सराहनीय कदम

कुछ दिन पूर्व केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा विदेशों में बसे उन सिखों के नाम काली सूची से हटा दिए गए थे, जो विगत लम्बे समय से भारत नहीं आ सकते थे। भारत में उन पर कई तरह के मुकद्दमे भी दर्ज किए गए थे। इन नामों को काली सूची से निकालने के लिए विदेशों से भी, देश में से भी और अलग-अलग संस्थाओं की ओर से भी लगातार मांग उठाई जाती रही थी। विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास इस संबंध में लगातार सूचनाएं जुटा कर अपने प्रभाव केन्द्र सरकार को भेजते थे। केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इन सैकड़ों नामों को काली सूची से हटाए  जाने ने एक अच्छा माहौल पैदा किया। इससे वे सज्जन यहां आ सकेंगे, जिन पर विगत लम्बे समय से ऐसी रोक लगी हुई थी। गत कुछ दशकों के दौरान जो कुछ हुआ था, यह कथा बहुत लम्बी है। दुखद और रक्त-रंजित रही है। इसके प्रभाव और इसके साये आज तक भी नज़र आ रहे हैं। उन दशकों में जो कुछ हुआ, वह ऐसा था जिससे बहुत से लोगों का भावुक होना प्राकृतिक था। समय बीतने के साथ यदि सरकार द्वारा बड़े स्तर पर ऐसी नज़रसानी की गई है, तो इसका प्रभाव अच्छा माना जायेगा। इसके साथ-साथ भारत की जेलों में कुछ ऐसे कैदी भी दशकों से सज़ा भोग रहे हैं, जिन पर टाडा के अधीन केस दर्ज किए गए थे, और जिनको लम्बी सज़ाएं सुनाई गई थीं। लम्बा समय बीत जाने के बाद भी उनको रिहा नहीं किया गया था। कई 28 वर्ष और 20 वर्ष से जेलों में बंद हैं। इनमें से कुछ पंजाब की जेलों में और कुछ कर्नाटक तथा उत्तर प्रदेश की जेलों में सज़ा भोग रहे हैं। पूर्व अकाली सरकारें भी इनको रिहा करवाने के लिए केन्द्र सरकार को लिखती रही थीं। ये व्यक्ति अपनी सज़ा से भी कहीं अधिक कैद भुगत चुके हैं। एक बार हरियाणा के स. गुरबख्श सिंह ने भी आमरण अनशन रख कर इस मामले की ओर ध्यान खींचा था, ताकि इन कैदियों की रिहाई करवाई जा सके। इस संबंध में उन्होंने दो बार आमरण अनशन रखा था, जिसकी काफी चर्चा हुई थी। गत दिनों मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी यह मामला केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सामने रखा था। इसके साथ ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी यह मामला केन्द्र सरकार के पास उठाया था। भाई बलवंत सिंह राजोआणा, जिनको पूर्व मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह की हत्या के संबंध में मौत की सज़ा सुनाई गई थी, लम्बे समय से पटियाला जेल में बंद हैं। अब केन्द्र सरकार द्वारा टाडा के अधीन 9 में से 8 कैदियों को रिहा करने और भाई राजोआणा की फांसी की सज़ा उम्रकैद में बदलने ने एक बार फिर लम्बे समय से की जा रही इस तरह की मांगों को माने जाने के लिए माहौल अनुकूल बनाया है। इसका निश्चित तौर पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। निश्चय ही केन्द्र सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम की प्रशंसा किया जाना बनता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द