पंजाब की सीमाओं को लांघती नशे की समस्या

पंजाब और इसके पड़ोसी राज्यों में नशीले पदार्थों की तस्करी और नशे के सेवन की निरन्तर गम्भीर होती समस्या ने समाज और प्रशासन के समक्ष गम्भीर चुनौती ला खड़ी की है। ऐसा इसलिए कि सरकार एवं उसके प्रचार-तंत्र की ओर से निरन्तर इस बात का दावा किया जाता रहा है कि पंजाब में नशे के घृणित कारोबार पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है और नशे का सेवन करने वालों की संख्या में भी कमी आई है। सरकार का यह भी दावा है कि नशे के तस्करों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया गया है, और नशे का सेवन करने वालों को बड़ी संख्या में नशा-मुक्ति केन्द्रों के हवाले किया गया है। इसके विपरीत समस्या आज यह है कि एक ओर जहां नशीले पदार्थों की बरामदगी की घटनाएं और बरामद पदार्थों की मात्रा में भारी इज़ाफा हुआ है, वहीं इस समस्या की कंटक-बेल पंजाब की हदों को लांघ कर पड़ोसी राज्यों तक फलने-फूलने लगी है। इस संबंधी आंकड़ों एवं विस्तार का दावा करने वाली एक सर्वेक्षण रिपोर्ट न केवल चिन्ताजनक है, अपितु चौंकाती भी है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पंजाब के ज़िला अमृतसर, तरनतारन, जालन्धर, लुधियाना, मोगा, संगरूर एवं बठिंडा इस समस्या से विशेष तौर पर प्रभावित हुए हैं। इन ज़िलों में न केवल नशा बरामदगी की घटनाएं बढ़ी हैं, अपितु नशा करने वालों की तादाद भी बढ़ी है। इस संदर्भ में एक और चिन्ताजनक पक्ष यह है कि प्रदेश के अधिकांश नशा मुक्ति केन्द्र झूठे हैं, और इनके भीतर की दास्तां के चरित्रों में नशा छोड़ने अथवा छुड़ाने वालों की अपेक्षा नशे की दल-दल को बढ़ाने वाले अधिक हैं। इनमें नशा-मुक्ति हेतु यत्नों के विपरीत अधिकांश नशेड़ियों को एक भिन्न प्रकार के माहौल में एक नये किस्म के नशे की दलदल में फंसा दिया जाता है। रिपोर्ट में यह भी पता चलता है कि नशे की तस्करी करने वाले अधिकांश लोग शहरी आबादी के हैं, जबकि ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवा अधिकाधिक नशे के सेवन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यह भी पता चला है कि अधिकतर नशेड़ी अथवा नशे के तस्कर या तो अनपढ़ हैं, अथवा कम पढ़े-लिखे हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा है कि लगभग 70 प्रतिशत नशेड़ियों के परिवार समस्या-ग्रस्त हो जाते हैं, जिससे उनका विघटन होने लगता है, और नशेड़ी युवक स्वयं तस्करी अथवा हिंसा जैसे अपराधों में लिप्त होने लगते हैं। इस प्रकार जो स्थिति सामने आती है, उसे देख और समझ कर यह आभास होता है कि नशे के मोर्चे पर हमारे अभी तक के सारे प्रयास निष्फल सिद्ध हुए हैं। सर्वाधिक गम्भीर समस्या पुलिस प्रशासन की इस पूरे मामले में निजी संलिप्तता की है। नशा तस्करी और नशा बरामदगी के अधिकांश मामलों में पुलिस कर्मियों के चेहरे भी सामने आये हैं। ऐसी स्थिति में नशे की तस्करी पर अंकुश लगाने की प्रक्रिया की सफलता की सम्भावनाएं क्षीण होने लगती हैं। पंजाब में भी यही कुछ हुआ है और नशे की तस्करी एवं सेवन करने वालों की तादाद का विस्तार पड़ोसी राज्यों हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश तक हुआ है। नशीले पदार्थों की तस्करी एक प्रकार से अन्त:राज्यीय कारोबार बन गया है और इससे उपलब्ध होने वाली भारी-भरकम आय को देख कर, इसमें शामिल होने वाले युवाओं की संख्या भी निरन्तर बढ़ी है।हम समझते हैं कि नि:संदेह पंजाब और पड़ोसी राज्यों में नशे के कारोबार और नशेड़ियों की बढ़ती समस्या निरन्तर चिन्ताजनक होती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण अपने एक निकट पड़ोसी देश की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयां तो हैं ही, अपने ही समाज के एक वर्ग की संलिप्तता का बढ़ते जाना भी खतरे का सूचक है। पंजाब के उच्च पुलिस प्रशासन तक इस खतरे की आंच नि:संदेह पहुंची है। पुलिस प्रशासन की कुछ काली भेड़ों को चिन्हित भी किया गया है, और कइयों के विरुद्ध कार्रवाई भी हुई है, परन्तु इस काले कारोबार को किसी न किसी धरातल पर मिलते राजनीतिक एवं सत्ता-संरक्षण ने हमेशा कार्रवाई वाले हाथों को पीछे खींचने का काम किया है। समाज के एक बड़े वर्ग के लोगों का मानना है कि प्रदेश में नशे की महामारी पर यदि अंकुश लगाना है, तो प्रदेश में पुलिस, राजनीति और तस्करों के बीच पनप चुके गठजोड़ को तोड़ना लाज़िमी होगा। इस हेतु उच्च पुलिस प्रशासन को उन पुलिस-जनों के विरुद्ध  कठोर अनुशासन कार्रवाई अमल में लाना होगी ताकि अन्यों के समक्ष यह एक उदाहरण बन सके।