ऐतिहासिक जीत


अंतत: बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं की एक लम्बी जद्दो-जहद एवं संघर्ष के बाद तीन तलाक प्रथा के विरुद्ध पेश किया गया बिल संसद की ओर से पास कर ही दिया गया। यह मुस्लिम महिला की सामाजिक आज़ादी को दर्शाती एक बड़ी ऐतिहासिक जीत कही जा सकती है। समय-समय पर राजनीतिक दलों ने अपनी वोटों की लालसा के लिए इस बड़े वर्ग की भावनाओं को दृष्टिविगत किये रखा। इस प्रकार समाज में उसे दूसरे दर्जे पर ही खड़ा किया जाता रहा है। इस अन्याय के विरुद्ध समय-समय पर दृढ़ निश्चय वाली मुस्लिम महिलाओं ने विद्रोह का ध्वज उठाये रखा। इनमें एक शाह बानो भी थी। उत्तराखंड में सायरो बानो भी थी। उत्तर प्रदेश की अतिया साबरी भी थी। पश्चिम बंगाल की इशरत जहां भी थी। राजस्थान की आ़फरीन रहमान भी थी। इन्दौर की रहने वाली शाह बानो को उसके पति ने तीन तलाक कह कर छोड़ दिया था। इस व्यक्ति के विरुद्ध शाह बानो ने उच्च अदालत तक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी। उच्च न्यायालय ने उसे काफी गुज़ारा भत्ता दिये जाने की घोषणा की थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था। इसके बाद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव गांधी ने एक और ज्यादती करते हुए मुस्लिम वूमैन प्रोटैक्शन ऑफ राइट्स एक्ट बनाया, जो प्रत्यक्ष रूप से महिलाओं के अधिकार पर छापे जैसा था, परन्तु प्रभावित महिलाओं ने अपनी लड़ाई जारी रखी। उन्होंने समय-समय पर पतियों की ओर से दिये गये इन ज़ुबानी तलाकों को ़गैर-संवैधानिक करार देने की अपील करना जारी रखा। ऐसे पतियों के विरुद्ध दहेज संबंधी केस कर्ज करवाये गये। पतियों की ओर से कागज़ पर भेजे गये तीन तलाक को अस्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच की। इशरत जहां को तो दुबई से ही फोन करके तलाक दे दिया गया था। उसने अपने पति के विरुद्ध घरेलू हिंसा का केस दर्ज करवाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने इस प्रथा के संबंध में स्पष्ट रवैया धारण किया।
 जहां तक मुस्लिम समाज का संबंध है, अब तक लगभग दो दर्जन इस्लामिक देशों ने तीन तलाक प्रथा को खत्म कर रखा है। इनमें पाकिस्तान, इराक, तुर्की एवं बंगलादेश जैसे देश भी शामिल हैं। राज्यसभा में मोदी सरकार अल्पमत में है। इसलिए दो बार पहले लोकसभा में यह बिल पास करवाने के बावजूद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी एवं बसपा जैसी पार्टियों ने इसका विरोध जारी रखा जिस कारण यह बिल प्रत्येक बार लटक जाता रहा। सरकार को इसके लिए अध्यादेश भी जारी करने पड़े। अब दूसरी बार मोदी सरकार के बनते ही इस बिल को फिर प्राथमिकता के आधार पर लोकसभा में पास करवा लिया गया। राज्यसभा में चाहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के सदस्यों की संख्या अभी भी कम है, परन्तु कांग्रेस के 5, सपा के 6, बसपा के 4 तथा कई अन्य पार्टियों के 20 सदस्य सदन में से अनपुस्थित रहे, जिस कारण सरकार को वहां यह बिल पास करवाने में कोई कठिनाई पेश नहीं आई। राज्यसभा में केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास ऩकवी के अतिरिक्त शेष 26 मुस्लिम सांसदों ने इसका विरोध किया। इससे यह अवश्य प्रतीत होता है कि मुस्लिम महिला को समानता का अधिकार देने में अभी पुरुष प्रधान समाज तैयार नहीं है, परन्तु इस बिल का पास होना समय की आवश्यकता थी। ऐसे सामाजिक परिवर्तन प्रत्येक समाज में होते रहते हैं। अब महिला को परम्पराओं का नाम लेकर डराया अथवा दबाया नहीं जा सकेगा, अपितु वह समानता के अधिकारों के लिए उठ खड़ी होगी। इस अहम पग के लिए हम केन्द्र सरकार की प्रशंसा करते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द