भीड़ हिंसा के विरुद्ध पहलकदमी

विगत कुछ समय से जमा हुई लोगों की भीड़ों की ओर से कोई न कोई कारण बता कर एक अथवा दो व्यक्तियों को निशाना बना कर उनसे बुरी तरह से मार-पीट की जाती है। इस निर्मम कृत्य को रोकने का यत्न ही नहीं किया जाता तथा अधिकतर पुलिस मूक दर्शक बन कर गुंडागर्दी के ऐसे नाच को देखती रहती है। नि:संदेह ऐसे कृत्य भारतीय लोकतंत्र एवं इसके धर्म-निरपेक्ष संविधान पर ऐसा धब्बा हैं जिसे मिटाया जाना अत्याधिक कठिन है। ऐसे काम देश की आत्मा को आहत करते हैं। खेद इस बात का है कि ऐसा नकारात्मक व्यवहार घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है। देश के भिन्न-भिन्न भागों से निरन्तर ऐसे समाचार मिलते रहते हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में एक महिला से बच्चा चुराने के सन्देह में बुरी तरह से मार-पीट की गई। इसी प्रदेश के सैम्बल इलाके में एक व्यक्ति को बच्चा चुराने की अ़फवाह के कारण भीड़ की ओर से पीट-पीट कर मार दिया गया। गौ-रक्षा के नाम पर एकत्रित हुई भीड़ों ने देश भर में ऊधम मचाये रखा है। इस संबंध में केन्द्र सरकार मौन धारण किए बैठी है। अधिकतर इसके प्रवक्ता कहते हैं कि शांति एवं व्यवस्था का संबंध राज्यों के साथ है। इसलिए वे कुछ नहीं कर सकते, परन्तु ऐसे विषयों को सुलझाने के लिए सांझी सूचि में शामिल किया गया है। राज्यों के अतिरिक्त केन्द्र सरकार भी इस संबंध में कानून बना सकती है, परन्तु आम तौर पर यह कहा जाता है कि पहले ही ऐसे अपराध के संबंध में कानून बने हुए हैं। जिन पर पुलिस ने अमल करना होता है जो ऐसी घटनाओं पर प्रभावी हो सकते हैं। परन्तु हमें खेद है कि ऐसे अत्यंत गम्भीर विषय पर भी केन्द्र सरकार टालमटोल की नीति पर ही चलते दिखाई दे रही है। अभी जम्मू में एक छोटी-सी लड़की के साथ कुछ दिनों तक दुष्कर्म किये जाने के बाद उसकी हत्या किये जाने की बात भी स्मृतियों में ताज़ा है। इसमें आश्चर्य की बात यह थी कि इस कृत्त्य के लिए दोषी बनाये गए लोगों के पक्ष में भारतीय जनता पार्टी के कई नेता एवं विधायक खुल कर सामने आये थे, जिससे यह स्पष्ट रूप से प्रकट होता था कि वे इस बात को  साम्प्रदायिक रंगत देने का यत्न कर रहे हैं। इसी प्रकार पहलू खान का मामला भी देश में उच्च स्तर पर उभरा था। इसमें हरियाणा में गायों को लाने-ले जाने वाले एक व्यक्ति पहलू खान एवं उसके पुत्र को अप्रैल, 2017 में रोक कर भीड़ की ओर से उसकी भीषण मारपीट की गई थी जिसमें पहलू खान की मृत्यु हो गई थी। बाद में पहलू खान के बेटों सहित 47 गवाहों ने अपने बयान अदालत में दिये थे। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि अदालत ने सबूत न होने के आधार पर सभी 6 दोषियों को बरी कर दिया था जबकि इन दोषियों के द्वारा पहलू खान एवं उसके पुत्र के साथ मारपीट किये जाने के वीडियो दृश्य भी सामने आये थे। अब इस संबंध में हम कुछ राज्यों की ओर से उठाये गये पगों की प्रशंसा करते हैं। राजस्थान सरकार ने भीड़ों की ओर से कुछ व्यक्तियों को निशाना बना कर हिंसा पर उतारू होने के संबंध में बिल पास कर दिया है। ऐसा पहलू खान की घटना के दोषियों के बरी हो जाने के बाद किया गया। इससे पहले मणिपुर की विधानसभा ने दिसम्बर, 2018 में इसी प्रकार का बिल पास किया था। राजस्थान विधानसभा में इस बिल पर बहस के दौरान भारतीय जनता पार्टी के कई विधायकों ने कड़ा विरोध प्रकट किया तथा यह भी कहा कि ऐसा केन्द्र सरकार को करना चाहिए। परन्तु मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस पर कड़ा रुख धारण करते हुए कहा, कि इसे विधानसभा भी पास कर सकती है। प्रदेश सरकार की ओर से बनाये गये इस कानून में भीड़ की ओर से हिंसक होने पर कड़ी सज़ाओं का प्रावधान किया गया है। इसमें उम्र कैद एवं पांच लाख रुपए तक का जुर्माना भी शामिल है। अब ऐसा ही कानून बंगाल सरकार बनाने जा रही है। इसमें भी भीड़ की ओर से हिंसक होने पर निशाना बनाये गये लोगों के साथ मार-पीट करने के बारे में कड़ा कानून बनाये जाने का प्रस्ताव किया गया है। यह भी, कि धर्म, जाति, वर्ग, भाषा, राजनीतिक विचारधारा अथवा किसी अन्य बात को आधार बना कर की गई हिंसा को गम्भीर अपराधों की श्रेणी में शामिल किया जा रहा है। इसके साथ-साथ आज कल सोशल मीडिया का एक यह पक्ष भी सामने आया है कि इसके माध्यम से कुछ शरारती तत्व अ़फवाहें फैलाने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे तत्वों को काबू करने के लिए भी इस कानून में पुख्ता प्रबंध किए जा रहे हैं। नि:संदेह ऐसी मानसिकता पर सख्ती के साथ अंकुश लगाये जाने की आवश्यकता होगी। समाज के जो भी लोग साम्प्रदायिकता अथवा जाति-बिरादरी के नाम पर लोगों को इस प्रकार की हिंसा के लिए भड़काते हैं, उन्हें कड़ा सन्देश दिया जाना बहुत ज़रूरी है।  कड़ा कानून बना कर एवं उसे अमल में लाकर ही ऐसा सम्भव हो सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द