पत्र बम : सरकार के खिलाफ  साजिश या भ्रष्टाचार का खुलासा

भ्रष्टाचार को उजागर करते पत्र ने सरकार और भाजपा की सियासत में मानो भूचाल ला दिया है। इस पत्र के सोशल मीडिया में आते ही सरकार और भाजपा में मानो गृह युद्ध छिड़ गया है, तो विपक्ष भी सरकार को घेरने को तैयार है। सोशल मीडिया पर आए पत्र में भाजपा के सीनियर नेता शांता कुमार पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप दागे गए हैं। सबसे बड़ा आरोप है कि सरकार बनने के बाद स्वास्थ्य मंत्री के एक चहेते की कंपनी से 35 करोड़ की जैनेरिक दवाइयां महंगे दामों पर खरीदी जा रही हैं। इसके साथ ही हिमाचल में महंगे दाम सीमेंट, धारा 118 की स्वीकृति और सरकारी होटलों की सौदेबाजी को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं और शांता कुमार को भ्रष्टाचार के खिलाफ  आवाज़ उठाने की नसीहत दी जा रही है। पत्र में शांता कुमार की पुस्तक ‘भ्रष्टाचार का कड़वा सच’ का जिक्र करते हुए सवाल किया जा रहा है कि यह पुस्तक लिखने का मकसद क्या था? यदि आप वाकई में भ्रष्टाचार के खिलाफ  हैं, तो फि र प्रदेश की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ  आवाज़ क्यों नहीं उठा रहे हैं? सोशल मीडिया पर वॉयरल हुए इस पत्र को लेकर कई सवाल उठना लाज़िमी है।  सियासी चर्चा यह हो रही है कि यह पत्र प्रदेश सरकार को बदनाम करने की एक साजिश है या वाकई में सरकार में हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा है। पत्र को जारी करने वाले की तलाश करने को लेकर पुलिस ने मामला दर्ज किया और एक युवक से पूछताछ की। पुलिस के अनुसार युवक ने इस पत्र के मामले में पूर्व मंत्री रविंद्र रवि का नाम भी लिया। पुलिस ने रविद्र रवि का मोबाइल जब्त किया और उनको थाने में पूछताछ के लिए बुलाया। पत्र को लेकर रविंद्र रवि का नाम आने पर शांता कुमार ने भी बयान जारी किया कि जिन लोगों के नाम आ रहे हैं, उनसे पूछताछ होनी चाहिए और सच सामने आना चाहिए। रविंद्र रवि का नाम आने से पत्र की सियासत धूमल और शांता गुट के बीच सियासी लड़ाई के रूप में सामने आ रही है। रविंद्र रवि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के समर्थक हैं, जिससे यह माना जा रहा है कि धूमल समर्थकों को निशाना बनाया जा रहा है। वहीं रवि ने भी मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह उनके खिलाफ  साजिश है और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। इस प्रकरण को लेकर रवि ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से भी मुलाकात की है। पत्र को लेकर प्रदेश की सियासत में यही चर्चा हो रही है कि भाजपा की सरकार होते हुए भी भाजपा के ही पूर्व मंत्री को पूछताछ के लिए थाने बुलाया जा रहा है, जिसे लोग अच्छा नहीं मान रहे, लेकिन कानून के सामने तो सब बराबर होते हैं, चाहे पूर्व मंत्री हो या और कोई भी। सवाल भी यह उठ रहा है कि सरकार पत्र जारी करने वालों की जांच तो तेजी से कर रही है, लेकिन पत्र में लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच भी होनी चाहिए। पत्र में कुछ बहुत गंभीर और तथ्यों के साथ आरोप लगाए गए हैं। सरकार ने अभी तक पत्र में लगाए गए आरोपों की जांच के बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार खासतौर से 35 करोड़ की जैनेरिक दवाओं की खरीद की जांच कर सकती है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सरकार पर लगे इन आरोपों को सख्ती से ले रहे हैं और संबंधित अधिकारियों को जांच के मौखिक आदेश दिए गये  हैं।  प्रदेश की सियासत में इस पत्र को लेकर सरकार के साथ-साथ शांता/धूमल गुट के नेताओं के बीच विवाद की शुरुआत भी माना जा रहा है। आगे यह मामला किस रूप में बदलता है, यह तो समय ही बताएगा। वहीं कांग्रेस के विधायक विक्रमादित्य ने सरकार से मांग की है कि इस पत्र में भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए गए हैं, उनकी जांच होनी चाहिए। अब देखना है कि सरकार पत्र बम के मामले में सियासी नफ ा-नुक्सान को देखते हुए क्या रुख अपनाती है, लेकिन जब यह पत्र जनता के बीच आ गया है, तो सरकार को चाहिए कि वह इस पूरे मामले की जांच करवा कर सच्चाई जनता के समाने सार्वजनिक करे, जिससे पत्र को जारी करने से लेकर आरोपों की सच्चाई जनता के सामने आ सके।
निवेश को जमीन पर स्थापित करने की चुनौती
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर औद्योगिक निवेश के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। देश-विदेश के दौरों पर बाद अब प्रदेश में ही उद्योगपतियों को आमंत्रित कर मिनी कॉनक्लेव में एमओयू साइन हो रहे हैं। कुल्लू और शिमला में आयोजित मिनी कॉनक्लेव में उद्योगपतियों के साथ करोड़ों रुपए के एमओयू साइन किए गए और यह प्रक्रिया लगातार जारी है। सरकार का लक्ष्य 85 हजार करोड़ का औद्योगिक निवेश करना है, जिसे धर्मशाला में होने वाली इनवेस्टर मीट तक पूरा होने की उम्मीद है। फाइलों  में एमओयू साइन हो जाने के बाद सरकार के समक्ष असली चुनौती जमीन पर उद्योगों की स्थापना करना होगा। सरकार का कहना है कि औद्योगिक निवेश से प्रदेश में खुशहाली आएगी और लाखों बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा। यह तभी होगा जब यह उद्योग हिमाचल की जमीन पर स्थापित होंगे। पूर्व सरकार के समय आयोजित इनवेस्टर मीट में हुए एमओयू के बाद जमीन पर कितने उद्योग स्थापित हुए, इसके स्पष्ट आंकड़े तो सरकार ने जारी नहीं किए, लेकिन एक अनुमान के अनुसार जितनी उम्मीद थी, उतनी सफ लता नहीं मिली थी। इसका कारण यह माना जाता रहा है कि उद्योगपतियों को मिलने वाली छूट का न होना और नियम कानून की पेचीदगियों से परेशानी बनती रही है। उद्योगपतियों को आमंत्रित तो किया जाता है, लेकिन जब फ फाईल लेकर दर्जनों विभागों की एनओसी लेने जाते हैं, तो बहुत चक्कर काटने पड़ते हैं। सरकार ने इसके लिए सिंगल विंडो सिस्टम तो तैयार किया है, लेकिन वह कभी कारगर साबित नहीं है। जिससे सरकार को देखना होगा कि जिन उद्योगपतियों ने सरकार के पर भरोसा कर एमओयू साइन किए हैं, वे अपना उद्योग हिमाचल की जमीन पर आसानी से स्थापित कर सकें, यह सरकारी सिस्टम के सामने बड़ी चुनौती है।
खनन माफि या पर शिकंजा कसने में नाकाम क्याें सरकार
खनन माफि या पर सरकार शिकंजा क्यों नहीं कस पा रही है, यह सवाल खड़ा हो रहा है। खनन माफि या इतना हावी होता जा रहा है कि वह अफ सरों पर भी हमला करने से नहीं डर रहा है। पहले भी सिरमौर, नालागढ़ और ऊना क्षेत्र में ऐसे मामले सामने आए, जब खनन माफि या के लोगों ने सरकारी कर्मचारियों पर हमले किए। अब ताजा मामला आया है कि कांगड़ा ज़िले में जब खनन करने वालों से कागज जांच के लिए मांगे, तो उन्होंने अधिकारी की गाड़ी के साथ तोड़-फ ोड़ की। इससे तो अब यही लगने लगा है कि खनन माफि या को अधिकारियों का भी डर नहीं रहा है। हमेशा सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि सत्ताधारी नेताओं के संरक्षण में ही खनन माफिया कार्य कर रहा है। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने ऊना ज़िले में भाजपा नेताओं के संरक्षण में खनन माफि या के सक्रिय होने के खुलकर आरोप लगाए हैं।  उद्योग मंत्री विक्रम ठाकुर भी अवैध खनन करने वालों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई की बात करते हैं। उन्होंने गत दिनों कांगड़ा में कई स्थानों पर छापामारी भी की, लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं रहा। खनन माफि या इतना हावी हो गया है कि सरकारी विभाग के कर्मचारी भी अवैध खनन को रोकने में नाकाम हैं। हर ज़िले के डीसी और एसपी अवैध खनन करने वालों के खिलाफ  सख्त कार्रवाई की बात करते हैं और अधिकारियों के साथ लगातार मीटिंग भी करते हैं, लेकिन खनन माफि या पर रोक नहीं लग पा रही है। अब सरकार और उद्योग मंत्री को ऐसे कदम उठाने चाहिएं, जिससे सरकार पर हावी हो रहे खनन माफि या पर लगाम लगाई जा सके। सरकार को जनता को यह भी जवाब देना है कि वह पूर्व कांग्रेस सरकार के समय खनन माफि या को भी मुद्दा बनाकर सरकार में आई है।