बड़ी उपलब्धि, नाटो में प्रवेश करता भारत

वास्तव में प्रधानमंत्री ने अपने इस कार्यकाल के पहले भाषण में जो कुछ कहा था, उसकी झलक साफ एवं स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम कुछ करने नहीं अपितु बहुत कुछ करने के लिए आए हैं। प्रधानमंत्री मोदी जिस प्रकार से विश्व स्तर की राजनीति में भारत का दखल बनाने में कामयाब दिखाई दे रहे हैं, वह भारत के लिए किसी सपने के पूरा होने से कम नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने वर्तमान सरकार में जिस प्रकार से मंत्रालयों का गठन एवं व्यक्तियों का चयन किया है, यह उसी का परिणाम है जिसकी रूप रेखा समय के साथ स्पष्ट रूप से उजागर होने लगी है क्योंकि ऐसे फैसले तभी लिए जाते हैं, जब किसी भी कार्य को गम्भीरता पूर्वक योजनाबद्ध रूप से करने की चेष्टा होती है। तभी उस कार्य से संबंधित सभी अंगों को सबसे पहले मजबूत एवं दृढ़ किया जाता है क्योंकि किसी भी प्रकार का बड़ा फैसला लेने से पहले उसकी आधारशिला रखी जाती है। अत: प्रधानमंत्री के द्वारा मंत्रालय में किया गया अकल्पनीय परिवर्तन देश का भाग्यविधाता बनता हुआ दिखाई दे रहा है। जबतक किसी भी देश की विदेश नीति, कूटनीतिक आधार पर प्रबल नहीं होती, वह देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कदापि सफल नहीं हो सकता क्योंकि देश का विकास विदेश नीति पर ही पूर्ण रूप से ही निर्भर होता है। 
एस. जयशंकर को देश का विदेश मंत्री बनाना मोदी सरकार का बहुत मजबूत एवं प्रबल कदम है क्योंकि एस. जयशंकर विदेश नीति के अच्छे जानकार माने जाते हैं, साथ ही एस. जयशंकर को कई भाषाओं का भी पूर्ण रूप से ज्ञान है जोकि किसी भी देश के विदेश मंत्री को काफी मजबूत करता है। भाषाओं का ज्ञान होना अत्यंत लाभकारी होता है, इसलिए कि किसी भी प्रकार के अनुवादक की आवश्यकता ही नहीं होती। अमरीकी नीति में एस. जयशंकर काफी प्रबल एवं मजबूत हैं क्योंकि अमेरिकी अधिकारियों के बीच जयशंकर की काफी अच्छी पैठ है। आज उसी का परिणाम है जो पटल पर उभरकर समय के साथ सामने आ रहा है।
भारत की सबसे बड़ी सफलता यह है कि अमरीकी सीनेट ने भारत को नाटो सहयोगियों जैसा दर्जा देने के लिए एक विधेयक को पारित किया है। यह विधेयक भारत को अमरीका के नाटो सहयोगियों के बराबर का दर्जा प्रदान करता है। इससे पहले अमरीका इजरायल और दक्षिण कोरिया को यह दर्जा दे चुका है। वित्तीय वर्ष 2020 के लिए राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम के संशोधन को अमरीकी सीनेट ने पारित किया है। इससे भारत को अमरीका के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने में सहायता मिलेगी। इस विधेयक के पारित होने से अमरीका अब अपनी सभी जटिल रक्षा तकनीकें भारत को दे सकता है। इस विधेयक को सीनेटर मार्क वार्नर और सीनेटर जान कार्निन ने पेश किया। इस संशोधन से हिंद महासागर में भारत-अमरीकी के बीच मानवीय सहायता, आतंकवाद विरोधी अभियान, समुद्री डकैतों के खिलाफ अभियान और समुद्री सुरक्षा जैसे क्षेत्रों एवं रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा। इस विधेयक को अमरीकी कांग्रेस के दोनों सदनों- प्रतिनिधि सभा और सीनेट में पास होने के बाद कानून में बदला जाएगा। ज्ञात हो कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) विभिन्न देशों का रक्षा सहयोग संगठन है। इसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी जिसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में है। आरम्भ में नाटो के सदस्य देशों की संख्या 12 थी जो अब बढ़कर 29 हो चुकी है। नाटो का सबसे नया सदस्य देश मोंटेनिग्रो है। यह 5 जून, 2017 को नाटो का सदस्य बना था। नाटो के सभी सदस्यों का संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के कुल रक्षा खर्च का 70 फीसदी से भी अधिक है। जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएं हटाने से इंकार कर दिया था और अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी कर दी थी, उसी के विरोध में अमरीका ने यह कदम उठाया था। तब अमरीका ने एक ऐसा संगठन बनाने की कोशिश की थी जोकि उस समय के शक्तिशाली सोवियत संघ के अतिक्र मण से रक्षा कर सके। सदस्य देश : संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैण्ड, बेल्जियम, लक्जमर्ग, नार्वे, पुर्तगाल, डेनमार्क, अल्बानिया, बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, इस्तोनिया, जर्मनी, ग्रीस, लातविया, लिथुआनिया,  मोंटेनिग्रो, पोलैंड, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन, तुर्की, रोमानिया आदि सभी देश आज के समय में इस संगठन के सदस्य हैं। जोकि विश्व स्तर पर रक्षा से संबंधित बड़े एवं कड़े फैसले लेने की क्षमता रखते हैं। उसी पंक्ति में अब भारत ने भी अपना पहला कदम रखा है। (अदिति)