ट्रम्प ने छेड़ा एक और विवाद

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की तीन दिवसीय अमरीका यात्रा को लेकर अनेक पक्षों से व्यापक चर्चा हुई है। अमरीका के साथ पाकिस्तान के संबंध काफी लम्बे समय से बिगड़े हुए हैं। पाकिस्तान में पाले जा रहे आतंकवादी गुटों को खत्म करने के लिए अमरीका उस पर निरन्तर दबाव डालता आ रहा है, परन्तु जब अमरीका अपनी इस बात में सफल न हुआ तो उसने अरबों-खरबों रुपये की पाकिस्तान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता पर रोक लगा दी थी। अफगानिस्तान के मामले को लेकर भी दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण बने रहे हैं। 
दूसरी ओर पाकिस्तान इस समय आर्थिक मंदी की जकड़ में आया हुआ है। अमरीका की ओर से आर्थिक मदद रोके जाने के बाद उसने चीन एवं कुछ अरब देशों से सहायता मांगी थी, जिसके बाद इन देशों से कुछ मदद उसे मिली भी है, परन्तु आतंकवादी संगठनों की सहायता करने के कारण वह इस समय अंतर्राष्ट्रीय भाईचारे में अलग-थलग होकर रह गया है। चाहे पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा है कि वे कटोरा लेकर अमरीका से मदद मांगने के लिए नहीं आये, परन्तु मौजूदा हालात में इमरान खान की यह यात्रा ऐसा ही प्रभाव देती है।  उन्हें इस बात का भी एहसास हो गया है कि पाकिस्तान की सरकारों की ओर से चिरकाल से चलाई जा रही नीतियों के कारण देश में स्थिरता नहीं आ सकी तथा बड़े ़खतरनाक मोड़ पर यह देश आ पहुंचा है। इसीलिए पाकिस्तान इस स्थिति में से निकलने के लिए हाथ-पांव मार रहा है, परन्तु पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का अमरीका में स्वागत न किया जाना यह दर्शाता है कि वह बहुत ही बुरे हालात में से गुज़र रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने बड़बोलेपन को लेकर बहुत मशहूर हैं। वहां के एक बड़े समाचार पत्र ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने यह भी लिखा है कि डोनाल्ड ट्रम्प झूठ बोलने के माहिर हैं। ऐसा ही बड़बोलापन उन्होंने इमरान खान की यात्रा के दौरान कश्मीर के मामले पर दिखाया है। पाकिस्तान सदैव यह चाहता रहा है कि कोई भी बड़ा-छोटा देश कश्मीर के मामले पर भारत एवं पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करे। ऐसा ही उसने ट्रम्प के सामने अमरीका में भी कहा है। इमरान खान के अनुसार ‘अमरीका सबसे शक्तिशाली देश है। भारतीय उप-महाद्वीप में शांति स्थापित करने में वह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। मेरा मानना है कि अमरीका भारत एवं पाकिस्तान को निकट ला सकता है। हमने इस बात के लिए हर सम्भव कोशिश की है, परन्तु दुर्भाग्य से इस संदर्भ में प्रगति की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दी है। राष्ट्रपति ट्रम्प इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं। ’ इसके जवाब में राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह कहा ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुझे कश्मीर के मामले पर मध्यस्थता करने के लिए पूछा था। यदि मैं लम्बे समय से चले आ रहे इस विवाद में कोई मदद कर सका, तो मुझे इस पर प्रसन्नता होगी।’ ट्रम्प के इस बयान ने भारत को बहुत अजीब स्थिति में ला खड़ा किया है। इसके बाद भारत के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने यह कहा कि भारत को कभी भी इस मामले पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं रही। भारत सदैव इस मामले पर द्विपक्षीय बातचीत का समर्थक रहा है। इसलिए उसकी पहली शर्त यह है कि पाकिस्तान आतंकवाद को खत्म करे तथा दोनों की बातचीत का आधार शिमला समझौता अथवा लाहौर घोषणा-पत्र हो। इस संबंध में भारत के विपक्षी दलों की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया आना प्राकृतिक बात है। चाहे भारत के विदेश मंत्री ने संसद में भी अपने इसी पक्ष को एक बार फिर दोहराया है, परन्तु अमरीकी राष्ट्रपति का ऐसा बयान दोनों देशों के बीच कटुता पैदा कर सकता है। आगामी समय में नरेन्द्र मोदी अमरीका की यात्रा पर जा रहे हैं, परन्तु उससे पूर्व उन्हें स्वयं इस विवाद के संबंध में स्पष्टीकरण अवश्य देना चाहिए ताकि कश्मीर के मामले को लेकर भारत की स्थिति पूर्णतया स्पष्ट हो सके। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द