" आज अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस पर विशेष " बोझ नहीं, अनुभव का भंडार होते हैं बुजुर्ग

हर वर्ष 1 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाया जाता है। समाज और नई पीढ़ी को सही दिशा दिखाने और मार्ग-दर्शन के लिए तथा वरिष्ठ नागरिकों के योगदान को सम्मान देने के लिए इस आयोजन का फैसला संयुक्त राष्ट्र ने लिया था। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय को समाप्त करने के लिए और लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए 14 दिसम्बर, 1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल एक अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मनाकर हम बुजुर्गों को उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश करेंगे। इस अवसर पर अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करना एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना आवश्यक होता है। आज का वृद्ध समाज से कटा रहता है और सामान्यत: इस बात से सर्वाधिक दु:खी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व देता है। इस प्रकार समाज में एक तरह से अपनी अहमियत न समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज दु:खी रहता है। वृद्ध समाज को इस दु:ख और कष्ट से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है। मनुष्य जीवन मुख्यत: उम्र के तीन दौर से गुजरता है। बचपन,  बुढ़ापा और जवानी। जीवन का पहला पड़ाव बचपन जहां एक ओर वात्सल्य, प्रेम और अपनों के बीच गुजरता है तो दूसरी ओर बुढ़ापा इसके ठीक उलट नितांत एकांत, बीमारी, तनाव, अवसाद और अपनों के ही प्रेम से वंचित रह जाता है। ऐसा क्यों होता है, जिन बच्चों को उंगली पकड़कर जीवन के महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं वही बच्चे बड़े होकर जब समझदार हो जाते हैं तो उसी वृक्ष को सूख जाने के लिए छोड़ देते हैं, जिसकी घनी छांव के तले सभी मुश्किलें पार की थी।  विकास या वृद्धि हर समाज के उत्कर्ष के लिए अहम होती है परंतु जिस समाज में वृद्धाश्रमों की संख्या लगातार बढ़ती है नि:संदेह यह समाज के लिए शुभ नहीं है। यह दुर्भाग्य है हमारे समाज का और कड़वी सच्चाई भी। ऐसा क्यों होता है कि अपने बच्चों को काबिल बनाने वाला, उनको पालने वाला जीवन के अंतिम पड़ाव में यूं अकेला रह जाता है। क्या अब बच्चे मिलकर अपने माता-पिता को इज्जत और मान नहीं दे सकते जिसके वो हकदार हैं। बहुत से वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों को इतनी दयनीय स्थिति में लाया जाता है कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जाएं। ये भयावह है क्योंकि इस दौर से सबको गुजरना पड़ता है।
आजकल जब पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं, उनको अपने-अपने काम से फुर्सत नहीं है, ऐसे में छोटे बच्चों की देखभाल के लिए कई युवा दंपत्ति सरल, सस्ता और भरोसे वाला तरीका अपनाते हैं  और गांव-घरों से अपने मां-बाप को बुला लेते हैं। यहां तक तो ठीक है कि नाती-पोतों के साथ उनका मन लग जाता है, परंतु जैसे ही बच्चे स्कूल जाने योग्य होते हैं तो उनको वही माता-पिता बोझ लगने लगते हैं, उनका खर्च भी उनको अखरने लगता है और वो किसी तरह उनको वृद्धाश्रम भेज देते हैं। इस उम्र तक आते-आते अधिकतर लोगों को मधुमेह, बीपी, जैसी कई बीमारियां घेर लेती हैं। इन बीमारियों का स्थायी इलाज न होकर जीवन भर दवाएं होती हैं जो महंगी होती हैं। जिन दंपत्तियों के पास पेंशन या कोई आय का साधन नहीं होता वो बच्चों की दया के मोहताज बनकर रह जाते हैं।  जिन हाथों ने जीवन भर स्नेह और प्यार से दिया था अब वो ही हाथ बच्चों के सामने फैले रहते हैं और लाचार से नजर आते हैं।  जिन बुजुर्गों के पास धन-संपत्ति या पेंशन होती है उनको भले ही दिल से इज्जत न दें बच्चे, मजबूरी में रोटी दे ही देते हैं और बच्चे हर  वक्त इसी ताक में रहते हैं कि किसी तरह सारी जायदाद उनके हिस्से में आ जाये और संपत्ति जैसे ही अपने नाम हो जाती है, उसी क्षण बुजुर्गों को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया जाता है। बुढ़ापा है सबको आएगा ही जो भी इस दुनिया में पैदा हुआ है। कुछ बुजुर्ग अवश्य सौभाग्यशाली होते हैं, जिनको उनके बच्चे इज्जत और प्यार दे पाते हैं परंतु सबकी किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती और ऐसे बदकिस्मत लोगों की तादात बहुत है और दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिसका उदाहरण तेजी से वृद्धि करते वृद्धाश्रम हैं। ये आधुनिक समाज का सबसे दुखद पहलू है जिसे हमें स्वीकार करना ही होगा।  मेरी सभी लोगों से अपील है कि वह बुजुर्गों को बनता सम्मान दें। बुजुर्ग बोझ नहीं बल्कि अनुभव का भंडार होते हैं। उनकी देखभाल करना हर सन्तान का परम-कर्त्तव्य है। जो वृद्ध वृद्धाश्रमों में रह रहे हैं, उनकी मदद व देखभाल के लिए समाज के हर वर्ग और खासकर समाजसेवी संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
वृद्धाश्रमों में रह रहे  इन बुजुर्गों के साथ सप्ताह में एक दिन ज़रूर बिताना चाहिए। मैं और मेरी संस्था रोटरी क्लब (उत्तरी) जालन्धर के सदस्य भी सप्ताह में एक
दिन इन बुजुर्गों के साथ बिताते हैं। किसी शायर ने खूब लिखा है :—
एक ख्याल की तरह होते हैं, 
जब पल-पल में बिखर जाते हैं, 
अपने दिल की दुआओं से ,
संभाला करते हैं हमें, हमारे बुजुर्ग।