शास्त्रीय संगीत के महान साधक अलाउद्दीन खां

उस्तादअलाउद्दीन खां का भारत के शास्त्रीय संगीतज्ञों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत की ओर उनका रुझान बचपन से ही था। नानू गोपाल, नंदलाल एवं वजीर खां ने उन्हें संगीत से पारंगत किया। मैहर के राजा संगीतप्रेमी थे। उन्होंने उन्हें अपना गुरु बनाया। 19 अक्तूबर 1958 को उन्हें पहले ‘पदमभूषण’ और 1971 में ‘पदमविभूषण’ से सम्मानित किया गया। प्रख्यात नर्तक उदयशंकर के साथ विदेशों में उन्हें काफी ख्याति मिली। उन्होंने अनवरत संगीत साधना की और जीवन के 100 वर्ष संगीत को भेट किये। उनकी स्मृति में अब प्रतिवर्ष अखिल भारतीय संगीत समारोह आयोजित किया जाता है। अलाउद्दीन खां का जन्म शिपुर (त्रिपुरा) के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनकी संगीत में रूचि थी। इसलिए उन्होंने आठ वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया। जगह-जगह कष्ट उठाकर भी वे अपनी संगीत साधना में जुटे रहे, धीरे-धीरे उनकी प्रतिभा निखरती गई। कुछ समय उन्होंने एक नाटक कंपनी में भी काम किया। 6 सितंबर 1972 को उनकी मृत्यु हुई। उनकी पत्नी का नाम मदीना बेगम था। अपनी आयु के 100 वर्ष पूर्ण करने के समय तक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत में रमे रहे। उन्होंने संगीत की जो सेवा की उसे सदा स्मरण किया जाएगा। उनके जीवन से स्पष्ट है कि जो व्यक्ति एकनिष्ठ होकर किसी कार्य में लग जाता है वह उन्नति के शिखर पर अवश्य पहुंचता है।

प्रस्तुति-फ्यूचर मीडिया नेटवर्क