भारत को प्रभावित कर सकता है खाड़ी देशों का तनाव

आज दुनिया में अनेक देशों में ऐसे तनाव चल रहे हैं, जो खतरे की घंटे बने हुए हैं। ये तनाव चाहे सीमित भी हों परन्तु इनका प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ता है। इसका बड़ा कारण यह है कि उद्योग, व्यापार, तकनीक एवं कारोबार आदि की दुनिया एक विशाल मंडी बन गई दिखाई देती है जिसके कारण किसी धरती पर हुआ किसी भी प्रकार का विस्फोट सभी स्थानों पर सुना जाता है। पश्चिम एशिया के खाड़ी देशों में तेल की खोज को एक वरदान समझा गया था। इन देशों से आयातित कच्चे तेल से उद्योग, व्यापार, कृषि एवं यहां तक कि विमान भी चलते अथवा थमते दिखाई देते हैं। वरदान रूपी इस धरती को अनेक दशकों से श्राप भी लग गया दिखाई देता है। सीरिया एवं इराक जो इस प्राकृतिक सम्पदा से मालामाल थे, आज बुरी तरह से तबाह हुए प्रतीत होते हैं। अरब देश भी एक-दूसरे के विरुद्ध उलझे हुए हैं। इनके बीच छोटे-बड़े अनेक युद्ध जारी हैं। आतंकवाद ने भी यहां अपना पूर्ण प्रसार कर रखा है। खेद इस बात का है कि बड़े आतंकवादी संगठनों को खाड़ी के ये भिन्न-भिन्न देश सहायता करते हैं तथा अपने शत्रु देश में अशांति फैलाने और हमले करवाने के लिए उनकी अधिकाधिक सहायता करते हैं। ये आतंकवादी संगठन इतने समर्थ एवं धनी हो चुके हैं कि ये शक्तिशाली देशों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। छोटे देशों को तो ये तबाह कर देने की ही सामर्थ्य रखते हैं। विगत दशक में इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) के आतंकवादियों ने इस क्षेत्र के अनेक भागों पर कब्ज़ा करके भारी विनाश ढाया था तथा लोगों पर ऐसे-ऐसे अत्याचार किए गए थे, जिनका विस्तार पेश करना भी अत्याधिक कठिन प्रतीत होता है। यह बात और भी खेदजनक है कि अमरीका जैसा देश भी पश्चिम एशिया के इन देशों के झगड़े में फंसा हुआ दिखाई देता है। सऊदी अरब एवं ईरान की शत्रुता की कहानी बहुत लम्बी है। सऊदी अरब की ओर से अनेक आतंकवादी संगठनों को भारी आर्थिक सहायता देकर ईरान के विरुद्ध भड़काया जाता रहा है। ईरान की ओर से सऊदी अरब के विरुद्ध विद्रोहियों की सहायता की जाती है। पिछले दिनों यमन के होती आतंकवादियों ने ड्रोन हमले करके सऊदी अरामको  को बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। यह सऊदी अरब का सबसे बड़ा तेल कुआं है। इस हमले से वहां प्रतिदिन लगभग 50 लाख बैरल निकाले जाते तेल पर भारी असर पड़ा है। आज भारत अपने कच्चे तेल की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाहरी देशों पर निर्भर है। इस हमले का असर यह हुआ है कि 1991 में खाड़ी देशों के युद्ध के दौरान किस प्रकार कच्चे तेल की कीमतें एकाएक बढ़ गई थीं, अब भी इनमें एकदम उछाल आ गया है। चाहे सऊदी अरब ने भारत की तेल आवश्यकताओं को पूरा करते रहने का विश्वास दिलाया है, परन्तु तेल की बढ़ती हुई कीमतों को रोक पाना अतीव कठिन है। इस हमले के बाद जिस प्रकार अमरीका ने सऊदी अरब का समर्थन किया है तथा जिस प्रकार की प्रतिक्रिया का प्रदर्शन ईरान ने किया है, उससे खाड़ी संकट के अधिक गम्भीर हो जाने की आशंका बन गई है तथा इसके अधिक विस्तृत होने का खतरा भी बढ़ गया है। रूस एवं चीन ने ईरान का पक्ष-पोषण करते हुए कहा है कि अमरीका उस पर निराधार आरोप लगा रहा है।  अमरीका ने ईरान के साथ परमाणु हथियारों के संबंध में किए गए समझौते को रद्द करने के बाद उसके तेल निर्यात पर पाबंदियां आयद कर दी हैं। अमरीका के भागीदार सऊदी अरब पर किया गया यह हमला भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। भारत के सऊदी अरब एवं ईरान दोनों के साथ अच्छे संबंध चले आ रहे हैं। पाकिस्तान की ओर से भारत का सड़क मार्ग व्यापार बंद कर देने के दृष्टिगत भारत ने समुद्री मार्ग से ईरान की बंदरगाह से अ़फगानिस्तान के साथ व्यापार एवं सहयोग की बड़ी योजना बनाई है। उत्पन्न हुए इस संकट का इस योजना पर भी असर पड़ सकता है। भारत विश्व में फैलाये जा रहे सभी तरह के आतंकवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाता रहा है, परन्तु अब उत्पन्न हुई यह स्थिति उसके लिए भी एक बड़ी परीक्षा की घड़ी बन सकती है तथा इससे भी अधिक तेल की बढ़ती हुई कीमतों का देश की आर्थिकता पर भी भारी प्रभाव पड़ सकता है, जो पहले ही मंदी की स्थिति का सामना कर रहा है। नि:संदेह भारत को इस मोर्चे पर भारी चिंता में से गुज़रना पड़ सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द