हरियाणा में विधानसभा चुनाव की आहट

हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र और झारखंड में अगले दो मास के भीतर होने जा रहे विधानसभा चुनावों की बेशक अभी घोषणा नहीं हुई है, तथापि हरियाणा में इन चुनावों की आहट और गर्मी अभी से महसूस होने लगी है। प्रदेश के मौजूदा धरातल पर बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस, भाजपा और इनेलो यानि इंडियन नेशनल लोक दल के बीच हलचल तेज़ हो गई है। इनेलो कभी प्रदेश का सबसे बड़ा राजनीतिक दल और सत्ता का दावेदार हुआ करता था, परन्तु इनेलो के सर्वेसर्वा ओम प्रकाश चौटाला के दोनों बेटों के बीच शुरू हुए पारिवारिक राजनीतिक विवाद के चलते न केवल पूरी पार्टी का बंटाधार हुआ, अपितु भविष्य में पार्टी की राजनीतिक सम्भावनाएं भी निरन्तर क्षीण होती चली गईं। आज स्थिति यह है कि कांग्रेस एवं भाजपा ने तो अपने-अपने लाव-लश्कर के साथ चुनावी महाभारत के मैदान में शंखनाद कर दिया है, परन्तु इनेलो के दोनों गुटों के बीच एकता के अब तक हुए अनेक प्रयासों में से एक भी फलीभूत होते प्रतीत नहीं हो रहा।
उल्लेखनीय है कि इनेलो प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला के दोनों बेटों अजय चौटाला और अभय चौटाला के बीच शुरू हुए सत्ता सुख विवाद ने पूरे परिवार को अलग-थलग कर दिया था। अजय चौटाला की अनुपस्थिति में उनके दोनों बेटों दुष्यन्त चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने जन-नायक जनता पार्टी का गठन करके अपना अलग शंखनाद तो किया ही, इस दौरान प्रदेश में हुए कुछ उप-चुनावों में जजपा को हासिल हुई विजयों ने उनके निजी अहं को सातवें आकाश पर पहुंचा दिया। वर्तमान में चौटाला परिवार के कुछ निकट मित्रों एवं राजनीतिक हितैषियों की ओर से बेशक फिर से एकता के प्रयास तेज़ किए गये हैं, और इनके फलीभूत होने की सम्भावनाएं भी दिखाई दी हैं, परन्तु निजी मसलहतें अभी भी सामूहिक हितों पर भारी पड़ते दिखाई दे रही हैं। दुष्यन्त चौटाला द्वारा जजपा को बनाये रखने की घोषणा और प्रदेश की सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की ज़िद ने अभी भी एकता-प्रयासों में बड़ी बाधा खड़ी कर रखी है। इसके विपरीत प्रदेश कांग्रेस में हाल ही में हुए परिवर्तन के बाद, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के नेतृत्व में कांग्रेस ने बसपा की मायावती की ओर मैत्री का हाथ बढ़ा कर राजनीतिक अखाड़े में पूरे तेवर के साथ ताल ठोंक दी है। उधर भाजपा के साथ अकाली दल के गठजोड़ की आहट भी सुनाई दी गई है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल के परिवार के बेशक इनेलो परिवार से बड़े नज़दीकी रिश्ते रहे हैं, परन्तु वर्तमान में स. बादल के अकाली-भाजपा द्वारा मिल कर हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ने के आह्वान ने प्रदेश के चुनावी परिदृश्य पर एक नया रंग अवश्य बिखरा दिया है।
देश की राजनीति में विगत कुछ दशकों से उभरी नई मानसिकता के दृष्टिगत, चुनावों से पूर्व दल-बदल और समझौतावादी जोड़-तोड़ का सिलसिला हर बार और हर प्रदेश में नया रूप धारण करता रहा है। हरियाणा में यही कुछ शुरू होते दिखाई देने लगा है। इनेलो के अनेक बड़े नेता पहले ही अपनी पसन्द के अनुसार भाजपा का दामन थाम चुके हैं। दो दिन पूर्व ही इनेलो के कुछ अन्य नेता कांग्रेस के पाले में चले गये। प्रदेश में कल तक बेशक भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा था, परन्तु कांग्रेस की ओर से शुरू किये गये नये एकीकृत प्रयासों ने थोड़ी-सी हवा इस ओर भी बहाई है। अगले कुछ दिनों में बाकायदा अधिसूचना जारी हो जाने पर स्थिति अधिक स्पष्ट होकर उभरने की सम्भावना है। तथापि, प्रदेश में सभी दलों के नेताओं ने चुनावी लंगर-लंगोट कस लिये हैं। हरियाणा के चुनावी परिदृश्य का कौन-सा रंग कैसी छवि प्रकट करेगा, यह आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जायेगा।