बाढ़ पीड़ित लोगों की सुधि ले सरकार

मौनसून की लौटती हवाओं से उपजी भारी वर्षा और भीषण बाढ़ के कारण हुए विनाश के दृष्टिगत बेशक पंजाब की सरकार ने स्थिति को प्राकृतिक आपदा घोषित किया है, परन्तु इस दौरान प्रकृति के इस प्रकोप का शिकार हुए प्रदेश के लोगों और खासकर किसानों का हाथ थामे जाने की आवश्यकता भी बहुत बढ़ी है। पंजाब में इस बार मौनसून की वर्षा बहुत जम कर बरसी है। इससे कई जगहों पर धरती की चिरकाल की प्यास भी बुझी और छोटे-बड़े जलाशय भी लबालब हुए, परन्तु पहाड़ों पर सावन मास की आखिरी बरसात ने पंजाब और हिमाचल की धरती पर बने बांधों और जलाशयों के पानी को एकाएक खतरे के निशान से भी ऊपर तक पहुंचा दिया। स्वाभाविक रूप से अधिकारियों को सतलुज एवं ब्यास नदियों में बांधों का अतिरिक्त पानी छोड़ने हेतु विवश होना पड़ा। प्रदेश में यह जो बाढ़ की विनाशलीला दिखाई दे रही है, वह इसी पानी से उपजी है। बांधों एवं जलाशयों से छोड़ा गया यह पानी जिधर-जिधर से गुजरता गया, विनाश ढाते निशान अपने पीछे-पीछे छोड़ता चला गया। ये निशान कहीं-कहीं इतने विकराल हुए कि कई स्थानों पर सेना तक को बुलाना पड़ गया।
इस आपदा से प्रभावित इलाकों की स्थिति यह है कि खेत-खलिहान तो नष्ट हुए ही हैं, अनेक स्थानों पर कच्चे-पक्के मकान भी गिर गये हैं। अनेक गांव पानी में आकंठ डूब गये, लोग छतों पर शरण लिए हुए हैं।  कई गांवों में लोगों को नावों का सहारा लेकर बाढ़ के पानी से निकलना पड़ा है। रोपड़ और जालन्धर के फिल्लौर, लोहियां, शाहकोट आदि बेहद प्रभावित हुए हैं। सतलुज का धुस्सी बांध हालांकि हर वर्ष टूटता है, परन्तु इस बार धुस्सी बांध में अनेक स्थानों पर दरारें पड़ी हैं। लोहियां इलाके में धुस्सी बांध की लगभग सौ फुट चौड़ी दरार ने आसपास के मीलों तक फैले इलाके को जल-मग्न कर दिया है। हज़ारों लोग घर-बार छोड़ कर ऊंचे स्थानों पर आश्रय लेने को विवश हुए हैं। स्कूल जल-मग्न हुए हैं। बेशक अधिकतर लोग अपने घर-बार और पशुओं को इस प्रकोप के हवाले करके यहां से निकल जाने को तैयार नहीं हो रहे, तथापि कई लोगों ने अपने बच्चों, महिलाओं और अपने पशु-धन को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। पंजाब में रेल-बस सेवाएं भी विपरीत रूप से प्रभावित हुई हैं। जालन्धर-फिरोज़पुर रेल पथ पर यातायात रोक दिया गया है। प्राकृतिक घोषित इस आपदा के घावों को बेशक पंजाब के लोगों ने अपनी चिर-स्थापित प्राचीन परम्पराओं के अनुरूप सहन करने के साहस का प्रदर्शन किया है, परन्तु इस विनाश के कारण प्रदेश के लोगों खासकर ग्रामीण धरातल के लोगों का जो नुक्सान हुआ है, वह सचमुच अकल्पनीय है। उनके खेतों की फसल नष्ट हो गई है। उनके घर टूट गये हैं। खेतों में गार-मिट्टी भर गई है। नि:संदेह यह दोहरी मार है। एक नुक्सान तो हो गया, अब इस संकट से उभरने के लिए अतिरिक्त खर्च भी वहन करना पड़ेगा और नए सिरे से श्रम भी करना पड़ेगा।
ऐसी स्थिति में नि:संदेह रूप से बाढ़ के विनाश से प्रभावित सभी लोगों खासतौर पर ग्रामीणों एवं किसानों का हाथ थामे जाने की बड़ी आवश्यकता है। पंजाब के लोगों और सामाजिक संगठनों की ओर से बेशक पीड़ितों के लिए खान-पान के लिए लंगर लगाये गये हैं, परन्तु इन संगठनों की अपनी एक सीमा होती है। सरकार को वसीह पैमाने पर और विशाल हृदय के साथ पीड़ित एवं प्रभावित लोगों तक अपनी पहुंच बनानी चाहिए। बाढ़ से नष्ट हुई फसलों की निशानदेही, उनकी गिरदावरी के लिए विशेष दल बना कर उन्हें प्रभावित इलाकों में भेजा जाना चाहिए। सरकार ने बेशक फिलहाल सौ करोड़ रुपए की राहत राशि की घोषणा की है, परन्तु जो विनाश दिखाई दे रहा है, उसके पीछे भी विनाश की एक और परत छिपी है। किसानों एवं बाढ़ प्रभावित अन्य लोगों के लिए नुक्सान का सही-सही आंकलन और अनुमान लगाकर उनकी क्षति-पूर्ति की जानी चाहिए। सरकार एवं उसके प्रशासनिक तंत्र को इस बात को भी समझना होगा कि जिन किसानों का सब कुछ बाढ़ की भेंट चढ़ गया है, उन्हें फिर से उठ खड़े होने के लिए अतिरिक्त मदद की दरकार होगी। पंजाब का किसान साहसी एवं उत्साही है, तथापि उठने के लिए उसे कोई सम्बल अवश्य चाहिए, और यह सहारा उसे सरकार ही दे सकती है।
हम समझते हैं कि लोकतांत्रिक शासन में लोगों को जीवन-यापन हेतु सक्षम बनाना सरकारों का दायित्व होता है। पंजाब सरकार ने बेशक इस संकट-बेला को प्राकृतिक आपदा घोषित किया है, परन्तु इस आपदा पर पार पाने हेतु लोगों का हाथ थामना भी इसी सरकार का कर्त्तव्य बन जाता है। हम यह भी समझते हैं कि सरकार को यह काम तत्काल रूप से, युद्ध-स्तर पर करना चाहिए। यह भी कि सरकार जितनी शीघ्र लोगों को राहत देने हेतु मैदान में उतरेगी, उतना ही उसके अपने लिए भी अच्छा होगा।