करने के लिए अहम प्रयास कर रहा है। निष्काम सेवा तथा सीमित साधनों के सहारे पंजाब की जवानी को अंधेरे से रोशनी के सफर के लिए लगातरा प्रयास कर रहा समूह स्टाफ प्रशंसा का पात्र है। इस केन्द्र की अगुवाई पंजाब में विद्वान लेखक, उच्च विचारों के धारनी तथा असली अर्थों में समाज सेवक मोहन शर्मा कर रहे हैं। उनका कहना है कि नशेड़ी जिंदगी का खलनायक नहीं, पीड़ित है तथा नशा करने वाले का स्थान थाना या जेल नहीं बल्कि इनका नशों की दलदल में धंसने का मूल कारण तलाश कर एक पीड़ित की तरह व्यवहार करना चाहिए। सिर्फ दवाओं का डमरू बजाने या मारपीट से नशेड़ी ने ठीक नहीं हेना, बल्कि वह गुमराह होकर और भी भटक जाएंगे। 2005 से खुले इस नशा मुक्ति केन्द्र में अब तक अंदाजन 10 हजार से ऊपर मरीज इलाज करवा चुके हैं, जिनमें 2762 नशेड़ी मरीजों ने दाखिल होकर तथा 1813 नशेड़ी मरीजों ने ओ.पी.डी. तहत ईलाज करवाया है। शर्मा ने भरे मन से प्रकटावा किया कि कई नशेड़ी मरीजों को ठीक कर भेजा जाता है, परंतु बाहरी माहौल् में नशे की आसानी से प्राप्ति तथा संगत कारण वह दोबारा नशों की दलदल में धंस जाते हैं। ऐसे भटके हुए नौजवानों को दोबारा मुख्य धारा में लाने के लिए फिर से सिरतोड़ प्रयास किए जाते हैं। 15 बैड के इस नशा मुक्ति केन्द्र को केवल मनिस्टरी ऑफ सोशल जस्टिस एंड इम्पावरमैंट (भारत सरकार) द्वारा आर्थिक सहायता दी जाती है। ज़िलाधीश संगरूर इस संस्था के चेयरमैन भी हैं तथा समय पर नशेड़ी मरीजों की हौंसला अफजाई के लिए अक्सर आते रहते हैं। इस नशा मुक्ति केन्द्र की अहम बात यह भी है कि नशों कारण बिखरे हुए परिवारों को जोड़ने में भी यह केन्द्र अहम भूमिका निभा रहा है। कुल 13 कर्मचारियों में प्राजैक्ट डायरैक्टर, मैडीकल अधिकारी, साईकैटरिस्ट, कौंसलर, स्टाफ नर्स, वार्ड बुआये आदि अपनी सेवाओं के प्रति समर्पित हैं।