बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के प्रति हम कितने संवेदनशील हैं?

त्रासदियां और हादसे जीवन का हिस्सा होते हैं। व्यक्ति तो अपनी ज़िंदगी में आई विपदाओं, जीवन की दुश्वारियों, सदमों और तकलीफों को वक्त के साथ बिरासता चलता है, लेकिन जब प्रति वर्ष वर्षा ऋतु आती है, उससे पूर्व सरकारें तैयारी क्यों नहीं करती? बाढ़ हर साल आती है और मानवीय त्रासदियों के प्रति सरकारी तंत्र और समूची व्यवस्था की लापरवाही उजागर हो जाती है। लुटे-पिटे बेसहारा लाखों लोग राहत कैम्पों में भेजे जाते हैं। कहीं-कहीं तो राहत कैम्प के नाम पर कुछ भी नहीं होता। कई एक शिविरों में तो खाने के लाले पड़े होते हैं। बच्चे दूध और बड़े-बूढ़े पेयजल को तरसते प्राय: देखे जाते हैं। लाखों खाने के पैकेट बांटने की योजना तो बनती है, परन्तु हकीकत में बांटे कितने जाते हैं, इस पर अक्सर प्रश्न उठता है। भ्रष्टाचारी लोग सरकार के इरादों में सेंध लगा देते हैं, जिससे हालात बद से बदतर होते देखे गए हैं। इस पर भी पीड़ितों के बारे में कोई संजीदगी से बात करने को दिखाई नहीं देता। घर-बार उजड़ गए, खेत-खलिहान तबाह हो गए। बाढ़ राहत कोष का धन तरीके से बांटा भी नहीं जाता। सरकारें घोषणाएं तो करती हैं परन्तु रहते हैं ढाक के वही तीन पात। सूचना के कई साधनों के होने पर भी संबंधित लोगों को वक्त पर जानकारी क्यों नहीं मिल पाती। कुछ दिन पूर्व दिल्ली में यमुना का जब पानी बढ़ने लगा तब सरकार ने उन लोगों को तब सूचित किया जब झोंपड़-पट्टी की दहलीज़ें लांघ कर यमुना का पानी उनके घरों में घुस चुका था। राहत शिविर यदि पहले बनाए जाएं और वहां रहने, खाने का सरकार द्वारा समुचित प्रबंध हो तो गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग सही अर्थों में राहत पा सकते हैं। परन्तु ऐसा होता नहीं। यही हाल बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान, उड़ीसा इत्यादि प्रदेशों में भी देखने को मिलता है।
हमारे देश में बाढ़ कोई अनहोनी घटना नहीं है, फिर क्यों नहीं एक ऐसा विभाग बनाया जाता जो नदियों, नालों, बांध और उनके समीप रहने वाले लोगों पर कहरी नज़र रखता परन्तु ऐसा आज तक हुआ अनुभव नहीं होता। बाढ़ के पानी से सरकार का पूरा तंत्र पानी हो जाता है। राष्ट्रीय आपदा राहत बल की मदद सुरसा के मुंह में दाना साबित होती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल, सेना, हैलीकाप्टर और नाव इत्यादि देखने को मिलते हैं। क्यों नहीं वक्त रहते बाढ़ के प्रभाव से बचाव के तरीके पहले तलाश किए जाते? भारत विश्व का दूसरा बाढ़ प्रभावित देश है। बाढ़ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें निश्चित भूक्षेत्र अस्थायी रूप से जलमग्न हो जाता है और जन-जीवन प्रभावित हो जाता है। इस वर्ष 200 के लगभग व्यक्ति मौत के गाल में चले गए। इसके अतिरिक्त जो बीमारियां भूख-प्यास और प्रदूषित पानी पीने से पैदा हुईं उनके इलाज पर भी बहुत-सा धन सरकारों को खर्च करना पड़ता है। एक मुहावरा है— अशर्फियां लुटी कोयलों पर मोहर और आधे से अधिक भारत बाढ़ के घेरे में माना जाता है। उत्तराखंड, हिमाचल आदि पहाड़ी क्षेत्रों में बादलों का फट पड़ना इन्हीं दिनों में तबाही का सामान पैदा करते हैं। यही दिन यात्राओं के माने जाते हैं और इन्हीं दिनों भू-स्खलन की घटनों भी बहुत होती हैं, जिसके कारण आवाजाही के साधन अवरुद्ध तो होते ही हैं, परन्तु कई गाड़ियों की दुर्घटना में भी सैकड़ों लोग मृत्यु के हवाले हो जाते हैं। कमेटियां बनती हैं, कमीशन बनते हैं, जानकारी भी मिलती है लेकिन सब फाइलों में दब कर रह जाती हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। बाढ़ नियंत्रण के कई सुझाव सरकार के सामने लाए जाते हैं, जिनमें आवास को मजबूत बनाना और निचली जगहों से वर्षा ऋतु से पूर्व अपना सामान किसी अन्य जगह पर भेज दें। यदि किसी नदी के किनारे लोगों का आवास है, उन्हें पहले से किसी राहत शिविर में भेज दें और शासन, प्रशासन, पुलिस, फायर बिग्रेड, इत्यादि को चाक-चौबंद करना और इसके लिए यदि कुछ गैर-सरकारी समाजसेवी संस्थाओं को बाढ़ से बचाव के लिए प्रशिक्षण देना क्योंकि बाढ़ में कई बार बांध और पुल आदि भी टूट जाते हैं। ऐसे में गैर-सरकारी संस्थों बहुत सेवा करती देखी गई हैं। पुलिस को चोर-उचक्कों और बदमाश मनोवृत्ति वाले लोगों पर नज़र रखनी चाहिए, क्योंकि बाढ़ पीड़ित कई बार अचानक घर छोड़ने पर विवश हो जाते हैं। सरकारों को संवेदनशील होना चाहिए।
विपदाओं में ही राष्ट्र की असली ताकत का पता लगता है। भूकम्प, सुनामी, चक्रवात और बाढ़ जैसे प्राकृतिक हादसे हुए हैं और कुदरत का कहर कभी न कभी देश के किसी भाग पर दिखाई देता है, तब ऐसी विपत्तियों का प्रादेशिक और केन्द्र सरकारें एकजुट होकर सामना करें, जिससे मानवता पीड़ा तो अनुभव करेगी, परन्तु दर्द बहुत जल्द मिट जायेगा और फिर ज़िंदगी अपनी रफ्तार पकड़ लेगी। किसानों की सहायता अधिक से अधिक करनी चाहिए, क्योंकि किसान हमारे देश की रीढ़ की हड्डी हैं और बाढ़ किसानों को ही अधिक हानि पहुंचाती है। राष्ट्र के भविष्य की कल्पना उसके अतीत से होती है, यह बात सरकारों को ध्यान में रखनी चाहिए।