धनु-धनु रामदास गुरु

श्रीअमृतसर शहर के संस्थापक, सिख धर्म के चौथे पातशाह श्री गुरु रामदास जी का पवित्र और गम्भीर जीवन सेवा, प्रेम, भक्ति और सदगुणों से भरपूर है। आप जी ने दुनिया को आत्मिक, धार्मिक, सामाजिक तौर पर रौशन किया अर्थात् जीवन के हर पक्ष को सार्थक बनाने के लिए जुगत समझाई। गुरु साहिब जी की प्रशंसा हेतु भाई सत्ता जी और भाई बलवंड जी ने पावन गुरुवाणी में रामकली वार में इन शब्दों द्वारा बयान किया—
धनु-धनु रामदास गुरु
जिनि सिरिया तिनै सवारिया।।
पूरी होई करामाति
आपि सिरजणहारै धारिया।।
सिखी अते संगती 
पारब्रह्म करि नमस्कारिया।।
अटल अथाह अतोल
तू तेरा अंत न पारावारिया।। (पृष्ठ 968)

गुरु साहिब जी का जीवन साधारण परिवार से शुरू हुआ और निष्काम सेवा तथा सच्चे सिदक के कारण गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। आप जी ने सिखी के पौधे को प्रफुल्लित करने के लिए अनेक कार्य किए। श्री गुरु रामदास जी वर्ष 1534 में पिता श्री हरिदास जी के गृह में प्रकट में हुए। समय की परम्परा के अनुसार बड़े बेटे को ‘जेठा’ कहा जाता था, जिस कारण प्रारिम्भक रूप में आप जी ‘भाई जेठा जी’ के नाम से जाने जाते रहे। छोटी आयु में ही आप जी के माता-पिता साथ छोड़ कर अकाल पुरख को प्यारे हो गए। पारिवारिक निर्वाह के लिए आपको घुंगणियां बेचनी पड़ी। इतिहास के अनुसार आप जी के नानी आपको बासरके ले आए। श्री गुरु अमरदास जी के दर्शन की इच्छा के कारण आप बासरके गिल्लां से श्री गोईंदवाल साहिब आ गए। आपकी नम्रता, सेवासिमरन, किरत और नेक स्वभाव को देखकर श्री गुरु अमरदास जी ने अपनी सुपुत्री बीबी भानी जी का रिश्ता आप जी से कर दिया। गुरु घर का दामाद बनकर भी आप जी ने लोकलाज की परवाह नहीं की और दिन-रात गुरु घर की सेवा में तत्पर रहे। एक बार लाहौर से आए शरीक वालों ने ताना भी दिया। संक्षेप में घटना इस तरह है कि आप श्री गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में बाऊली की कार सेवा में तन-मन से लगे हुए थे। लाहौर से कुछ शरीक वाले श्री गोईंदवाल साहिब आए। आपको टोकरी ढोते और वस्त्र कीचड़ से गंदे हुए देखकर उनको बुरा लगा। जब बात श्री गुरु अमरदास जी के पास पहुंची तो पातशाह बख्शिशों के घर में आ गए। तीसरे सतिगुरु जी के मुख से निकला ‘यह कीचड़ नहीं, प्रशंसा का केसर और गुलाल है, सिर पर आम की टोकरी नहीं बल्कि पातशाही छत्र झूलने का निशान है’। इस तरह आप जी की नम्रता और सद्गुणों को देखकर श्री गुरु अमरदास जी ने गुरु गद्दी की ज़िम्मेदारी आपको सौंप दी। गुरु गद्दी पर विराजमान होने के बाद श्री गुरु रामदास जी ने सिख धर्म की बुलंदी और चढ़ती कला के लिए अनेक कार्य किए, जिससे गुरु घर की प्रशंसा चारों तरफ फैली। श्री अमृतसर की स्थापना आप जी का एक अहम कार्य है। श्री गुरु रामदास जी तीसरे पातशाह जी के आदेश से यहां आए और सरोवर की खुदवाई शुरू करवाई। यह सरोवर संतोखसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी दौरान आप ने नगर ‘गुरु का चक्क’ बसाया जो बाद में ‘रामदासपुर/चक्क रामदास’ के नाम से जाना गया और फिर ‘श्री अमृतसर’ के तौर पर प्रसिद्ध हुआ। आप ने यहां बसने के लिए संगतों को प्रेरित किया। इस नगर को आबाद करने के लिए आप ने अलग-अलग हुनरों के श्रमिकों को यहां बसाया। इतिहास के अनुसार यह अलग-अलग तरह के 52 व्यवसायों से संबंधित लोग थे। श्री गुरु रामदास जी द्वारा बसाया यह नगर मानव समानता और भ्रातृत्व भाव की एक मिसाल बना। आपने यहां अलग-अलग वर्गों के लोग बसाये। ‘मसन्द’ प्रणाली की शुरुआत भी आपका एक अहम फैसला था। मसन्दों ने गुरु घर के प्रचार-प्रसार के लिए अहम भूमिका निभाई। मसन्द सिखी के वे प्रचारक थे, जो संगत से गुरु घर के लिए भेंट एकत्रित करते और सिखी का प्रचार करते थे। इसी तरह श्री गुरु रामदास जी ने सिखी की परम्पराओं के पालन के लिए संगतों को प्रेरित किया और सिखी मर्यादा और मजबूत किया। श्री गुरु नानक देव जी द्वारा  शुरू की गई लंगर की मर्यादा को आगे चलाने में भी आपका बहुमूल्य योगदान है।
आप जी ने धुर की बाणी का अमूल्य और बड़ा भण्डार मानवता की झोली में डाला। गुरु पातशाह की बाणी मनुष्य मात्र के लिए सुखों का खजाना और आत्मिक आनंद प्रदान करने वाली है। इसमें मनुष्य मात्र की सभी समस्याओं का हल मौजूद है। यह हमारा आध्यात्मिक और सामाजिक नेतृत्व कराते हुए अच्छा जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करती है। गुरु रामदास जी के पावन प्रकाश पर्व पर मेरी समूह संगत को अपील है कि आओ, हम सभी गुरु साहिब के महान जीवन को याद करते हुए अपने भीतर नम्रता, सेवा और सिमरन के भाव पैदा करते हुए सिख पंथ के सिद्धांतों को व्यवहारिक जीवन का हिस्सा बनाएं। यदि हम आप जी की वबाणी के संदेश का सही बोध प्राप्त करके अमल में लाने के लिए प्रयासरत होंगे तो निश्चय ही हमारी जीवन यात्रा सफल हो सकती है। 

—प्रधान,शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर