फसली विभिन्नता योजनाबंदी में बासमती का विशेष स्थान

फसली विभिन्नता की योजनाबंदी में इस शताब्दी के शुरू में और दूसरे दशक के दौरान बासमती को कोई खास महत्त्व नहीं दिया गया। अब फसलों के बीच धान को छोड़ कर बासमती की काश्त प्रमुख है और इसका निचला रकबा सभी अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक है। अब तक यह 6.25 लाख हैक्टेयर रकबे पर लग चुकी है और कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर सुतंत्र कुमार ऐरी के अनुसार लगभग 25 हज़ार हैक्टेयर रकबा और अगस्त के दौरान इस फसल अधीन आने की सम्भावना है। घग्गर के आस-पास जहां घग्गर के पानी या अन्य क्षेत्रों में बारिश ने फसलों की बर्बादी की है, वहां धान की सभी किस्में तथा अन्य फसलें पानी में डूब कर खराब हो गई। सीनियर ब्रीडर और आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि खोज संस्थान के संयुक्त डायरैक्टर और जेनेटिक्स डिवीज़न के प्रमुख डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि संकटकालीन योजना के अधीन राज्य सरकार को बासमती की योग्य किस्मों की नर्सरी का पक्का प्रबंध रखना चाहिए ताकि बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में किसानों को पनीरी मुहैया की जा सके और खेत खाली न रहें। कपास, नरमे की काश्त 401355 हैक्टेयर रकबे पर की गई है। गत वर्ष 2017-18 के दौरान इस फसल की काश्त 2.87 लाख हैक्टेयर पर हुई थी। मक्की की काश्त 1.60 लाख हैक्टेयर पर और गन्ना 96 हज़ार हैक्टेयर पर बीजा गया है। इस वर्ष धान की काश्त निचला रकबा कम हुआ है। डा. ऐरी के अनुसार यह 23 लाख हैक्टेयर से किसी हालत में भी नहीं बढ़ने लगा। 2017 में धान की काश्त निचला 30.65 लाख हैक्टेयर और वर्ष 2018-19 में 31 लाख हैक्टेयर रकबा धान की काश्त अधीन था। कृषि और किसान कल्याण विभाग मक्की की काश्त निचला रकबा बढ़ाने के लिए तैयार है। परन्तु इसके 2-3 हज़ार हैक्टेयर से और बढ़ने की बिल्कुल ही कोई सम्भावना नहीं। धान को छोड़ कर खरीफ में सभी फसलों से अधिक काश्त निचला रकबा बासमती किस्मों का है। पंजाब सरकार ने अब इस वर्ष विशेष तौर पर फसली विभिन्नता और विदेशी मुद्रा कमाने के पक्ष से बासमती की काश्त को विशेष महत्त्व देना शुरू किया है। विदेशों में निर्यात बढ़ाने के लिए बासमती की गुणवत्ता बढ़ाई जा रही है और इसको कीटनाशक मुक्त किया गया है। बासमती के उत्पादक रजिस्टर करके उनको कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर नेतृत्व देने का प्रबंध किया गया है। इसके लिए विशेष टैक्नीकल स्टाफ नियुक्त किया गया है। कीटनाशकों में ऐसीफेट, कार्बनडाइज़ीम, थाइमेथोकसम, ट्राइसाईकलाज़ोन, बुप्रोफैज़ीन, कार्बोफ्यूरोन, प्रोपीकोनाज़ोल तथा थायोफनाटे आदि दवाईयों का प्रयोग रोकने के लिए पंजाब सरकार द्वारा दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। पंजाब सरकार की ओर से जो मक्की और गन्ने की काश्त अधिक करने पर ज़ोर दिया जा रहा है। मक्की की काश्त करके किसान हाथ फूंक चुके हैं, उनको बहुत कम मूल्य पर गत वर्षों में मक्की की फसल बेचनी पड़ी है। गन्ने की पानी की ज़रूरत कोई धान से कम नहीं। ये सिर्फ उन खेतों में बीजना चाहिए, जहां बूंद सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो, या फिर दरियाओं के किनारे दो-तीन किलोमीटर के रकबे में बीजना चाहिए, जहां सिंचाई की ज्यादा समस्या न आए। बासमती का निर्यात मात्र अभी गत वर्ष के स्तर पर पहुंचा है। ऑल इंडिया राईस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन के प्रधान विजय सेतिया के अनुसार पंजाब-हरियाणा की बासमती का बड़ा निर्यातक ईरान है। जहां एक्सपोर्टज़र् का 1500 से 2000 करोड़ रुपया फंसा हुआ है, जो उनके द्वारा चावल उधार दिये गये थे। जिस कारण खरीदार मंडी से गायब हो गये। ईरान को बहुत कम बासमती का निर्यात होने की सम्भावना है। सऊदी अरब गुणवत्ता वाली तथा कीटनाशक मुक्त बासमती का खरीददार है। पंजाब इस संबंध में जो प्रयास कर रहा है, उससे बासमती के निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा और बासमती के उत्पादकों को अच्छा मूल्य मिलने की सम्भावना है। यदि धान की काश्त निचला रकबा कम करना है और भूमि निचला जल-स्तर कम होने की  समस्या को हल करना है, तो बासमती की काश्त बढ़ाने के लिए पंजाब सरकार को केन्द्र पर इसकी एम.एस.पी. घोषित करने का प्रयास करना चाहिए। 

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