मोबाइल और टी.वी. के जाल में फंसते बच्चे  

तकनीकी और विज्ञान की आधुनिकतम खोजें हमारे जीवन को सुगम बनाने के लिए की जाती हैं परन्तु इन गैजेट्स और मशीनों पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है, जो अच्छा संकेत नहीं है। हालांकि ऐसा नहीं है कि विज्ञान के नुक्सान ही नुक्सान हैं, इससे हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में फायदे भी हैं।
यदि हम छोटे बच्चों की बात करें तो वह कम्प्यूटर और मोबाइल के मोह में फंस चुके हैं। इन बच्चों पर इनका इतना गहरा असर हो चुका है कि ये शारीरिक व्यायाम और खेल-कूदों से दूर होते जा रहे हैं। टी.वी. एक बीमारी की तरह फैल रहा है। दिन की शुरुआत इससे ही होती है और दिन का अंत भी इससे ही। अनगिनत चैनलों के इस दौर में हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ अवश्य ही होता है। मनोरंजन, कार्टून, समाचार, गीत-संगीत, अध्यात्म आदि सभी विषयों से संबंधित कुछ न कुछ परोसा जा रहा है। बच्चों के लिए इतने काल्पनिक चरित्र हैं कि बच्चे भी अपने आपको उन्हीं कार्टून चरित्रों की तरह हकीकत से दूर किसी और ही दुनिया में जी रहे हैं।  विज्ञान हमारी ज़िंदगी में वरदान के रूप में आता है, जब तक कि हम उसका प्रयोग सिर्फ और सिर्फ भलाई के लिए करते हैं, जहां से हमने इसका बेज़ा इस्तेमाल करना शुरू किया नहीं कि यही वरदान अभिशाप में भी बदलने में देर नहीं करता। 
—डा. एम.एल. सिन्हा