महाकवि भाई संतोख सिंह

कैथल एक प्राचीन व ऐतिहासिक शहर है। इस शहर को अनेक पीरों, फकीरों व गुरु तेग बहादुर साहब की चरण रज प्राप्त है। भाई संतोख सिंह ने भी अपनी ज़िन्दगी का बेहतरीन हिस्सा इसी शहर में बिताया, जो भाई उदय सिंह के दरबारी कवि थे। महान कवि ने जो ग्रंथ कैथल में बैठकर लिखे, उनकी गूंज देश-विदेश में पड़ी।  भाई संतोख सिंह का जन्म गांव सराय नूरदी, जिला अमृतसर (अब तरनतारन में) 22 सितम्बर, 1787 ईस्वी को भाई देशा सिंह जी के घर माता राजदेई की कोख से हुआ। इस गांव का नाम अब किला भाई संतोख सिंह जी रखा गया है। भाई काहन सिंह नाभा महानकोश पन्ना 244 में जन्म सम्वत् 1845 दर्शा रहे हैं। भाई संतोख सिंह के पिता विद्वान पुरुष थे और वह चाहते थे कि उनका पुत्र एक अच्छा विद्वान बने, इसलिए उन्होंने श्री दरबार साहिब के ग्रंथी भाई संत सिंह के पास विद्या प्राप्ति करने के लिए बैठा दिया। इसके पश्चात् सम्वत् 1865 में भाई साहिब ने कांशी में जाकर वेदों, शास्त्रों, काव्य, पिंगल की विद्या प्राप्त की। भाई साहब ने संस्कृत, हिंदी, पंजाबी, काव्य शास्त्र, वेदांत व गुरवाणी आदि का भरपूर अध्ययन किया। भाई साहब तकरीबन 15 वर्ष ज्ञानी संत सिंह जी के पास रहे। वह ज्ञानी संत सिंह जी को अपना अक्षर ज्ञान गुरु मानते हुए, गुरु प्रताप सूरज ग्रंथ में लिखते हैं—संत सिंह गुरु अख्खर दाता। 
भाई काहन सिंह नाभा के अनुसार आप के ऊपर निर्मला प्रणाली का बहुत असर था। आप संत कर्म सिंह निर्मल की संगत करके वेदांत व गुरवाणी के ज्ञाता हुए लेकिन भाई संतोख सिंह ने अपने आप को कहीं निर्मला नहीं लिखा। उनकी काव्य रचना के मंगला चरणों से प्रतीत होता है कि उनको गुरमत में पूरी श्रद्धा व प्रेम था। भाई संतोख सिंह की कलम को प्रभु ने बड़ी रवानगी बख्शी थी। उन्हें व्यंग व अलंकार का भी बहुत ज्ञान था, जैसा कि वह भूमिका पन्ना 3-4 पर लिखते हैं:
व्यंग लछनां बहुत धुनि नीके देऊं दिखाए
अलंकार सब तुकन के लिखहों परख बणाए।।
कैथल में महाकवि भाई संतोख सिंह साहित्य सभा काम कर रही है। उनकी याद में महाकवि भाई संतोख सिंह यादगारी कमेटी बनी हुई है। कमेटी के प्रधान हरजीत सिंह व कोषाध्यक्ष कुलबीर सिंह ने बताया कि भाई साहब के जन्म दिन पर हर साल तीन दिवसीय समागम करवाया जाता है, जिसमें कवि दरबार, कीर्तन दरबार, गीत-संगीत व खेलों का आयोजन किया जाता है। भाई साहब की याद में एक शानदार गुरुद्वारा गांव वालों ने बनाया हुआ है। गांव में एक पुरातन दरवाजा भी बना हुआ है जोकि जर्जर अवस्था में है। भाई साहब को बेशक आर्थिक तंगी ने तंग किया हुआ था, फिर भी वो अपने अकीदे से एक कदम पीछे नहीं हटे व अपने मिशन को निरंतर जारी रखा। कुछ समय महाराजा पटियाला कर्ण सिंह के पास भी रहे। सम्वत् 1882 में कैथल नरेश भाई उदय सिंह ने उनकी मशहूरी व चर्चा सुनकर अपने पास बुला लिया और राजकवि की पदवी पर नियुक्त कर दिया। भाई संतोख सिंह के लिखे हुए प्रसिद्ध ग्रंथ इस प्रकार हैं :
1. अमर कोश आरंभ 1818, 2. गुरु नानक प्रकाश सम्वत् 1880 समाप्त, 3. जपुजी साहिब का गर्भ गंजनी टीका समाप्त 1886, 4. आत्म प्राण का उलत्था (अनुवाद) 5. वाल्मीकि रामायण का अनुवाद, जिससे खुश होकर राजा भाई उदय सिंह ने मोरथली गांव, नजदीक पिहोवा की जागीर, भाई साहब को भेंट की थी। 6. गुरु प्रताप सूरज, प्रकाश, जो सम्वत् 1900 में समाप्त हुआ। यह रचना उनकी अमिट छाप थी।

—बलविंद्र सिंह संधा