असम में विदेशी करार दिए गए लाखों लोग कहां जाएंगे ?

नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) सरकार के गले की हड्डी बनने वाला है। क्योंकि बांग्लादेश किसी भी कीमत पर इन अवैध नागरिकों को स्वीकार करने वाला नहीं है, बल्कि इसके दबाव पर वहां जो हिंदू-मुस्लिम शुरू होने वाला है, उससे बांग्लादेश में रह रहे 1 करोड़ 40 लाख हिंदुओं की सुरक्षा और खतरे में पड़ सकती है। यह अकारण नहीं है कि बांग्लादेश के हिंदू सोशल मीडिया में कहीं ज्यादा मुखरता से इन शरणार्थियों को मुस्लिम मानने से इन्कार कर रहे हैं। वास्तव में यह अनुमानित डर नतीजा है।   
बांग्लादेश ने एनआरसी (नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) पर क्या कहा है? बांग्लादेश के विदेश मंत्री का बयान अपने यहां बहस के केन्द्र में नहीं है। यह मुंह चुराने जैसा है। राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण की वजह से उत्पन्न समस्या कभी न कभी विकराल रूप धारण करेगी। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मोमेन ने कहा, एनआरसी से जो 19.7 लाख लोग बाहर हैं, मुझे नहीं लगता वे बांग्लादेशी हैं। मुझे भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने फोन किया। बोले, मिल-जुलकर यह मामला सुलझा लेंगे। इस बयान को सुनने के बाद किसी से पूछिए, कैसे सुलझा लेंगे? जवाब ज़ीरो बटा सन्नाटा है। विदेश मंत्री मोमेन ने स्पष्ट कर दिया है, जो लोग विभाजन के बाद यहां से उस पार भारत गये  या 1971 से पहले भारत गये, उन्हें हम बांग्लादेशी नहीं मानते। अब भारत के समक्ष ये साबित करने की चुनौती है कि जो बांग्लादेशी भारत में हैं, वे 1971 के बाद आये हैं। यह साबित हुआ तो शायद बांग्लादेश उन्हें वापिस लेना स्वीकार करे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फि र क्या ये एनआरसी से छंटे लोग पाकिस्तान भेजे जाएंगे? 1955 से 1971 तक का एक ऐसा कालखंड है, जब पूर्वी पाकिस्तान वजूद में था। मगर, नया पाकिस्तान पुट्ठे पर हाथ रखने देगा क्या? बांग्लादेशी नागरिकों की वापसी का सवाल विक्रम और बेताल जैसा रूप ले लेगा, देखते रहिएगा। बांग्लादेश उन बयानों को काट कर रहा है, जिससे उसे ज़िम्मेदारी से बच निकलने का रास्ता मिल रहा हो। 14 जुलाई, 2018 को राजनाथ सिंह बांग्लादेश में थे। शेख हसीना से बातचीत में आतंकवाद समेत कई विषय एजेंडे में थे। तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तब जानकारी दी थी कि हमने 14 लाख बांग्लादेशियों को भारत आने के लिए वीज़ा दिया। राजनाथ सिंह ने क्या ऐसा कुछ कहा था कि एनआरसी सूची से बाहर होंगे, उन्हें बांग्लादेश वापिस भेजने का फिलहाल कोई प्लान नहीं है। रविवार को डेली स्टार अखबार में पल्लव भट्टाचार्य के छपे एक लेख में ऐसा ही बताया गया है। 
इस बारे में राजनाथ सिंह ही स्पष्ट कर सकते हैं, ऐसा कहा था या नहीं। पल्लव भट्टाचार्य ने 1998 में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपी एक रिपोर्ट को भी उद्घृत किया, जिसमें असम में उस दौर के राज्यपाल लेफ्निंट जनरल एस.के. सिन्हा ने केंद्र सरकार को बताया था कि राज्य में अवैध रूप से कितने शरणार्थी रह रहे हैं, उनका कोई रिकार्ड नहीं है। ऐसी सूचनाएं और विश्लेषण बांग्लादेश के राष्ट्रीय अखबारों में छपने का मतलब यह है कि वहां मीडिया और सरकार के स्तर पर यह तैयारी हो रही है कि जब भी शरणार्थी वापसी का सवाल बातचीत की टेबल पर आये, बांग्लादेश उसे काउंटर करने को तैयार रहे। इसके लिए बांग्लादेश का सोशल मीडिया भी सक्रिय है। 
बांग्लादेश में एनआरसी के आलोचक पूछते हैं, इसमें 33 साल लगे, तो उसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? हम कैसे मान लें कि वे बांग्लादेशी नागरिक हैं। बांग्लादेश में विपक्ष भी शेख हसीना सरकार से सवाल नहीं कर रहा। एनआरसी की पहली सूची जब प्रकाशित हुई थी, उसके दूसरे दिन ढाका में अवामी लीग के महासचिव ओवैदुल कादर की टिप्पणी को ध्यान से समझना चाहिए। कादर ने कहा था ‘हम इससे अवगत हैं कि असम सरकार अवैध बांग्लादेशियों की सूची तैयार कर रही है। अगर कोई समस्या खड़ी होती है, तो हम नई दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार से बात करेंगे।’ अवामी लीग के महासचिव ओवैदुल कादर के इस वक्तव्य का क्या मतलब निकालें? सीधी-सी बात है, केंद्र सरकार ने बांग्लादेश से उनके नागरिकों की वापसी पर कोई रोड मैप नहीं बनाया है। एनआरसी सूची सिर्फ़  असम में तैयार हुई और बावेला मचा, जबकि बांग्लादेशी घुसपैठिये दिल्ली और देश के दक्षिणी हिस्से तक बिखरे पड़े हैं। असम के पड़ोसी राज्यों में अलर्ट हो रखा था कि कोई बांग्लादेशी वहां से निकलकर उनके यहां न बस जाए। मगर, राज्यों के बीच खुली सीमा और घने जंगलों का फायदा घुसपैठिये उठा ही लेते हैं। 
केंद्र सरकार के पास कोई समग्र योजना नहीं दिखती कि घुसपैठ किये बांग्लादेशियों की पूरे देश में निशानदेही कर उन्हें वापिस उनके वतन कैसे भेजा जाए। यह सिर्फ चुनावी नारा और हिंदू वोट बैंक को मज़बूत करने की कवायद भर क्यों दिखने लगती है? बांग्लादेश में विपक्षी और सत्तारूढ़ दल के नेता इसे भाजपा का हिंदू एजेंडा निरूपित करने लगे हैं। उससे क्या वहां माहौल बिगड़ेगा? बांग्लादेश में 8.5 प्रतिशत हिंदू हैं। सबसे चिंता वाली बात बांग्लादेश में रह रहे एक करोड़ 40 लाख हिंदुओं की सुरक्षा की होगी। क्योंकि वहां भी हिंदू-मुसलमान करने  वाली पार्टियां इस मुद्दे को हवा देने की ताक में हैं। वहां संसदीय निर्वाचन से पहले अक्तूबर 2018 में चुनाव आयोग ने बांग्लादेश जमाते इस्लामी को प्रतिबंधित किया था, इससे प्रमुख विपक्षी ‘बीएनपी’ अकेले पड़ गई थी।
ये वही लोग हैं, जो जमाते इस्लामी से बगलगीर होकर बांग्लादेश में हिंसा की राजनीति करते रहे हैं। ऐसे बड़े मौके आये, जब बीएनपी और जमात ने अपने राजनीतिक मंचों से भारत विरोधी मिसाइलें दागीं हैं । अप्रैल 2017 में शेख़ हसीना भारत आयीं और 22 समझौते किये, इसमें रक्षा डील भी थी। तब खालिदा जिया ने हवा फैलाई कि हसीना ने बांग्लादेश को बेच दिया है। शेख़ हसीना के फिर से सत्ता में आने से बांग्लादेश में इस्लाम के नाम पर राजनीति करने वाले बोतल में बंद हो चुके थे। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नेता ख़ालिदा जिया ट्रस्ट में आर्थिक घोटाले की वजह  से 17 साल के लिए जेल में कैद कर दी गई हैं, मगर इससे उनकी पार्टी मर-खप गई ऐसा भी नहीं है। एनआरसी का मुद्दा बांग्लादेश में मृतप्राय: विपक्ष को पुनर्जीवित करेगा, इसकी आशंका से हम इन्कार नहीं कर सकते।  —इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर