बरसात के सुख

बरसात का मौसम बड़ा हरा-भरा होता है। जिधर देखिए, हरियाली अपनी शोभा बढ़ा रही होती है। यहां तक कि अमरीकन घास भी अपनी पहचान बना रही होती है। सूखी जड़ों से भी हरी कोंपले निकलने लगती हैं। अम्बवा की डाली पर कोयल की कूक कितनी प्यारी लगती है, पपीहे की पीहू-पीहू कितनी न्यारी लगती है। मेंढकों, सांपों, झींगुरों वगैरह के लिए यह मौसम त्यौहार का मौसम होता है। उनके जीवन में मस्ती का रंग भर देता है। यह मौसम मिलन का मौसम होता है। भीगे-भीगे से मौसम में प्रेमी-प्रेमिका भीगे से मिलते हैं और ‘बरसात में तुम से मिले हम और हम से मिले तुम’, वगैरह के गीत गाते हैं। शीतल फुहार भीतर तक सकून प्रदान करती है। हाथ में हाथ डाले दीन-दुनिया से बेखबर ऐसे प्रेमी जोड़ों की प्रसन्नता को वे क्या जानें जिन्हें विरह के आंसू रोने पड़ते हैं। वैसे रोना भी बुरा नहीं होता, मन की बन्द गांठें खुल जाती हैं और आदमी अपने आपको हल्का महसूस करने लगता है। आपके घर की छत टपकती है तो सोने पर सुहागा। अपनी खटिया को इधर-उधर खिसकाकर अपना जी बहला सकते हैं। जाड़े में भी तो आप ‘खटिया खिसका ले, जाड़ा लगे’ गाते हैं। बरसात का मौसम गीतकारों और व्यंग्यकारों को भी प्रिय होता है। उनकी लेखनी भी स्याही उगलने लगती है। प्रेम और विरह दोनों तरह के गीत उनके क़ागज़ से छनकर आते हैं। व्यंग्यकारों को सरकार की त्रुटिपूर्ण सफाई-व्यवस्था वगैरह की पोल खोलने का सुनहरा मौका मिल जाता है। वैसे ऐसे काम वे नित-प्रति करते रहते हैं। वे अपने व्यंग्य-बाणों से न जाने कितनों को छलनी करना चाहते हैं, लेकिन बाण प्राय: बिना प्रहार किये ही लौट आते हैं। सरकार की गैंडे की तरह मोटी खाल होती है न! मूसलाधार बरसात होती है तो घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। यह हमें मुश्किलों से लड़ना सिखलाती है। इस मौसम में पति-पत्नी में प्रेम-प्यार बढ़ता है। वैसे तो मुई ‘दो टकियों की नौकरी’ चैन नहीं लेने देती। इसी बहाने गरमा-गरम चाय-पकौड़ों का आनंद लिया जा सकता है। लेकिन कुछ दिल-जले आपस में ही लड़-झगड़ कर अपना टाइम पास कर लेते हैं। बरसात के मौसम में नदियों को भी अपनी मर्जी से बहने का मौका मिलता है। बेचारी पूरा वर्ष सूखे का दुख भोगती रहती हैं। छमाछम बरसात बरसती है तो इनमें जल भर जाता है, हृषित हो उठती हैं। कभी-कभी आतंकवाद की तरह आपे से बाहर हो जाती हैं और बाढ़ का रूप ले लेती हैं। इससे कइयों का भला होता है। सरकारी अमला पीड़ितों की सेवा में जुट जाता है और खूब मेवा काटता है। भले ही किसी गरीब की झोंपड़ी तार-तार हो जाये, कुछ सेवार्थियों की बीवी के गले का हार अवश्य बन जाता है। उनके सुख के आगे गरीब के आंसू कोई मूल्य नहीं रखते। कई बार वर्षा बैरिन हो जाती है और हमें बीमारी के चंगुल में फंसा देती है। लेकिन इनमें भी डॉक्टरों, हकीमों, दवा-विक्रेताओं का सुख छिपा है। वे तो ऊपर वाले से दुआ मांगते रहते हैं कि किसी तरह बीमारों की तादाद में इजाफा हो और उन्हें चांदी कूटने का शुद्ध लाभ मिलता रहे। स्वाइन-फ्लू जैसा कुछ-कुछ होता रहे। वैसे बरसात में अनिश्चिता का दौर महंगाई को बढ़ाने में बड़ा ही सहायक होता है। इससे जमाखोरों और सटोरियों की किस्मत चमक जाती है। कृषि उत्पादों में कमी आ जाने पर दालों, फल और सब्ज़ियों वगैरह के दाम सातवें आसमान को छूने लगते हैं और आदमी आसमान को ताकने का व्यायाम करने लगता है। काला-बाज़ारियों के लिए सूखा और बाढ़ दोनों बराबर रहते हैं, हमें उनके सुख पर गर्व होना चाहिए।

— 2698, सैक्टर 40-सी, चंडीगढ़-160036