काम के बोझ के मारे बेचारे लोग

उपभोक्तावाद बाज़ारवाद के मौजूदा दौर में आपने अब तक कई कार्यालयों के नाम सुन लिये होंगे। अली बाबा कम्पनी उनमें से एक हैं। जैकमा इस अली बाबा कम्पनी के मालिक हैं। नाम से भारतीय नहीं लगते। चीनी हैं। हां, एक भारतीय कम्पनी जो नोटबंदी के दिनों काफी ज़ोर-शोर से सामने आई, जिसका नाम पेटीएम है। उसके यह साझीदार हैं। चीन में आज की दुनिया में अच्छे, प्रतिबद्ध, नैतिक कम्युनिस्ट खोजना शायद कठिन हो, परन्तु धनपति खोजना कठिन नहीं। जैकमा वहां के बड़े धनपतियों में से एक हैं। वह चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य भी हैं। आपको लगेगा कि उन्हें मजदूर हितों का काफी ध्यान होगा। वह एक नया नियम/सिद्धांत ला रहे हैं कि मज़दूरों को सप्ताह के छह दिन बारह घंटे काम करना चाहिए। सुबह 8 बजे से रात 9 बजे तक। रविन्द्र गोयल अपने एक लेख में बता रहे हैं कि बेशक उनका यह सिद्धांत चीन के श्रम कानूनों के खिलाफ है, परन्तु कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है। उनके पास पैसा है। वह कम्युनिस्ट शासक पार्टी के सदस्य हैं और चीन की सरकार उन जैसों की चाकर है। बताया कि इस वर्ष मार्च के अंत में चीन के कुछ अनाम आई.टी. सैक्टर के प्रोग्रामरों ने उन्हें, जिन्हें 12 घंटे रोज काम करना पड़ता है, 996 आई.सी.यू. नामक एक वेबसाइट पर अपने भयानक जीवन पर चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि ये कार्यकर्ता यदि यूं ही काम करते रहे तो किसी अस्पताल के आई.सी.यू. (गहन चिकित्सा कक्ष) में समाप्त हो जाएंगे। तब से पूरे देश में एक बहस छिड़ गई: क्या चीनी आई.टी. सैक्टर के कर्मचारियों को सप्ताह में छह दिन सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक काम करना चाहिए? मामला हमें इतिहास के उन दिनों की तरफ ले जाता है, जहां मजदूरों का जीवन अंधकारमय था। काम के घंटे निश्चित नहीं थे। मालिक मन चाहे तरीके से काम लेते थे। गुलामदारी जैसी व्यवस्था थी। फिर मई दिवस, जिसे मजदूर दिवस भी कहा जाता है, के दिन शिकागो में वे सब निकल पड़े जिनके पास खोने को कुछ नहीं था। संघर्ष के बाद काम के आठ घंटे निश्चित किये गये।रविन्द्र गोयल चीन के इस अमानवीय सुझाव पर बता रहे हैं कि प्रोग्रामर इन कम्पनियों पर गैर-कानूनी गतिविधि का आरोप लगा रहे हैं। इस सवाल पर चीन का श्रम कानून प्रोग्रामरों के हक में है। चीनी कानून के हिसाब से मजदूर दिन में आठ घंटे से अधिक और सप्ताह में औसतन 44 घंटे से अधिक काम नहीं करेंगे। चीनी कम्पनी में यह भी कहा गया है कि कर्मचारियों को प्रतिदिन ओवरटाइम के तीन घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए और प्रति माह 36 घंटे से ज्यादा ओवरटाइम नहीं करना चाहिए। कर्मचारियों को भी काम के ओवरटाइम के लिए अपने सामान्य वेतन का 150 प्रतिशत मिलना चाहिए। बिना छुट्टी लिए, किसी छुट्टी के दिन काम करने के बदले में दोगुना वेतन और राष्ट्रीय अवकाश, जैसे कि नए साल के दिन, काम करने के लिए उनको वेतन का 300 प्रतिशत मिलना चाहिए। जानकार लोगों का कहना है कि सच्चाई यह है कि कानून द्वारा निर्दिष्ट ओवरटाइम मजदूरों का भुगतान शायद ही किया जाता हो। भारत में भी हज़ारों मजदूर कम पैसों से अधिक काम करने को मजबूर हैं। अनपढ़ मजदूर ही नहीं पढ़े-लिखे, डिग्री धारक युवक भी जब शुरू-शुरू में काम ढूंढने निकलते हैं, इसी तरह के शोषण के शिकार होते हैं। जॉब छोड़ने का जोखिम उठा नहीं पाते, क्योंकि एक बाहर आएगा तो दस उन्हीं शर्तों पर काम करने को तैयार हैं। देश में बेरोज़गारी एक महामारी की तरह मौजूद है। उन युवा लड़कों-लड़कियों के सपने राख में बदलने लगते हैं जिन्हें रात-दिन काम के सिवा कुछ सूझता नहीं और लुत्फ उठाने की उम्र में किसी न किसी बीमारी को आमंत्रित कर बैठते हैं, क्योंकि कई केसों में नींद भी पूरी नहीं होती। सभी को मिल बैठ कर इस पर सोचना होगा।