क्या गरीबों के घर में मन्दी अंधेरा नहीं करती ?

मोदी शासन की दूसरी पारी के पहले सौ दिन में जो बात देश के सामने स्पष्ट हुई है, वह यह कि देश मन्दी के संकट से इस कद्र घिर गया है कि इसे विश्वव्यापी कह कर भी नकारा नहीं जा सकता। बात तब खुलकर सामने आयी जब इस वर्ष की पहली दो तिमाहियों में आंकड़ा शास्त्रियों ने स्पष्ट कर दिया कि देश की सकल घरेलू आय की विकास दर गिर कर पांच प्रतिशत के गिर्द चक्कर लगाने लगी है। देश की बेकारी दर पिछले दशक के उच्चतम स्तर 6.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। विश्व के देशों के भ्रष्टाचार सूचकांक ने बताया कि देश के भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान ने कोई सार्थक प्रभाव नहीं दिखाया। देश भ्रष्टाचार बढ़ने के सूचकांक की कुछ और सीढ़ियां चढ़ गया।जहां देश की बेकारी दर प्रति वर्ष डेढ़ दो करोड़ की गति से बढ़ने लगे। वहां इसके साथ इस मन्दी काल में आटो क्षेत्र, विनिर्माण क्षेत्र, सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र के पतन के साथ काम पर लगे हुए कामगार छंटनी का शिकार होकर बेकारों की श्रेणी बढ़ाने लगे। सरकार के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं, सिवाय उस दिलासे के कि देखो हमने थोक मूल्यों का सूचकांक बढ़ने नहीं दिया। परन्तु इससे क्या अन्तर पड़ता है, आम लोगों के लिए परचून कीमतों का सूचकांक तो दस प्रतिशत से अधिक बढ़ गया। लोगों के रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ें जेब से बाहर हो गयीं। उन्हें अच्छे दिन आने के वे वायदे हवा होते हुए लगे जब सन् 2018 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। सरकार ने कहा था कि वह सन् 2024 तक देश की सकल घरेलू आय को दुगुना और किसानों की आय को भी दुगुना कर देगी। यहां तो आलम यह है कि देश के पांच मुख्य क्षेत्रों में से चार की आर्थिक विकास दर आधी रह गई।बेशक देश में निवेश आशा और वायदों के अनुरूप नहीं हुआ, शेयरों में बिकवाली बढ़ गई और शेयर सूचकांक तीन बार बड़ी गिरावट दर्ज करवा गये। डालर के मुकाबले रुपये का मूल्य निरन्तर गिर रहा है, लेकिन निर्यात सस्ते होने के बावजूद इनकी मांग विदेशी मंडियों में नहीं बढ़ी, बल्कि एक वर्ष में उनमें आठ प्रतिशत की कमी देखी गई। व्यापार शेष और भुगतान शेष और भी प्रतिकूल हो गया। सरकार क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश की पक्षधर और सरकारी निजी क्षेत्र की भागीदारी की पक्षधर हो चुकी है, इसलिए उसने आम आदमी के समक्ष पैदा हो गयी बेकारी, भ्रष्टाचार और महंगाई की समस्याओं का समाधान देशी और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने में तलाश किया। पिछले एक महीने से देश को मंदी के कुचक्रों से निकालने के लिए पांच आर्थिक बूस्टर दिये गये हैं। पूंजी पर सुपर रिच सरचार्ज हटाये हैं, रिज़र्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ रुपए का अनुदान उसके आरक्षित कोष में से ले लिया, और देश के 10 बड़े सरकारी बैंकों का विलय चार बैंकों में कर दिया। पचहत्तर हज़ार करोड़ रुपए का बूस्टर बैंकिंग व्यवस्था को दे दिया, ताकि इससे उनके मरे खातों की समस्या हल हो जाए। इसके साथ गिरती हुई निर्यात दर को संभालने के लिए सन् 2020 से पचास हज़ार करोड़ रुपए के कोष का भी प्रबंध किया। लेकिन ये राहतें प्रभाव नहीं दिखा रही। शेयर मार्किट के सूचकांक ऐतिहासिक गिरावट दिखा कर हाहाकार करते नज़र आए हैं।इसलिए 19 सितम्बर को भारत की वित्त मंत्री ने मोदी सरकार के आदेश पर मंदी के विरुद्ध पांचवीं और सबसे बड़ी आर्थिक और सर्जिकल स्ट्राइक की। इसमें कार्पोरेट क्षेत्र और नये उभरते निवेश क्षेत्र को एक साथ 1.46 लाख करोड़ रुपए की टैक्स छूट दे दी। कार्पोरेट क्षेत्र को यह छूट लगभग 12 प्रतिशत और नये स्टार्ट-अप उद्योगों के लिए पन्द्रह प्रतिशत तक है। उम्मीद यही है कि इससे निवेश बढ़ेगा, उद्यम प्रक्रिया में विस्तार होगा, रोज़गार बढ़ेंगे और त्यौहारी सीज़न में टैक्स छूटों के कारण कीमतें कम होंगी और मांग का विस्तार होगा। लेकिन सरकार भूल गई कि टैक्स छूट दुधारी तलवार है, इससे बजट घाटा भी बढ़ जायेगा, क्योंकि कर राजस्व कम हो जायेगा। बजट घाटा बढ़ कर 3.9 प्रतिशत तक चला जायेगा। इससे देश की व्यावसायिक साख कम हो जायेगी। इन टैक्स छूटों से जिस कार्पोरेट निवेश की उम्मीद यह कार्पोरेट हितैषी सरकार कर रही है, वही आगे नहीं आयेगा।
लेकिन अधिक निवेश के लिए बौराई इस सरकार के मन्दी बूस्टर यह क्यों भूल गये कि मन्दी से पैदा गरीबी, कर्जदारी और निर्धनता की समस्या तो देश की मरती हुई खेती, और बड़े उद्योगों और स्वचालित मशीनों की अन्ध दौड़ से दबते किसान वर्ग, और मरते हुए मध्यम, लघु और कुटीर उद्योग की है? मन्दी बूस्टरों की इन उपेक्षित वर्गों की पहले सुध लेनी चाहिए, जो उसने अभी तक नहीं ली। इन बूस्टरों ने निवेशकों के लिए ऋण मेले तो लगाने की घोषणा कर दी, लेकिन कज़र् बोझ से दबे हुए किसानों को कोई कज़र् माफी की राहत नहीं दी। पतन की राह पर अग्रसर आटो उद्योग और टैक्सटाइल उद्योग को भी कोई छूट नहीं दी। जी.एस.टी. की कौंसिल भी इस पर चुप लगा गयी। अब बताइए गरीब मन्दी और भूख की दलदल से बाहर आयेगा तो कैसे?