हरियाणा के किसानों को तोहफा

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा किसानों को राहत देने के लिए की गई ताज़ा घोषणा से प्रकट होता है कि प्रदेश में बहुत शीघ्र चुनावी रणभेरी बज सकती है। इस घोषणा के अनुसार प्रदेश के किसान बैंकों से लिए गए ऋण के संदर्भ में एकमुश्त अदायगी करना चाहें, तो उन्हें इस ऋण पर आयद ब्याज़ और जुर्माना की राशि माफ कर दी जायेगी। इस प्रकार इस राहत की घोषणा 4750 करोड़ रुपए तक हो सकती है। इस राहत-घोषणा से प्रदेश के लगभग 14 लाख किसानों को लाभ होगा। इस राहत के लिए किसानों की अलग-अलग ढंग से दर्जाबंदी की गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि किसानों पर ऋण की मूल राशि तो थोड़ी है, परन्तु समय पर अदायगी न करने अथवा कई बार किश्तें न दे पाने के कारण हुए जुर्माने और ब्याज़ के कारण ही इस ऋण राशि में अथाह वृद्धि हुई है। अब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर  की ब्याज़ और जुर्माना आदि को माफ किये जाने की घोषणा से नि:संदेह ऋण-बोझ तले दबे किसानों को राहत सहकारी कृषि समितियों, ज़िला केन्द्रीय सहकारी बैंकों और हरियाणा भू-सुधार एवं विकास बैंकों से लिए गये ऋण से राहत मिल सकती है। 
हम समझते हैं कि बेशक यह एक अच्छी घोषणा है, परन्तु प्रदेश विधानसभा चुनावों से थोड़ा पूर्व, इस राहत का क्रियान्वयन स्वत: संदेह के घेरे में आ जाता है। मुख्यमंत्री खट्टर इन दिनों जन-आशीर्वाद यात्रा पर हैं, और इस यात्रा के दौरान ही की गई इस घोषणा से संदेह के बादल और घने हो जाते हैं। यह एक तथ्य भी विचारणीय हो जाता है कि ऋण राशि न लौटा पाने के कारण अनेक किसानों के बैंक खाते निष्क्रिय घोषित हो चुके हैं। इस कारण मूल ऋण राशि से ब्याज़ और जुर्माने की राशि दोगुणा से भी अधिक बन गई है। मुख्यमंत्री की घोषणा से यह संकेत भी मिलता है कि अधिकतर किसानों को माफी की इस घोषणा के बावजूद ब्याज़ के 50 प्रतिशत की अदायगी तो करनी ही पड़ेगी। मुख्यमंत्री द्वारा इस घोषणा को प्रधानमंत्री राहत घोषणाओं के साथ जोड़ा जाना जहां किसानों को आशावान बनाता है, वहीं इस घोषणा के समय को लेकर संदेह भी उपजते हैं। प्राय: होता यह है कि घोषणाओं के तथ्य समय के अन्तराल के साथ बदलते चले जाते हैं। वर्तमान घोषणा के समय को लेकर भी संदेह उपजने लगता है कि कहीं यह एक चुनावी घोषणा बन कर न रह जाए। हरियाणा भी पंजाब की ही भांति कृषि प्रधान राज्य है, परन्तु अन्न उपजाने वाले किसान की हरियाणा में भी दुर्गति ही देखी चली आ रही है। हम यह भी समझते हैं कि बेशक मुख्यमंत्री खट्टर की यह घोषणा आशावाद को दर्शाती है, परन्तु मुख्यमंत्री को यह भी देखना होगा कि उनकी घोषणा पर अमल भी प्रशासनिक धरातल पर ईमानदारी एवं प्रतिबद्धता से हो। मुख्यमंत्री यदि अपनी घोषणा के क्रियान्वयन पर सक्रिय नज़र रखें, तो यह प्रदेश के किसानों के एक वर्ग को बड़ी हद तक संतुष्ट कर सकती है।