निराशा के आलम में है कांग्रेस

लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को हुई नमोशीजनक हार के बाद इसकी ज़िम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस वर्किंग कमेटी को अपने स्थान पर कोई नया अध्यक्ष चुनने के लिए कहा था। परन्तु कांग्रेस वर्किंग कमेटी एक महीने से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी राहुल गांधी के स्थान पर अपना नया अध्यक्ष चुनने में बुरी तरह असफल रही है। कांग्रेस में पैदा हुई इस स्थिति के कारण अलग-अलग राज्यों में पार्टी के नेताओं तथा समर्थकों में भारी निराशा पाई जा रही है। इस कारण कई राज्यों में कांग्रेस के नेता और यहां तक कि चुने हुए विधायक भी भाजपा तथा तेलंगाना राष्ट्रीय समिति आदि पार्टियों में शामिल हो गए हैं। इसी कारण पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में भी गहन चिंता पाई जा रही है। एक के बाद एक नेताओं के इस संबंधी बयान आ रहे हैं कि पार्टी को अपना नया अध्यक्ष चुनकर पैदा हुई अनिश्चितता को खत्म करना चाहिए। कुछ समय पूर्व बुजुर्ग नेता करण सिंह ने ऐसी चिंता जाहिर की थी। अब इस प्रसंग में ही कांग्रेस के लोकसभा सदस्य शशि थरूर का बयान आया है, उन्होंने भी कहा है कि नेतृत्व को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता पार्टी को बहुत नुक्सान पहुंचा रही है। इसलिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी को इस संबंध में फैसला करना चाहिए। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की इस राय का समर्थन किया है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष युवा पीढ़ी से बनाया जाना चाहिए। अप्रत्यक्ष ढंग से उन्होंने यह भी कहा है कि प्रियंका गांधी इसके लिए योग्य हैं। फिर भी इस संबंध में अंतिम फैसला गांधी परिवार ने ही लेना है। उन्होंने भी सुझाव दिया है कि बेहतर होगा कि पार्टी के नेता अलग-अलग स्तर पर लोकतांत्रिक ढंग से ही चुने जाएं। नि:संदेह कांग्रेस की इस हालत संबंधी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जो चिंता प्रकट की है, वह सही है। कांग्रेस देश की लगभग 125 वर्ष पुरानी पार्टी है। देश की आज़ादी की लड़ाई में भी इसका बड़ा योगदान रहा है। देश को एक लोकतांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष संविधान देने में भी इसका बड़ा योगदान है। आज़ादी के बाद कई दशकों तक केन्द्र से लेकर राज्यों तक यह प्रशासन चलाती रही है, परन्तु आज यह पार्टी जिस तरह की स्थितियों से गुजर रही है, वह हैरानीजनक है। राजनीतिक पार्टियों में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। किसी समय वह सत्ता में होती हैं और किसी समय वह सत्ता से बाहर भी परन्तु यदि ऐसी राजनीतिक पार्टियों के भीतर लोकतंत्र हो, उनका संगठन शक्तिशाली हो और इसके साथ ही सैद्धांतिक तौर पर उनकी दिशा स्पष्ट हो तो ऐसी पार्टियां बड़ी से बड़ी हारों के बाद भी उभरने की क्षमता रखती हैं। परन्तु यदि पार्टियों में लोकतंत्र न हो और सैद्धांतिक तौर पर भी उनमें स्पष्टता की कमी हो, तो ऐसी पार्टियां कई बार लम्बे समय के लिए सत्ता से बाहर होकर आप्रसंगिक हो जाती हैं और कई बार उनका अस्तित्व भी खत्म होने के निकट पहुंच जाता है।  परन्तु किसी भी लोकतांत्रिक देश में यदि लोकतंत्र को स्वस्थ रखना है और केन्द्र से लेकर राज्यों तक सत्ताधारी पार्टियों को देश और समाज के प्रति जवाबदेह बनाकर रखना है, तो शक्तिशाली विपक्ष का होना ज़रूरी है। लम्बे समय तक भारतीय जनता पार्टी सत्ता से बाहर रही है। यहां तक कि 1984 में हुए लोकसभा के चुनावों में इसके मात्र दो लोकसभा सदस्य जीते थे। इसके बावजूद पार्टी पुन: उभरने में सफल हुई है। इस समय वह केन्द्र में और बहुत सारे राज्यों में सत्तारूढ़ है। इसलिए किसी पार्टी का चुनाव हार जाना इतनी बड़ी बात नहीं होती, जितनी बड़ी बात उस पार्टी में निराशा के स्थायी रूप लेने की हो सकती है। कांग्रेस में इस समय घोर निराशा पैदा हो गई प्रतीत होती है। इसी कारण पार्टी अपना नया अध्यक्ष चुनने में असफल साबित हो रही है। नि:संदेह जिसका पार्टी को बहुत नुक्सान हो रहा है। शायद किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि इतनी पुरानी पार्टी नेतृत्व के सवाल पर इतनी बड़ी दुविधा का शिकार हो जायेगी। देश के बहुत सारे राजनीतिक क्षेत्र यह मानते हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा इस समय प्रत्येक स्तर पर विपक्षी पार्टियों को कमज़ोर करने में लगी हुई हैं। इस उद्देश्य के लिए हर हथकंडा अपनाया जा रहा है। खासतौर पर अन्य पार्टियों के नेताओं को तोड़ने के लिए सी.बी.आई., इन्कम टैक्स, ई.डी. तथा अन्य केन्द्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस संबंध में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद पवार ने भी कुछ दिन पूर्व गम्भीर आरोप लगाए हैं। इस वर्ष और अगले वर्ष कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। हरियाणा के चुनावों की घोषणा होने में बहुत कम समय रह गया है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव करवाये जाने की चर्चा हो रही है। ऐसी राजनीतिक स्थिति में यदि कांग्रेस अपने नेतृत्व के संकट पर काबू पाने में असफल रहती है, तो इससे आवश्यक तौर पर इसके बिखरने की सम्भावना और बढ़ जाएगी। ऐसा होना न तो कांग्रेस के हित में होगा और न ही देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के हित में। उम्मीद है कि कांग्रेस शीघ्र ही अपनी वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाकर अपने अगले अध्यक्ष के संबंध में फैसला करने में सक्षम हो जायेगी।