फिल्मों का बिजनेस उर्फ  बिजनेस की फिल्में

बॉलीवुड से सम्बन्धित तमाम वेबसाइटों को खंगालें तो पता चलता है कि साल 2013 में 2.7 अरब टिकटें बिकी थीं। इसका मतलब यह हुआ कि उस साल करीब इतने लोगों ने तो बॉलीवुड फिल्में देखी ही थीं। हालांकि साल 2018 में कितने लोगों ने फिल्म देखीं, इसका अभी तक कोई अधिकृत डाटा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन लगता है कि आंकड़ा इसके नीचे तो नहीं ही गया होगा। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि भारत में फिल्म इंडस्ट्री भी बहुत बड़ी है और लोग फिल्में देखते भी बहुत हैं। इसका मतलब यह भी है कि इस बहस के बावजूद कि फिल्मों से कभी कोई कुछ नहीं सीखता, इनका समाज में विशेषकर नई पीढ़ी में सचेत या अचेत तौर पर असर तो होता ही है।  इसलिए मानकर चलना चाहिए कि बॉलीवुड में उद्यमिता या इंटरप्रेन्योरशिप को फोकस करते हुए जो फिल्में बनी हैं, उन्होंने भले कम लोगों को ही सही लेकिन लोगों, विशेषकर युवाओं को जरूर प्रेरित किया है। इसे इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि हाल के सालों में अपना स्टार्ट-अप शुरू करने वाले बहुत से नौजवानों ने यह बात सोशल मीडिया में लिखी है। कुछ सालों पहले एक फिल्म ‘गुरु’ आयी थी। आज भी तमाम उद्यमी युवा इसे अपनी प्रेरणा के रूप में उद्वत करते हैं।  कहा जाता है कि धीरूभाई अम्बानी की रियल स्टोरी पर बनी है। इस फिल्म में युवा धीरुभाई अंबानी का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया है,जबकि उनकी पत्नी का किरदार अभिषेक बच्चन की पत्नी ऐश्वर्या राय ने निभाया है। यह एक सुपरहिट फिल्म थी। इस फिल्म में नि:संदेह सीख लेने की बहुत बातें थीं। मसलन फिल्म में बताया गया है कि कैसे एक छोटे से गांव का नौजवान अभावों को पीछे छोड़ते हुए अपनी दृढ़ महत्वाकांक्षा की बदौलत कामयाबी की बुलंदियां छूता है और बहुत कम समय में भारत का नंबर एक बिजनेसमैन बन जाता है। लेकिन गुरु इस तरह की बिजनेसमैन को प्रेरणा के रूप में पेश करने वाली पहली फिल्म नहीं है। करीब साढ़े तीन दशक पहले उद्यमिता के संबंध में ऐसी ही एक और प्रेरक फिल्म ‘अवतार’ आयी थी। इस फिल्म में राजेश खन्ना और शबाना आजमी ने मुख्य किरदार निभाया था। इस फिल्म में जो सबसे प्रेरक सबक था, वह यह कि जिंदगी के सफर में कभी देर नहीं होती, जब जागो तब सवेरा की शैली में आप उम्र के किसी भी मोड़ में अपनी किस्मत अपने दम पर लिख सकते हैं। इसके साथ ही अवतार फिल्म यह भी बताती है कि असफल से असफल पिता भी अपनी जिंदगी अपने बच्चों को संवारने में लगा देते हैं। हाल के सालों में शुरू हुए देश में स्टार्ट-अप कल्चर में शामिल तमाम नौजवानों से बातचीत करें, उनके बीच एक सर्वे करें तो सैकड़ों ऐसे नौजवान हैं जो इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्हें अपनी उद्यमिता कौशल की प्रेरणा तमाम बिजनेसमैन से मिली है। हाल के दिनों में कई लोगों के सोशल मीडिया में लोकप्रिय हो रहे ब्लॉग भी तमाम युवाओं के लिए सफल बिजनेसमैन की कुछ ऐसी ही प्रेरणाएं लेकर आये हैं लेकिन इसमें सबसे बड़ा योगदान फिल्मों का ही रहा है। यही वजह है कि बॉलीवुड में बनी तमाम फिल्में नवयुवकों को बिजनेस करने के लिए प्रेरित करती हैं। क्योंकि ये फिल्में बड़ी सहजता से उद्यमिता को बढ़ावा देती हैं,नए बिजनेस आइडिया लोगों तक पहुंचाती हैं। उन्हें बिजनेस के गुर सिखाती हैं। ऐसी ही फिल्मों में हाल के सालों आयी एक फिल्म ‘बदमाश कंपनी’ भी है। बदमाश कंपनी कुछ दोस्तों  की कहानी है, जोकि मिडिल क्लास फैमली से हैं, उनके पास बिजनेस करने का एक बिलकुल मौलिक हुनर है। लेकिन उन्हें सकारत्मक रास्ते पर यकीन नहीं है। इसलिए वे गलत तरीके से सफलता पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन बाद में उन्हेें अपनी गलती का एहसास होता है और वह अपने इस हुनर का उपयोग ईमानदारी के बिजनेस में लगाकर खुद का बिजनेस शुरु करते हैं।  एक और अच्छी बिजनेस फिल्म है-कारपोरेट्स। यह फिल्म बिजनेस की दुनिया में चलने वाले पॉवर गेम पर आधारित है। जैसा कि आम तौर पर पावर गेम की दुनिया में होता है। दो बिजनेस ग्रुप या दो बिजनेसमैन जिसमें दो बड़ी कंपनियों के बीच ताकत और पैसे का खेल चलता है वही सब इसमें दिखाया गया है। इस फिल्म का एक पावरफुल मैसेज है कि पैसा और राजनीति कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस पावरगेम के साथ साथ फिल्म में कई यूनीक ही बिजनेस ट्रिक्स भी बताये गए हैं।  फिल्म त्रिशूल पिता-पुत्र का मेलोड्रामा है। लेकिन साथ ही यह फिल्म एक बिजनेस आयडिया भी लेकर आयी। इसमें बेटा अपने पिता को साबित करने के लिए किस तरह से एक सफल बिजनेसमैन बनता है, उसकी पूरी कहानी बतायी गई है। फिल्म  में मुख्य  किरदार में संजीव कुमार और अमिताभ बच्चमन हैं। संजीव कुमार बाप हैं तो अमिताभ बच्चन बेटा। रणबीर कपूर की फिल्म रॉकेट सिंह सेल्स मैन ऑफ  द ईयर भले दर्शकों को न पसंद आयी हो लेकिन यह फिल्म बिजनेस को बहुत ही अच्छे ढंग से फोकस करती है। इसी क्रम में शाहरुख खान की फिल्म ‘स्वदेश’ भी है। ‘थिंक ग्लोबल एक्ट लोकल’ के सिद्धांत को फोकस करने वाली यह फिल्म बताती है कि उद्यमिता के जरिये भी आप देश की सेवा कर सकते हैं, अपने राष्ट्रवाद को मुखरित तरीके से व्यक्त कर सकते हैं।  फिल्म में शाहरुख खान नासा में कार्यरत एक वैज्ञानिक मोहन है जिसे एक दिन यह ख्याल आता है कि उसके ज्ञान से नासा के मुकाबले एक भारतीय गांव को ज्यादा जरूरत है। अत: वह चरनपुर के निर्माण के लिए नासा की नौकरी छोड़ देता है।यह तो तय है कि महज कोई फिल्म देखकर कुछ नहीं बना जा सकता मगर यह भी सच है कि इन प्रेरक फिल्मों से व्यवसाय और सफलता के पक्ष में एक सकारात्मक नजरिया तो बनता ही है।