सम्भलने का समय

धान की फसल मंडियों में आने के साथ ही खेतों में पराली को आग लगाने का सिलसिला शुरू हो गया है। इस बार केन्द्र सरकार, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल, हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने लगातार यह प्रयास किया था कि फसल के बाद किसान खेतों में पराली को आग न लगायें इसके लिए बड़े स्तर पर प्रचार भी किया गया था। कड़े प्रशासनिक कदम उठाने के निर्देश भी दिये गये थे। पिछली बार इन कदमों में केस दर्ज करना भी शामिल था। पंजाब कृषि विभाग ने भी किसानों को समझाने के लिए स्थान-स्थान पर समारोह किये, मेले लगाये, समाचार-पत्रों में विज्ञापन दिये ताकि किसान ऐसा न करें। कृषि विभाग के सचिव और तंदुरुस्त पंजाब मुहिम के सचिव काहन सिंह पन्नू ने यह बताया था कि गत वर्ष किसानों को 28 हज़ार मशीनें सस्ते मूल्य पर दी गई और इस वर्ष भी इस कार्य के लिए 26 हज़ार मशीनों के लिए 260 करोड़ रुपए की राशि रखी गई थी। किसानों को बार-बार यह अपीलें की गई थी कि वह पराली न जलाएं और हैपी सीडर तथा सुपर सीडर मशीनों का प्रयोग करें, जिनसे पराली को खेतों में कतरा-कतरा करके खपा दिया जाता है। परन्तु इसके बावजूद इस सप्ताह में अब तक पौने 200 के लगभग पराली जलाने के मामले सामने आ चुके हैं। सरकारी तौर पर धान की खरीद प्रथम अक्तूबर को शुरू की गई थी। स्थिति यह है कि पराली को आग लगाने की घटनाएं गत वर्ष की अपेक्षा अधिक सामने आ रही हैं। पंजाब प्रदूषण रोकथाम बोर्ड के अनुसार वर्ष-2018 में इन दिनों में सिर्फ 25 ऐसे केस दर्ज किये गये थे, अब इनकी संख्या पौने 200 तक बढ़ चुकी है। ज्यों-ज्यों धान मंडियों में आता जाएगा, आग लगने की घटनाएं बढ़ती जाएंगी, जिनका घना धुआं एक तरफ देश की राजधानी दिल्ली तक को अपने आगोश में ले लेगा। दूसरी तरफ पश्चिमी पंजाब पर भी इसका उतना ही असर पड़ेगा। इससे पैदा हुई ज़हरीली गैसें मनुष्य के दिल, सांस और फेफड़ों पर सीधा असर करती हैं और उसको बुरी तरह बीमार कर देती हैं। खेतों में पराली जलाने के नुक्सान सभी के सामने हैं, इससे मिट्टी की गुणवत्ता कम होती जाती है। मित्र कीड़े राख हो जाते हैं, जबकि पराली को खेतों में ही खपाने से इसकी गुणवत्ता कहीं बढ़ जाती है। इस संबंध में जो केस किसानों पर दर्ज किये भी जाते हैं, उनमें बहुत ही कम राशि किसानों से वसूल की जाती है। सरकार का मुख्य लक्ष्य किसानों को पराली को जलाने से रोकने का होता है, परन्तु किसान यह चाहते हैं कि पराली का शीघ्र अति शीघ्र निपटारा करके भूमि को अगली फसल के लिए तैयार किया जाए। इसी कारण बनावटी उपग्रहों द्वारा ली गई तस्वीरें बहुत ही भयानक और डरावनी नज़र आती हैं। चाहे राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस कार्य को रोकने के लिए विशेष टीमें गठित की हैं, परन्तु इनका कोई असर नहीं हो रहा। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा है कि पैदा हुए इस प्रदूषण से तब तक नहीं निपटा जा सकता, जब तक इस संबंध में प्रभावशाली कदम नहीं उठाये जाते। समस्या से निपटने के लिए किसानों को संयुक्त रूप में उत्साहित किया जाना आवश्यक है। सरकार को इस कार्य के लिए को-आप्रेटिव सोसायटियों तथा सांझी संस्थाओं के साथ तालमेल बिठा कर पर्याप्त मशीनरी मुहैया की जानी चाहिए, ताकि किसानों पर वित्तीय बोझ कम से कम डाला जा सके। हम महसूस करते हैं कि समूचे रूप में सरकार, संबंधित किसानों और समाज में प्रतिबद्धता की कमी के कारण अब तक के बड़े प्रयासों के बावजूद इस समस्या को सुलझाया नहीं जा सका। ऐसी समस्या को सुलझाना समय की ज़रूरत है। नि:संदेह अब इस संबंध में सम्भलने का समय आ चुका है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द