10वीं की परीक्षा में ग्रेस अंक देकर पास प्रतिशत बढ़ाने की पुरानी परम्परा अभी भी जारी

एस.ए.एस. नगर, 22 जुलाई (तरविन्द्र सिंह बैनीपाल): पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड मैनेजमैंट द्वारा 10वीं श्रेणी मार्च 2019 की परीक्षा का परिणाम घोषित के अवसर पर बिना ग्रेस अंक (माडरेशन) के 85.56 प्रतिशत पास परिणाम घोषित करने सम्बन्धी किए दावे आर.टी.आई के तहत मांगी सूचना सार्वजनिक होने से गलत साबित हुए उधर शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा नीतियों में किए स्थानान्तरण के कारण परिणाम ऊपर जाने के किए दावे पर भी प्रश्न उठने शुरू हो गए हैं। यदि 10वीं श्रेणी की वार्षिक परीक्षाओं के विगत 5 वर्षों के वार्षिक परीक्षा के परिणामों पर नज़र दौड़ाएं तो केवल वर्ष 2017 को छोड़कर शेष 4 वर्ष परीक्षार्थियों को ग्रेस अंक दिए गए हैं। इस सम्बन्धी चंडीगढ़ के प्रसिद्ध वकील एच.सी. अरोड़ा द्वारा आर.टी.आई. एक्ट के तहत मांगी सूचना के आधार पर पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की सहायक पब्लिक रिलेशन अफसर द्वारा दी जानकारी के पश्चात यह खुलासा हुआ कि 10वीं श्रेणी मार्च 2018 की वार्षिक परीक्षा का वास्तविक परिणाम (बिना माडरेशन) 46.29 प्रतिशत था, जोकि माडरेशन (ग्रेस अंक देकर) 62.1 प्रतिशत कर दिया गया। इसी तरह मार्च-2019 की वार्षिक परीक्षा का वास्तविक परिणाम (बिना माडरेशन) 76.49 प्रतिशत, जोकि माडरेशन से 85.56 प्रतिशत कर दिया गया। वर्णनीय है कि 10वीं मार्च-2015 की वार्षिक परीक्षा का वास्तविक परिणाम 48.22 प्रतिशत था, जिसको माडरेशन से 65.77 प्रतिशत किया गया था। इसी तरह मार्च-2016 की वार्षिक परीक्षा का वास्तविक परिणाम 53.76 प्रतिशत था, जिसको माडरेशन से 72.25 प्रतिशत किया गया था, मार्च-2017 की वार्षिक परीक्षा का वास्तविक परिणाम (बिना माडरेशन) 57.50 ही घोषित किया गया था और इस समय के चेयरमैन बलबीर सिंह ढोल ने कोई ग्रेस अंक नहीं दिया था। वर्णनीय है कि 10वीं श्रेणी मार्च-2019 की परीक्षा का परिणाम घोषित होने के पश्चात बोर्ड अधिकारियों द्वारा केवल क्रैडिट कैरी अंक अर्थात गलत या सिलेबस से बाहर आए प्रश्नों के अंक ही देने का दावा किया था। इस जानकारी के सार्वजनिक होने से यह साबित हो गया है कि शिक्षा बोर्ड अधिकारियों के दावों के विपरीत 10वीं की परीक्षा में ग्रेस अंकों से पास प्रतिशत बढ़ाकर बल्ले-बल्ले करवाने की अपनी पुरानी परम्परा अभी भी जारी है। इस सम्बन्धी पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन मनोहर कांत कलोहीया का कहना है कि परिणाम सुधार कार्य बोर्ड के मौजूदा विनियमों के अनुसार ही किया गया है, जिसके अनुरूप समाज के कुछ विशेष वर्गों के विद्यार्थियों