बच्चों का गुम होना समाज के लिए कलंक 

सभी माता-पिता को जिंदगी भर जो सबसे बड़ी चिंता खाए जाती है वह है, अपने बच्चों का कहीं खो न जाना । माता-पिता अपनी संतानों की बेहतरी के लिए अपनी जान तक दाँव पर लगा देते हैं। ऐसा अक्सर अखबारों में पढ़ने में आता है कि फलां व्यक्ति का बच्चा गुम हो गया। ये बच्चा किसी गरीब परिवार का भी हो सकता है या फिर अमीर परिवार का भी। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि बच्चे के गुम हो जाने पर गरीब को ज्यादा दुख होता है और अमीर को कम। गरीब-अमीर दोनों के लिए संतानों का महत्व समान है। पिछले कुछ सालों में बच्चों के गुम होने या किसी अनजाने व्यक्ति द्वारा उन्हें उठा ले जाने की घटनाएँ तेजी से बढ़ी हैं। यह अपराध समाज के लिए कलंक है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार भारत में हर साल एक लाख बच्चे गुम या गायब होते हैं। इनमें से 45 फीसदी बच्चे ऐसे होते हैं जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा गुम या गायब होता है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि भारत में करीब 900 संगठित गिरोह हैं जो बच्चे चुराने के काम में नियोजित रूप से सक्रिय हैं, जिनके नेटवर्क में कई हजार लोग शामिल हैं। अगर हम भारत के इन आँकड़ों की अन्य देशों से तुलना करें तो हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में हर साल केवल 300 बच्चे लापता होते हैं। उधर जन-संख्या की समस्या से जूझ रहे चीन में यह संख्या मात्र 10 से 20  हजार है। इन आंकड़ों पर गौर करें तो सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर गायब हुए बच्चे जाते कहाँ हैं ? हालांकि ऐसे  बच्चों  के बारे में  यह  माना जाता  है कि इन बच्चों को भीख माँगने, मजदूरी करने, वेश्यावृत्ति या फिर इन बच्चों  की तस्करी जैसे कार्यों में धकेल दिया जाता है। 
मानव अधिकार आयोग और यूनिसेफ  की एक रिपोर्ट की मानें तो गुम हुए बच्चों में से 20 फीसदी बच्चे विरोध के कारण मार दिए जाते हैं। विशेषज्ञों की राय में ग्रामीण और शहरी इलाकों में कई बच्चे शारीरिक शोषण या फिर गरीबी के कारण घर से भाग जाते हैं। घर छोड़ने के बाद उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती। परिणामस्वरूप कोई गिरोह या फिर अन्य आपराधिक किस्म के लोग प्रलोभन देकर इन बच्चों को फंसा लेते हैं।  आपराधिक आँकड़ों के अनुसार 2011 से 2014 के बीच देश में कुल 3 लाख 27 हजार 658 बच्चे गायब हुए जिमसें 1 लाख 81 हजार 111 लड़कियाँ और 1 लाख 46 हजार 647 लड़के थे। इनमें 1 लाख, 48 हजार, 115 बच्चों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पिछले तीन सालों में महाराष्ट्र से 509474, मध्य प्रदेश से 24836, दिल्ली से 19948 एवं आंध्र प्रदेश से 18540 बच्चे गायब हुए। आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार 2018 में नई दिल्ली में कुल 6541 लड़के-लड़कियों की गुमशुदगी दर्ज हुई ।
नोबल पुरस्कार (शांति) से सम्मानित बचपन बचाओ अभियान के शिल्पकार कैलाश सत्यार्थी कहते हैं कि बच्चों की गुमशुदगी बच्चों और उनके माता-पिता के साथ ऐसा घिनौना और यातनामय अपराध है जिसे किसी भी सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। गुमशुदा बच्चों में ज्यादातर झुग्गी-बस्तियों, विस्थापितों, रोजगार की तलाश में दूर-दराज के गाँवों से शहरों में आ रहे परिवारों, छोटे कस्बों और गरीब तथा कमजोर तबकों के बच्चे होते हैं। चूँकि ऐसे लोगों की कोई ऊँची पहुँच, जान-पहचान या आवाज नहीं होती इसलिए पुलिस, मीडिया यहाँ तक कि पड़ोसी भी उनको कोई तवज्जो नहीं देते । इनके माता-पिता प्राय: अशिक्षित होते हैं। ये लोग जानकारी के अभाव में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की बजाय अपने बच्चों के  गुमशुदा होने के कई घंटों या कई दिनों बाद तक स्वयं ही खोजबीन में लगे रहते हैं। 
 इसी संदर्भ में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने मिलकर 2 जून 2015 को ‘‘खोया-पाया पोर्टल’’ जारी किया। इस पोर्टल को मुफ्त में मोबाइल पर डाउनलोड भी किया जा सकता है। महिला बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी और सूचना प्रौद्यागिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा था कि गुमशुदा बच्चों का पता लगाने के लिए यह पोर्टल सशक्त माध्यम साबित होगा । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस संबंध में कहना है कि अमीरों के बच्चे गायब नहीं होते और गुम भी हो जाते हैं तो तुरंत मिल जाते हैं लेकिन गरीब का बच्चा मिलता नहीं । गरीब व्यक्ति कुछ दिन अपना बच्चा ढूँढ़ता है फिर संसाधनों की कमी के चलते चुप बैठ जाता है। यह पोर्टल ऐसे ही साधनहीन लोगों की मदद करेगा। वर्तमान में  लापता बच्चों के लिए ‘‘ट्रेक चाइल्ड’’ नामक एक वेबसाइट भी है जो पुलिस और नागरिक समेत संबंधित पक्षों के बीच नेटवर्किंग प्रणाली उपलब्ध कराती है।  कुल मिलाकर बच्चों के लापता होने की घटनाएँ रोकने के लिए एक राष्ट्रीय नेटवर्क की आवश्यकता है जो न केवल लापता होने का ब्यौरा गंभीरता से दर्ज करें बल्कि उनकी वापसी के तकाजे को भी  गंभीरता से ले ।
-मो. 78982-74643