चंद्रयान-2 का सफ ल प्रक्षेपण : इसरो ने फि र रचा इतिहास

इतिहास में बहुत कम ऐसे मौके होते हैं, जब दो, चार, दस नहीं, हजारों नहीं, लाखों नहीं बल्कि करोड़ाें करोड़ लोग दिल थामकर किसी एक घड़ी का इंतजार करते हैं। 22 जुलाई 2019 की दोपहर 2 बजकर 43 मिनट पर कुछ ऐसा ही मौका था। हजारों लोग भारत के अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी मून मिशन चंद्रयान-2 का लाइव लांच देखने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराकर इसरो की गैलरी में मौजूद थे तो करोड़ों लोगों की नजरें बिना कोई रजिस्ट्रेशन कराये टेलीविजन के पर्दे पर गड़ी थीं। लोग बिना एक पलक झपकाए इस ऐतिहासिक घड़ी के राजदार होना चाहते थे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत जब 2 बजकर 43 मिनट पर श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण भारत के अब तक के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी एमके- 3 से हुआ तो कुछ पल के लिए मानो दिल ने धड़कना ही बंद कर दिया। करीब एक मिनट के बाद जब यह तय हो गया कि रॉकेट की गति और हालात सामान्य हैं, इसके बाद इसरो के सैकड़ों वैज्ञानिकों ने ही नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों ने भी बहुत बड़ी और गहरी राहत की सांस ली।यह स्वभाविक भी था। बड़ी उपलब्धियां भी उतना ही नर्वस करती हैं, जितना नर्वस बड़ी असफ लताएं करती हैं। भारत ने आज बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की थी इसलिए इस किस्म का नर्वसनेस स्वभाविक था। अब के पहले चांद पर सिर्फ  अमरीका, रूस और चीन ही यान उतार पाये हैं। भारत की यह उपलब्धि इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि चंद्रयान-2 चंद्रमा के उस दक्षिण ध्रुव में उतरेगा, जहां आजतक कोई दूसरा यान नहीं उतर सका। प्रक्षेपण के ठीक 17 मिनट बाद जब जीएसएलवी एमके-3 रॉकेट ने चंद्रयान-2 को सफ लतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा दिया तो तालियों की गड़गड़ाहट ने पूरे भारत को खुशी में डुबो दिया। 
पृथ्वी से चांद की दूरी लगभग 3,84,000 किलोमीटर दूर है इसलिए चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम चंद्रमा पर 48वें दिन उतरता जैसा कि 15 जुलाई 2019 के प्रक्षेपण कार्यक्रम के मुताबिक तय था। लेकिन चूंकि प्रक्षेपण की तारीख अब 15 जुलाई की जगह बदलकर 22 जुलाई हो गई है इसलिए अब इसे नये हिसाब से चांद पर 7 सितम्बर 2019 की जगह 14 सितम्बर को पहुंचना था। लेकिन 21 सितंबर के बाद चांद में सूरज की रोशनी कम हो जाती है और इस लैंडर का जीवन महज 15 दिन है, इसलिए इसरो के वैज्ञानिकों ने एक और कमाल यह किया है कि चंद्रयान-2 को 7 दिन देरी से प्रक्षेपण के बाद भी चांद पर 7 सितंबर को ही उतार देंगे। 
इसके लिए वैज्ञानिक चंद्रयान-2 के पृथ्वी की कक्षा में 5 के बजाय 4 चक्कर ही लगवाएंगे ताकि चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर अपने शेड्यूल के हिसाब से ही काम कर सकें। यह तकनीक में मजबूत पकड़ का नतीजा है। हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष तकनीक के मामले में अब अमरीका और रूस के वैज्ञानिकों को न सिर्फ  बराबरी की टक्कर दे रहे हैं, बल्कि कुछ मामलों में तो वे उनसे भी आगे निकल चुके हैं। मसलन चंद्रयान-2 को चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर उतारने का उनका साहस दुनिया के दूसरे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों से बड़ा है। क्योंकि माना जाता है कि यहां की परिस्थितियां बड़ी जटिल और तूफानी हैं। लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों को पूर्ण आत्मविश्वास है कि वे बड़ी सहजता से चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिणी धु्रव में उतार सकेंगे। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चांद के इसी धु्रव में जल के जीवाश्म मिलने की संभावना है। 
चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के बाद इसरो के वैज्ञानिकों के चेहरे पर जो रौनक है, वह इस बात की सबूत है कि हमें सफ लता उम्मीद से भी बेहतर मिल चुकी है। इसरो प्रमुख के. सिवन कहते हैं, ‘मिशन पूरी तरह से कामयाब साबित होगा और चंद्रमा पर हम नयी चीजों की खोज का इतिहास रचेंगे।’ कहते हैं बड़ी उपलब्धियां तब और बड़ी जो जाती हैं जब उन्हें उतना ही महत्व दिया जाता है। अब के पहले किसी ने कल्पना भी शायद न की हो कि रॉकेट प्रक्षेपण को देखने के लिए देश के हजारों लोग प्रक्षेपण केंद्र में उमड़ेंगे। मगर चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण का मौका कुछ ऐसा ही बन गया जब हजारों लोग श्रीहरिकोटा पहुंच गये। यह पहला मौका था, जब इसरो ने इस प्रक्षेपण को देखने के लिए आम जनता को भी अनुमति दी थी। इसके लिए इसरो ने 10 हजार लोगों की क्षमता वाली एक गैलरी बनायी थी, जिसका रजिस्ट्रेशन दो दिन में ही पूरा हो गया था। बीबीसी के मुताबिक मार्क ने सीएनएन से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर बात करते हुए कहा, ‘भारत ने अब फैसले लेने शुरु कर दिये हैं। वह अंतरिक्ष की एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है। क्योंकि भारत को यह एहसास हो गया है कि अंतरिक्ष के मामले में ऐतिहासिक भूमिका निभाने का उसका वक्त आ गया है।  भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी ताकत यूं तो पिछली सदी में ही साबित कर दी थी, जब एक के बाद एक इसरो के खाते में तमाम बड़े सैटेलाइट सफ लतापूर्वक प्रक्षेपित करने का श्रेय आया था। 
लेकिन जब भारत ने साल 2008 में चंद्रयान-1 भेजा और इसने चांद पर पानी की खोज की तो पूरी दुनिया ने विशेषकर नासा ने इसरो का लोहा माना और तब से इसरो का सम्मान दुनिया में वैसा ही है जैसा नासा का है। यह स्वभाविक भी है। भारत में न केवल बहुत कम समय में अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी कामयाबियां हासिल की हैं बल्कि ये कामयाबियां बहुत सस्ते में हासिल कर ली गई हैं। भारत के तमाम अभियान हॉलीवुड की फि ल्मों के बजट से भी कम में पूरे हुए हैं। चंद्रयान-2 की भी लागत महज 14.5 करोड़ डॉलर है जबकि अमरीका के अपोलो प्रोग्राम की लागत 25 अरब डॉलर के आसपास है। इससे पता चलता है कि हमारे वैज्ञानिक न सिर्फ  बहुत काबिल हैं बल्कि बहुत किफायती भी हैं। 

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