गरुड़ पुराण में सदाचरण के स्वर

भारतीय इतिहास और संस्कृति को जानने और समझने के लिए पुराणों का बड़ा महत्त्व है। पुराणों का उद्देश्य जहां मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना बताया गया है, वहीं उसमें  क्रियाकर्मों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है और इसीलिए सामान्यजन पर पुराणों का बड़ा प्रभाव है। एक लोकोक्ति के द्वारा कतिपय व्यक्तियों को पुराण पंथी भी कहा गया है। महा-कवयित्री महादेवी वर्मा ने ललित विक्रम की भूमिका में लिखा है ’पुराण तो स्वयं विराट साहित्य का अंश हैं, अत: उनकी बुद्धिसम्मत भागवत व्याख्या ही उसे हमारे जीवन के निकट ला सकती है। यह कार्य सहज नहीं है क्योंकि एक ओर अनुभूति की न्यूनता इस व्याख्या को नीरस सिद्धांत बना सकती है और दूसरी ओर अनुभूति की अधिकता में यह विश्वसनीयता नहीं रहती।’ भारतीय समाज में गरुड़ पुराण का बड़ा महत्त्व है। सनातन धर्म में पुनर्जन्म के प्रति दृढ़ विश्वास है और पुनर्जन्म होने के पूर्व स्वर्गवास की संभावना और नरकवास की पीड़ा की आशंका सदा रहती है, इसलिए गरुड़ पुराण का वाचन किसी भी घर में मृत्यु के बाद किया जाता है। इस पुराण में प्रेत कर्म के साथ-साथ ब्रह्मकांड का भी वर्णन है।  गरुड़ पुराण में भक्ति, ज्ञान, तप, तीर्थ, देवपूजन, श्राद्ध आदि अनेक विषय दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, छंद और स्वर आदि का ज्ञान भी है। सदाचार से संबंधित नीति निर्देश भी इस पुराण में दिए गए हैं। इसलिए यह एक महत्त्वपूर्ण गं्रथ है जिसे घर में रख कर पढ़ा जाना चाहिए और यह अंध विश्वास हट जाना चाहिए कि गरुड़ पुराड़ केवल प्रेत कर्म संबंधी ग्रंथ है। जो भी कल्याणकारी विचार होगा, उसमें सदाचरण का सम्मिश्रण एक अनिवार्य तत्व होगा। महाभारत के अनुशासन पर्व में वेदव्यास जी कहते हैं, ‘सदाचार से मनुष्य को आयु प्राप्त होती है। सदाचार से लक्ष्मी प्राप्त होती है और सदाचार से ही इस लोक और परलोक में कीर्ति प्राप्त होती है। गरुड़ पुराण में सदाचरण को लेकर व्यापक विचार किया गया है। इस पुराण में सिद्धांत रूप में परोपकार व त्याग का वर्णन जिस प्रकार किया गया है, उसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:  कुल की रक्षा के लिए एक व्यक्ति का, ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, जनपद के हित के लिए ग्राम का और अपने वास्तविक कल्याण के लिए पृथ्वी का भी परित्याग कर देना चाहिए।  बुद्धिमान पुरुष एक पांव को स्थिर करके ही दूसरे पांव को आगे बढ़ाता है इसीलिए अगले स्थान की परीक्षा के बिना पूर्वस्थान का परित्याग नहीं करना चाहिए। जो पदासीन (अधिकार युक्त) व्यक्ति है, उसके कभी न देखे गए बहुत से व्यक्ति भी सहायक हो जाते हैं परन्तु जब वही व्यक्ति पदच्युत और अर्थहीन हो जाता है तो उसके असमय में स्वजन भी शत्रु हो जाते हैं।  आपत्ति काल के लिए धन का संरक्षण करना चाहिए। स्त्रियों की रक्षा के लिए धन का उपयोग करना चाहिए एवं अपनी रक्षा में स्त्री एवं धन दोनों का उपयोग करना चाहिए।  विद्यार्जन, अर्थसंग्रह, पर्वतारोहण, अभीष्ट सिद्धि तथा धर्मांचल, इन पांचों को धीरे-धीरे प्राप्त करना चाहिए।  जो बाल्यावस्था में विद्याध्ययन नहीं करते और फिर युवावस्था में कामातुर होकर यौवन तथा धन को नष्ट कर देते हैं, वे वृद्धावस्था में चिता से जलते हुए शिशिर काल के कुहरे में झुलसने वाले कमल के समान संतप्त जीवन व्यतीत करते हैं। उद्योग, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्र म, ये छ: प्रकार के साहस कहे गए हैं। इनसे समन्वित राजा से देवता भी संशकित रहते हैं। उद्योग करने पर यदि व्यक्ति को कार्य में सफलता नहीं मिलती तो उसमें भाग्य ही कारण है तथापि मनुष्य को सदा पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। इस प्रकार की सदाचरण संबंधी अनेक सूक्तियां इस पुराण में हैं। इतना ही नहीं, ज्योतिष संबंधी जानकारी भी इस पुराण में है। इसलिए इस पुराण के संबध में जो अंधविश्वास है कि इसका पारायण किसी मार्त्य परिवार में ही किया जा सकता है, यह भ्रम है। यह अन्य पुराणों की तरह ही पवित्र, कल्याणकारी पुराण है जिसमें ज्ञान, विज्ञान, धर्म, राजनीति आदि सभी विषय सम्मिलित हैं। इसको परिवार में रखने, पढ़ने, अध्ययन करने में कोई बाधा नहीं है 

-सत्यनारायण भटनागर