1947 के दंगों की आग में अमृतसर के 19 हज़ार घर हुए थे जलकर राख

अमृतसर, 13 अगस्त (सुरिंदर कोछड़): मार्च 1947 में अमृतसर पूरी तरह युद्ध भूमि बना हुआ था। हर ओर लूटपाट और कत्लेआम की घटनाओं के चलते कई इलाके जलकर राख का ढेर बन चुके थे और जगह-जगह मलबे के ढेर लगे हुए थे। जब 20 मार्च 1947 को पंडित जवाहर लाल नेहरू अमृतसर आए तो उन्हें कटड़ा जैमल सिंह, बाज़ार पश्चिम वाला, चौक फरीद, हाल बाज़ार, लौहगढ़, कटड़ा भाईया आदि इलाकों का दौरा करवाया गया। इस अवसर पर ज़िले का डिप्टी कमिश्नर जे.डी. फ्रैशर से भी थे। चारों ओर आधी जली इमारतें व मलबे के लगे ढेर देख पंडित नेहरू ने गुस्से में कहा था कि यदि वह अमृतसर में रह रहे होते तो कब से शहर छोड़कर भाग गए होते या आत्महत्या कर लेते। प्राप्त जानकारी के अनुसार विभाजन के समय हुए जातिवादी दंगाें  के चलते आगज़नी की हुई वारदातों में अमृतसर में 19 हज़ार से अधिक घर पूरी तरह जलकर राख के ढेर में बदल गए थे। उल्लेखनीय है कि भारत-पाक विभाजन की बात पक्की होने के बाद पूर्वी पंजाब की राजधानी वाघा से पूर्व की ओर बनाना तय की गई थी। 26 जुलाई 1947 को पूर्वी पंजाब की सरकार के सचिवालय के लिए खालसा कालेज अमृतसर के साथ लगती होस्टलों की इमारतें देखी गईं और फिर कालेज के सामने खाली पड़ी इमारत को सचिवालय के लिए चुना गया। बाद में अमृतसर में राजधानी बनाने का फैसला रद्द कर दिया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि 17 अगस्त, 1947 को जब दोनों तरफ तबादला शुरू हो गया तो उस दौरान स्थानीय खालसा कालेज शरीफपुरा, रेलवे स्टेशन, छावनी, किला गोबिंदगढ़, गोलबाग, सचिवालय बाग के स्थानीय धर्मशालाओं के शरणार्थी कैम्पों में लाखाें की संख्या में हिन्दू, सिख शरणार्थी पहुंचे थे, जिनमें से अधिकतर कैम्पों में लंगर व अन्य सुविधाओं का प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा किया गया था।