उचित नहीं है प्रकाश पर्व पर स्वार्थी राजनीति ?

दक्षिण एशिया के क्षेत्र में शान्ति एवं सद्भावना का माहौल उत्पन्न करने के लिए श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व एक बहुत बड़ा अवसर है, क्योंकि श्री गुरु नानक देव जी ने अपने पूरे जीवन में उपरोक्त कदरों-कीमतों का प्रचार एवं प्रसार किया है। अत्याचार एवं उत्पीड़न का विरोध करते हुए मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है। स्त्री जाति को ऊंचा एवं सच्चा सम्मान दिलाने के लिए बड़ी बेबाकी के साथ लिखा एवं बोला है। अपना यह पैगाम देने के लिए उन्होंने चार उदासियों के रूप में लम्बी-लम्बी यात्राएं की हैं। वह अविभाजित भारत के कोने-कोने में गए। इसके अतिरिक्त उन्होंने मध्य पूर्व के बड़े इलाके का दौरा भी किया। अपनी इन यात्राओं के दौरान वह उस समय के भिन्न-भिन्न धर्मों को मानने वाले साधुओं-संतों, फकीरों एवं दरवेशों को भी मिले तथा इन क्षेत्रों के शासकों के साथ भी उन्होंने संवाद रचाया। यह सब कुछ उन्होंने आज से सैंकड़ों वर्ष पूर्व उस समय किया, जब आवागमन के साधन बहुत ही कम थे तथा लम्बी यात्राएं करना काफी जोखिम भरा था।
आज जब हम श्री गुरु नानक देव जी की समूची विरासत को देखते हैं, तो मन श्रद्धा के साथ झुक जाता है। इसके साथ ही जब हम पीछे पलट कर इतिहास में उस काल को देखते हैं, तो उनकी विचारधारा एवं सिद्धांतों का महत्व और भी बढ़ जाता है। आज से 550 वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में अत्यधिक, धार्मिक कट्टरता थी तथा जाति-पाति व्यवस्था के अन्तर्गत छोटी जातियों के लोगों के साथ अमानवीय व्यवहार होता था तथा स्त्री की समाज में हालत बहुत दयनीय थी। जनसमूह का एक बड़ा भाग अंध-विश्वासों की जकड़ में फंसा हुआ था तथा अधिकतर शासकों का लोगों के प्रति व्यवहार अमानवीय एवं शोषण करने वाला था। विशेष रूप से इस्लामिक सभ्यता एवं हिन्दू सभ्यता के बीच तीव्र टकराव देखने को मिल रहा था। ऐसी स्थितियों में श्री गुरु नानक देव जी ने सुल्तानपुर लोधी से उदासियों के रूप में अपनी यात्राओं की शुरुआत की। पहली उदासी के लिए रवाना होने से पहले श्री गुरु नानक देव जी कई दिनों तक अलोप रहे तथा जब वह सुल्तानपुर लोधी में गुरुद्वारा संत घाट के निकट प्रकट होकर लोगों के सामने आए तो उनकी जुबान पर ‘न कोई हिन्दू, न मुसलमान’ का शब्द था। कहने का अभिप्राय: यह था कि वह दुनिया को यह संदेश देना चाहते थे कि मनुष्य को धर्मों के आधार पर अच्छा अथवा बुरा मानने की अपेक्षा उसके गुणों के आधार पर उसकी मानवीयता समर्थक कदरों, कीमतों के आधार पर पहचान निश्चित होनी चाहिए। धर्मों एवं जातियों के घेरों से ऊपर उठ कर ‘जियो एवं जीने दो’ के आधार पर लोगों के बीच साझेदारी होनी चाहिए। इन कदरों-कीमतों के प्रचार-प्रसार के लिए ही उन्होंने विश्व के एक बड़े भाग का भी भ्रमण किया था।
तत्कालीन दक्षिण एशिया एवं मध्य पूर्व के समाज पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो यह बात उभर कर सामने आती है कि इस क्षेत्र में आज भी धार्मिक असहनशीलता पाई जा रही है। लोग धर्म के आधार पर एक-दूसरे पर अत्याचार एवं उत्पीड़न करते हैं। मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन होता है। कमज़ोर एवं अल्प मतों का जीवन असुरक्षित है। ज़िंदगी के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए उन्हें समान अवसर नहीं मिलते। व्यापक स्तर पर ज्ञान-विज्ञान की इस शताब्दी में भी लोग अंध-विश्वासों का शिकार हैं। महिलाओं की स्थिति में चाहे पहले से बहुत सुधार हुआ है, परन्तु अभी भी वे बड़ी संख्या में असुरक्षित एवं शोषण का शिकार होती हैं। इस क्षेत्र में इस्लामिक एवं हिन्दू सभ्यता के बीच टकराव आज भी बेहद तीक्ष्ण होता जा रहा है। भारत एवं पाकिस्तान के बीच बढ़ रहे टकराव को इसी संदर्भ में देखा एवं समझा जा सकता है। दोनों देश एक-दूसरे को परमाणु युद्ध की धमकियां दे रहे हैं तथा दोनों देशों का जन-समूह काफी सीमा तक भयभीत एवं सहमा हुआ दिखाई देता है। इस क्षेत्र की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थितियों की यह मांग है कि गुरु नानक साहिब का शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं सांझेदारी का संदेश पुन: इस पूरे क्षेत्र में फैलाया जाए। इस मकसद के लिए दक्षिण एशिया की सरकारों को मिल कर बड़े स्तर पर यत्न करने की आवश्यकता थी। भारत जैसे विशाल देश के भीतर भी केन्द्र सरकार एवं प्रदेश सरकारों को मिल कर इस हेतु बड़े पग उठाने चाहिएं थे परन्तु यह देख कर बड़ा दुख हो रहा है कि भारत एवं पाकिस्तान की सरकारों के बीच बढ़ रहे इस टकराव एवं तनाव ने श्री गुरु नानक देव जी के 550 वर्षीय प्रकाश दिवस के समारोहों एवं आयोजनों के संबंध में जन-साधारण के चाव एवं उत्साह को काफी सीमा तक धीमा किया है। चाहे 550 वर्षीय प्रकाश पर्व के दृष्टिगत दोनों देशों के लोगों ने करतारपुर साहिब के गलियारा के निर्माण हेतु समुचित फैसले लिए हैं तथा इस संबंध में दोनों तरफ जोर-शोर के साथ तैयारियां भी जारी हैं, ताकि निश्चित समय पर करतारपुर के गलियारा को खोला जा सके, परन्तु इसके साथ ही दोनों देशों के बीच टकराव एवं तनाव बढ़ने की आशंकाएं भी निरन्तर बढ़ रही हैं। 
खासतौर पर भारत सरकार की ओर से कश्मीर को लेकर जो फैसले लिए गए हैं, उनसे टकराव एवं तनाव में भारी वृद्धि हुई है। चाहे इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि लम्बी अवधि से पाकिस्तान की सैनिक व्यवस्था ने भारत के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है तथा जम्मू-कश्मीर सहित भारत के अन्य भागों में भी समय-समय पर आतंकवादी हमले करवाए जाते रहे हैं। फिर भी दोनों देशों के व्यापक हित एवं खासतौर पर दोनों देशों के आम लोगों के हित यह मांग करते हैं कि अभी भी दोनों देश श्री गुरु नानक देव जी के 550 वर्षीय प्रकाश पर्व की भावना को दृष्टिगत रखते हुए अपना टकराव एवं तनाव घटाने के लिए नये सिरे से पहलकदमी करें तथा ऐसे माहौल का सृजन करें, जिससे श्री गुरु नानक देव जी की विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोग निर्भीक होकर भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों की यात्रा कर सकें। वे न केवल श्री गुरु नानक देव जी को अपनी श्रद्धा के फूल भेंट कर सकें, अपितु गुरु जी की विचारधारा एवं सिद्धांतों को भी अपने जीवन में ग्रहण कर सकें। 
इसके साथ ही भारत के भिन्न-भिन्न राजनीतिक नेताओं के लिए भी यह बहुत ज़रूरी है कि वे प्रकाश पर्व की भावना एवं इस अवसर के महत्व को पहचानते हुए करतारपुर साहिब गलियारा का श्रेय अपने-अपने सिर बांधने एवं गुरु पर्व संबंधी होने वाले समारोहों के माध्यम से अपने-अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए संकीर्ण राजनीतिक  खेल खेलने से संकोच करें। जहां तक सम्भव हो, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी एवं पंजाब सरकार को सांझे तौर पर समारोह करवाने के लिए यत्न करने चाहिएं। परन्तु यदि सभी यत्नों के बावजूद ऐसा नहीं होता तो संबद्ध सभी पक्षों को अपने-अपने स्तर पर इस प्रकार समारोह करवाने चाहिए कि गुरु साहिब की शान्ति, सद्भावना एवं भ्रातृत्व की विचारधारा को किसी भी धरताल पर ठेस न पहुंचे। इसके साथ ही उक्त सभी पक्षों को समारोहों के साथ-साथ जन-कल्याण की भावना के लिए कुछ ऐसी योजनाएं भी बनानी चाहिएं, जिनका लम्बी अवधि तक लोगों को लाभ मिल सके। उनके जीवन में उच्च एवं सच्ची कदरों-कीमतों का संचार भी हो सके। 
इन सभी पक्षों को पाकिस्तान के साथ अपने सम्पूर्ण मतभेदों के बावजूद इस बात के लिए उसकी प्रशंसा करनी चाहिए कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने करतारपुर साहिब गलियारा को खोलने का फैसला लेकर एवं पाकिस्तान की मंदी आर्थिक स्थिति के बावजूद गलियारा से संबद्ध भिन्न-भिन्न निर्माण कार्यों पर पूरे वित्तीय साधन लगाकर एक बहुत बड़ी पहल-कदमी की है। आने वाले समय में जिस प्रकार दोनों देशों के बीच सहमति बनी है, यदि प्रतिदिन 5,000 यात्री भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए पाकिस्तान जाते हैं, तो उनकी यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए एवं उन्हें अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए उसे और भी बड़े वित्तीय एवं मानवीय स्रोत जुटाने होंगे। इन हकीकतों के दृष्टिगत यदि पाकिस्तान की सरकार करतारपुर जाने वाले यात्रियों से कुछ राशि वसूल करती है तो इसका किसी भी पक्ष की ओर से विरोध किया जाना, किसी भी प्रकार उचित नहीं है। कोई भी देश इस प्रकार के प्रबंध निरन्तर मुफ्त नहीं दे सकता। कांग्रेसी एवं अकाली नेताओं को अपने भीतर झांक कर यह भी देखना चाहिए कि मुट्ठी भर पंजाब में उन्होंने 26 स्थानों पर टोल-नाके लगवा रखे हैं, जो पंजाब के लोगों से दिन-रात लाखों रुपए की वसूली कर रहे हैं। इसके बावजूद सड़कों पर आवागमन की सुविधाओं की जो स्थिति है, वह सभी के सामने है। अत: इस संदर्भ में पाकिस्तान की स्थिति को भी ठीक ढंग से समझा जाना चाहिए। 
अंतत: हम भारत एवं पाकिस्तान की सरकारों और खासतौर पर पंजाब के राजनीतिक नेताओं से अभी भी यह आशा करते हैं कि वे 550 वर्षीय प्रकाश पर्व के समारोहों को श्री गुरु नानक देव जी की भ्रातृत्व की विचारधारा के दृष्टिगत श्रेष्ठ ढंग से मनाने के लिए अपनी संकीर्ण एवं स्वार्थपूर्ण राजनीति से ऊपर उठेंगे।