ग्रेटा थुनबर्ग की चेतावनी

पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वातावरण की सम्भाल संबंधी करवाये गये एक सम्मेलन में विश्व के बड़े नेताओं को बुलाया गया था। अधिकतर देशों के प्रतिनिधियों को इस संबंध में अपने विचार व्यक्त करने के लिए कहा गया। भारत के प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में वातावरण संबंधी अपने विचार विस्तारपूर्वक व्यक्त किये थे। पिछले कुछ दशकों से धरती के तापमान के बढ़ने को लेकर चेतना पैदा हुई है। यहां तक कि आर्कटिक ध्रुव एवं एंटार्कटिक ध्रुव जो पूरी तरह से बर्फ से ढके हुए थे, में भी तापमान बढ़ने से बर्फ की परतें पिघलना शुरू हो गई हैं, जिससे धरती के समूचे वातावरण में भारी परिवर्तन आता जा रहा है। यूरोप के वे देश जहां सदैव सर्दी रहा करती थी, उनमें भी अनेक स्थानों पर गर्मी बढ़ना शुरू हो गई है। गर्म देश और भी तपने लगे हैं। औद्योगिक प्रसार, बढ़ते हुए वाहनों एवं अन्य हर प्रकार की मशीनरी में तेल एवं कोयले के अथाह प्रयोग से क्लोरोफलोरो कार्बन एवं ग्रीन हाऊस गैसें बढ़ रही हैं। इससे विश्व के बड़े देश भी चिंतित होते दिखाई दे रहे हैं। ये गैसें इस सीमा तक पर्यावरण में बढ़ती जा रही हैं कि इनसे धरती एवं आकाश के बीच ओज़ोन परत भी पतली होती जा रही है। नासा ने तो वर्ष 1987 में ही यह सिद्ध कर दिया था कि इस ओज़ोन परत में बहुत-से स्थानों पर बड़े छिद्र होना शुरू हो गये हैं, जिनसे सूर्य की पराबैंगनी किरणों के धरती पर सीधे आने से मनुष्य को अनेक प्रकार की बीमारियों एवं चमड़ी रोगों ने घेर लिया है। इस सुरक्षा छतरी के छितरा जाने के संबंध में पहले जापान के वैज्ञानिकों ने वर्ष 1979 में विस्तृत सूचना दी थी। संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसी संस्था बन चुका है, जिसने अक्सर दुनिया भर में पैदा होते ़खतरों एवं धरती को दरपेश चुनौतियों के संबंध में एक संयुक्त मंच पर देशों को सोचने के लिए प्रेरित किया। उत्पन्न हुई इस चिंताजनक स्थिति के संबंध में 1985 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से एक अंतर्राष्ट्रीय वियना कांफ्रैंस आयोजित की गई थी। उसमें ग्रीन हाऊस गैसों को घटाने के लिए दुनिया भर के देशों को सन्देश दिया गया था। 1987 में मांट्रीयल में करवाई गई ऐसी ही एक कांफ्रैंस में बहुत-से देश शामिल हुये थे तथा उसमें भी धरती पर इन गैसों को घटाने के लिए यत्न करने के फैसले किये गये थे। वर्ष 2017 में फ्रांस के शहर पैरिस में सम्पन्न हुई कांफ्रैंस में धरती पर बढ़ रही तपन को घटाने के संबंध में भिन्न-भिन्न देशों के बीच एक समझौता हुआ था, जिसे पैरिस समझौता का नाम दिया गया था। इसमें अमरीका एवं कुछ अन्य देशों ने शामिल होने से इन्कार कर दिया था, क्योंकि उनके अनुसार इसका प्रभाव उनके भारी उद्योगों पर पड़ता है। अब जिस प्रकार विश्व भर में मौसमी बदलावों के प्रति चेतना उत्पन्न हो रही है, जिस प्रकार स्वीडन की 16 वर्षीय एक बच्ची ग्रेटा थुनबर्ग ने बड़े-बड़े नेताओं को फटकार लगाते हुए कहा है कि आपने हमारे सपनों, हमारे बचपन को अपने खोखले शब्दों से छीन लिया है। अधिकतर लोग इसका संताप झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरी ईको-व्यवस्था ही बर्बाद हो रही है। इस बालिका ने यह भी चेताया है कि दुनिया अभी भी ग्रीन हाऊस गैसों के निकास को कम करके एवं ऊर्जा की नई तकनीकों एवं स्रोतों का विकास करके मौसमी परिवर्तन पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को घटा सकती है। नि:सन्देह विश्व भर के लिए धरती का बढ़ रहा तापमान खतरे की एक घंटी है, जो धरती को विनाश की ओर ले जाने के समर्थ है। इसके प्रति सचेत होना सभी देशों का कर्त्तव्य बन जाता है। भारत इसके प्रति जो यत्न कर रहा है, उनका विस्तार प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में दिया है। तथापि इन यत्नों के लिए अभी बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। भारत को इस संबंध में विश्व के समक्ष एक उदाहरण कायम करना होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द