उनको सब माफ, दंड सिर्फ जनता को ही क्यों ?

भारत देश में सड़कों पर दौड़ती मौत से जब देश में त्राहि-त्राहि होने लगी तो भारत सरकार का ध्यान भी इस ओर गया। यद्यपि बहुत विलम्ब से गया। अपने देश में हर वर्ष एक लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मौत का शिकार होते हैं, लाखों अपाहिज होते हैं और जन हानि के साथ धन वनि भी होती है। संभवत: इसी को ध्यान में रखते हुए भारत की संसद में मोटर वाहन संशोधन विधेयक पारित हो गया, पर इसमें राहत की जगह दंड और जुर्माने की बौछार हो गई। आश्चर्य तब हुआ जब श्री नितिन गडकरी जी ने यह कहा कि अगर अच्छी सड़कें चाहिए तो उसके लिए जनता को टैक्स भी देना होगा। मुझे हैरानी हुई कि जनता को तो टैक्स देना ही होगा और जनता टैक्स दे भी रही है, पर इस देश के जन प्रतिनिधि और सरकारी भाषा में लोक सेवक अर्थात सरकारी अधिकारी इस टैक्स से मुक्त क्यों हो गए? विधायक, सांसद, मंत्री, न्यायाधीश और पुलिस प्रशासन समेत सभी अधिकारी उन्हीं सड़कों का उपयोग करते हैं जिनके लिए जनता से टोल टैक्स लिया जाता है। सीधा अर्थ यह है कि जिन सड़कों के लिए जनता टैक्स दे उस पर इस देश के वी.आई.पी., अधिकारी, जन प्रतिनिधि मुफ्त में सैर करें। ऐसा लगता है न कोई समानता, न कोई न्याय संगत निर्णय। सच तो यह है कि केवल सैन्य और अर्द्ध सैन्य बलों तथा एंबुलैंस, फायर ब्रिगेड आदि को छोड़कर सभी को टैक्स देना चाहिए, पर इस देश की सच्चाई यह है कि यहां जो सुविधाएं घोषित होती हैं वे अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए और जो कर्त्तव्य तय किए जाते हैं वह आम जन के लिए। अभी-अभी भारत सरकार से यह भी चर्चा सुनी जा रही है कि पचास वर्ष से अधिक आयु के जो कर्मचारी हैं, उनकी कार्यकुशलता की समीक्षा होगी और जो इस कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे उन्हें सेवामुक्त किया जा सकता है। भारत का आम जन यह भी जानना चाहता है कि कर्मचारियों पर तो पचास की आयु के बाद कसौटी पर खरे न उतरने वाले कर्मचारियों की सेवा मुक्ति का निर्णय लिया जाएगा, पर जो राजनेता पचास से ऊपर तो क्या 95 वर्ष तक भी पहुंच गए, उनकी कार्यकुशलता की समीक्षा करके उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित क्यों नहीं किया जाता? क्या यह सच नहीं कि आज भी संसद और विधानसभाओं में बहुत से आरोपी आम भाषा में दागी कहे जाने वाले कानून बना रहे हैं, देश के नागरिकों के लिए और स्वयं वी.आई.पी. बने प्रत्येक सुविधा और सम्मान का उपभोग कर रहे हैं। यह ठीक है कि देश और समाज की सेहत ठीक रखने के लिए कानून बनने भी चाहिए और कानूनों का पालन भी कड़ाई से होना चाहिए, अन्यथा देश और समाज में जंगल राज हो जाएगा, पर यह कानून केवल आम जनता के लिए ही क्यों?
उदाहरण के लिए स्कूटर या अन्य दोपहिया वाहनों पर तीन लोगों का सवार होकर चलना कानूनन मना है। दुर्घटना होने पर जीवन नरक बन जाने की संभावना भी अधिक रहती है, पर सरकारी बसों और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट की गाड़ियों में यह नियम लागू क्यों नहीं होता? आज भी बड़े-बड़े शहरों में सरकारी, गैर-सरकारी बसें निश्चित संख्या से दो गुणा ज्यादा सवारियां लेकर चलती हैं। लोग बसों की छत पर शौक से नहीं मजबूरी से यात्रा करते हैं, क्योंकि सरकारें आवश्यक वाहन देने में नाकाम हो रही हैं। जिन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में लोग थ्री टायर सिस्टम बनाकर यात्रा करते हैं या ट्रकों में सवारियां भर-भर कर ले जाते हैं वह भी गैर-कानूनी है, पर उनको रोकने से मतदाताओं के नाराज हो जाने का डर रहता है, इसलिए सरकार उनकी ओर देखती भी नहीं या देखकर अनदेखा करती है। इन सबसे सरकार की छवि धूमिल होती है। 
दोपहिया वाहन वाले का चालान होता है, बड़े-बड़े वाहनों का इसलिए नहीं क्योंकि वह राजनेताओं के वोट बैंक रहते हैं। वे दिन भी थे जब रोडवेज की बस में निश्चित संख्या 52 से एक भी सवारी ज्यादा हो जाए तब बस चालक और कंडक्टर तब तक बस नहीं चलाते थे जब तक अधिक सवारियां बस से उतर न जाएं, लेकिन अब सरकारों की मौन स्वीकृति और रुपये का लालच कानूनी कार्य नहीं होने देते। रेलगाड़ियां कितनी ठसाठस भरी चलती हैं। कुछ क्षेत्रों में तो लोग गाड़ी की छत पर भी चढ़ जाते हैं, यद्यपि मौत सामने दिखाई देती हैं। छठ पूजा के समय अमृतसर से चलने वाली गाड़ी के बाहर लटकते और दो डिब्बों के बीच बने जोड़़ पर भी प्राण हथेली पर लेकर घर पहुंचने की इच्छा से मजबूर हिंदुस्तानी सफर करते हैं। तब रेलवे का चालान क्यों नहीं होता? भारत के नागरिकों को टिकट का रुपया देकर भी लावारिसों की तरह मौत को सामने देखते हुए सफर करना पड़ता है, क्या रेलवे पर कभी जुर्माना हुआ? अमृतसर के भरे बाजार में एक लावारिस सांड ने सींगों से पटक कर एक बुजुर्ग को मार दिया। इसी क्षेत्र के आसपास एक महिला आवारा बैल से टकराकर घायल हुई। उसकी हड्डियां टूटीं और अस्पताल में मौत हो गई। यह ठीक है कि जब इसी रास्ते से स्थानीय मंत्री जी ने निकलना था तो कुछ घंटों के लिए आवारा पशु काबू किए गए और फिर जनता को इन्हीं आवारा पशुओं के रहम पर छोड़ दिया। पूरे देश में अनेक दुर्घटनाएं आवारा पशुओं के कारण हुई हैं, स्वयं सरकार ने माना है, पर क्या किसी एक भी दुर्घटना के बाद नगर निगम, पंचायत, नगर पालिका या सम्बद्ध संस्थानों को दंडित किया गया? 
जुर्माना देने के लिए क्या केवल वही हैं जिनके लिए कह सकते हैं कि मरे को मारे शाह मदार। शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों का आर्थिक दंड बढ़ा दिया। यह नहीं सोचा कि शराब न पी जाए, शराब का चलन कम किया जाए, क्योंकि सरकारी खजाना शराब के नोटों से बढ़ता है। जहां तक बात दंड की है, सरकारें जानबूझकर आंखें बंद करती हैं। सरकार यह बताए कि जो गली-गली अहाते खोले हैं, मैरिज पैलेसों, क्लबों आदि में शराब पीने की नोट लेकर आज्ञा दी है, वहां लोग शराब पियेंगे तो क्या आकाश मार्ग से घर जाएंगे? ट्रैफिक नियंत्रण के लिए कानून पंजाब पुलिस ने भी बनाए और घोषित किए हैं। वे ज्यादा प्रभावी और सुविधाजनक हैं, पर सही बात यह है कि कानून का पालन जब तक सत्ताधारी और यूनिफॉर्म वाले नहीं करेंगे तब तक कोई कानून लागू नहीं होगा, जनता का खून अवश्य चूसा जाएगा। याद रखिए निर्माण कार्य नीचे से शुरू होता है, पर पेंट आदि से चमकाने का काम हमेशा ऊपर से होता है।