कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना की मेरी ताज़ा यात्रा

मैं40 वर्ष पूर्व पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के संचार केन्द्र का प्रमुख होता था। गत सप्ताह पंजाबी किसानों के इस मक्के में जाने का संयोग बन गया। निश्चय ही मेरे समय का इस समय वहां कोई अधिकारी नहीं। डा. रणजीत सिंह तोमर जिन्होंने मेरे बाद संचार केन्द्र की कमान संभाली, कैम्पस के निकट रहते हैं। उनको पता चला तो वह मुझे मिलने आए। वर्तमान केन्द्र प्रमुख जगदीश कौर तथा डा. रणजीत सिंह के शब्दों में कृषि का धंधा अब जीवनशैली तक सीमित नहीं। व्यापारिक केन्द्र बन चुका है। वैसे भी विकसित देशों की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अब उद्योग तथा सर्विस सैक्टर में जा चुका है। निश्चय ही अब कृषि शिक्षा का रुझान कृषि की नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के साथ-साथ उनको अन्य धंधों के लिए प्रेरित करना हो गया है। स्वै-रोज़गार के बढ़िया संसाधन पैदा करने सहित।  अब खोज से संबंधित कार्य विधियों में बेमौसमी वर्षा, तापमान की गिरावट, सूर्य रौशनी की कमी तथा धरती निचले जल का स्तर नीचे होते जाने को मुख्य रखते हुए कम समय लेने वाली फसलें बीजे जाने को प्राथमिकता दी जाती है। इसके साथ ही कतारों में अधिक मूल्य वाली फसलों के लिए ड्रिप इरिगेशन अर्थात् बूंद सिंचाई की सिफारिश भी की जाती है। यह भी कि पानी की कमी को मुख्य रखते हुए ड्रिप लाइनें/पाइपें धरती की सतह पर बिछाने की बजाय धरती की सतह से 20 सैंटीमीटर नीचे डाली जाएं। यह भी कि किसान अब सिर्फ अन्नदाता नहीं, प्राकृतिक स्रोतों का पहरेदार भी है और अधिक आमदनी वाली उपयुक्त विधियां अपनाने वाला उद्योगपति भी। उप-कुलपति बलदेव सिंह ढिल्लों के साथ हुई सरसरी मुलाकात में पता चला कि लुधियाना यूनिवर्सिटी द्वारा राज्य स्तर पर 833 नई किस्में जारी की गई हैं और राष्ट्रीय स्तर पर 173 किस्में। इनमें कितने की कम बीज वाली किस्में ही नहीं। मोती बाजरा, पारस मक्की तथा बीटी कॉटन आदि दोगली/दोस्ती किस्में भी शामिल हैं। जहां तक मधुमखियां पालने तथा मशरूम की खेती का संबंध है, यूनिवर्सिटी के प्रयास से देश का 37 प्रतिशत शहद और 14 प्रतिशत मशरूम पंजाब राज्य मुहैया करता है। ऐसे ही तो देश के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस यूनिवर्सिटी को देश की पांच दर्जन कृषि यूनिवर्सिटियों में से दूसरे स्थान पर रखा है। मैं निजी तौर पर संचार-प्रसार का व्यक्ति होने के नाते इस यूनिवर्सिटी को किसान मेलों में हुए विकास से मापता हूं। कुछ दशक पूर्व यह यूनिवर्सिटी सिर्फ तीन स्थानों पर किसान मेले लगाती थी। आज के दिन यह मेले राज्य के कृषि विज्ञान केन्द्रों में भी लगाए जाते हैं। यह मेले किसान भाईयों और किसान महिलाओं की सुविधा और रबी तथा खरीफ को मुख्य रखते हुए मार्च तथा सितम्बर महीनों में ही लगाए जाते हैं। लुधियाना, बठिण्डा, फरीदकोट तथा गुरदासपुर जैसे बड़े शहरों में ही नहीं बदोवाल सोंपड़ी, नाग कलां तथा रौणी जैसे ऐसे गांवों में भी जहां यूनिवर्सिटी ने कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित किए हुए हैं। इन पंक्तियों के लिखने के समय आज के दिन (10 सितम्बर, 2019) एक मेला नाग कलां लगा हुआ है और दूसरा बल्लोवाल में। नाग कलां अमृतसर ज़िले में मजीठा कस्बे के निकट एक गांव हैं और बल्लोवाल सोंखड़ी बंगा के निकट औड़ की तरफ पटियाला ज़िले के रौणी गांव जैसा कम जनसंख्या वाला गांव। यूनिवर्सिटी के प्रसार, शिक्षा विभाग से संबंधित डा. कमलप्रीत ने बहुत उत्साह से बताया कि इन मेलों में किसानों के बच्चे-बच्चियां भी हिस्सा लेते हैं, जिनको कृषि की नई तकनीकों के अलावा यूनिवर्सिटी में पढ़ाये जाते डिग्री और डिप्लोमा कोर्सों की जानकारी भी मिलती है। वह देखते हैं कि यहां किसान भाईयों और बहनों को वैज्ञानिक कृषि के लाभ, प्राकृतिक स्रोतों की बचत करने तथा अपनी उपज का अधिक से अधिक मूल्य लेने के ढंग-तरीके बताए जाते हैं। कृषि मशीनरी तथा अन्य कृषि वस्तुओं की प्रदर्शनी इन मेलों की जान है। उनकी आंखों के सामने कृषि में उपलब्धियां हासिल करने वालों को सम्मानित किया जाता है। इनसे आज के बालक कल के माहिर बनने का सपना लेते हैं। इन मेलों में किसान महिलाओं के लिए हाथ की बनीं अलग-अलग वस्तुओं की प्रदर्शनी लगती है और उनको बताया जाता है कि सिलाई, कढ़ाई, आचार, चटनियां, मुरब्बे कैसे तैयार किए जाते हैं और इनकी बिक्री कैसे करनी है। बच्चे-बच्चियां, भैंसें, गायें, बकरियां, सुअर, मुर्गे, मछलियां पालने के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते हैं। संचार केन्द्र की ताज़ा यात्रा के समय यह भी पता चला कि अब यूनिवर्सिटी ने कृषि संदेश नाम का डिज़ीटल अखबार भी जारी किया है, जिसके द्वारा सारी जानकारी सीधी किसानों के मोबाइल फोन पर पहुंच जाती है। इसी तरह पी.ए.यू. मोबाइल ऐप का किसी भी स्मार्ट फोन पर डाउनलोड करके लाभ उठाया जा सकता है। यही बस नहीं, सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूक करने के लिए हमारे विवाह, हमारे भोग, न ऋण, न चिता रोग आदि नारे किसान भाईयों और बहनों को स्वस्थ जीवन के लिए प्रेरित करते हैं।  विशेषत: यह है कि मेरे समय के प्रोग्रैसिव फार्मिंग और अच्छी कृषि मासिक पत्रिकाओं का प्रभुत्व आज भी कायम है। नए स्रोत अस्थायी होने के कारण जागृति तो खूब फैलाते हैं, परन्तु किसानों की तसल्ली लिखित शब्दों से ही होती है, जो इनकी देन है। यह पत्रिकाएं 1966 से लगातार छप रही हैं। एक चरण पर पंजाबी के प्रसिद्ध कहानीकार कुलवंत सिंह विर्क इनके सम्पादकीय बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं और उसके बाद मैं भी। 

अंतिका
(माधव कौशिक)
दास्तां अपनी है, सब की दास्तानों के खिलाफ
एक मुद्दत से खड़े हैं, आसमानों के खिलाफ
इस तरह रच बस गई, सांसों में धरती की महक
हाथ उठ जाते हैं अक्सर, आसमानों के खिलाफ