बैंक प्रबंधन की विश्वसनीयता

पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआप्रेटिव बैंक, जिसका मुख्य कार्यालय मुम्बई में है तथा जिसकी 7 राज्यों में 137 शाखाएं हैं, में हुई गड़बड़ के बाद आर्थिक जगत में मचे भूकम्प से भारत की बैंकिंग प्रणाली एक बार फिर विवादों में घिरी दिखाई देती है। कोआप्रेटिव बैंक का संबंध मुख्य रूप से सम्बद्ध प्रदेश की सरकार से होता है, परन्तु रिज़र्व बैंक इस पर अपना अंकुश अवश्य बनाये रखता है। सरकारी एवं निजी बैंकों के ऊपर रिज़र्व बैंक का जो अंकुश होता है, वह सहकारी बैंकों पर नहीं होता, परन्तु पिछले दिनों बड़े सरकारी बैंक ही ऐसी कम्पनियों एवं व्यापारी लोगों के चंगुल में फंस गये थे, जिनके कारण उन्हें भारी वित्तीय घाटा तो पड़ा ही अपितु नमोशी भी सहन करनी पड़ी थी तथा इसके साथ ही इन बैंकों की प्रतिष्ठा पर भी प्रश्न-चिन्ह लग गया। आज विजय माल्या, नीरव मोदी एवं बहुत से अन्य ऐसे व्यापारी देश से बाहर हैं, जिन्होंने इन संस्थानों से हज़ारों-करोड़ रुपये की घपलेबाज़ी की है। इनमें से अधिकतर भारत के कानून के दायरे से बाहर हैं। सरकार को इन्हें देश में लाने के लिए बड़े यत्न करने पड़ रहे हैं। देश की अनेक बड़ी फाइनांस कम्पनियां विवादों के घेरे में हैं। इनके मालिक जेलों में बंद हैं परन्तु प्रभावित लोगों में हाहाकार मची हुई है। सहकारी बैंक प्रदेश की सहकारिता सभाओं संबंधी कानून के अन्तर्गत बनते हैं, इनके पदाधिकारियों के पास अपनी मज़र्ी करने के अधिक अवसर होते हैं। पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआप्रेटिव बैंक की स्थिति भी ऐसी ही थी। यह बैंक दशकों पूर्व पंजाबियों की ओर से शुरू किया गया था ताकि परिवहन एवं अन्य व्यवसायों में लगे पंजाबियों को अपना एक बैंक मिले, जिसमें वे अपनी पूंजी जमा करवा सकें। इस उद्देश्य के साथ शुरू किये गये इस बैंक ने बड़ी उन्नति की। इसे पिछले वर्ष लगभग 100 करोड़ रुपये का लाभ भी हुआ था, परन्तु इसके साथ ही जिस प्रकार इसके चेयरमैन एवं अन्य पदाधिकारियों की ओर से कुछ कम्पनियों के साथ मिल कर इसकी पूंजी को चूना लगाया जाता रहा, वह आश्चर्यजनक है। यह बैंक देश के कुछ एक बड़े सहकारी बैंकों में से है। इसमें छोटे व्यापारियों, उद्योगपतियों, ट्रांस्पोर्टरों एवं जन-साधारण का 11 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक जमा है। इसमें अधिक राशि मुम्बई में काम करने वाले पंजाबियों की है। बैंक के चेयरमैन ने अन्य अधिकारियों के साथ मिल कर एक हाऊसिंग कम्पनी को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष ढंग से 4 हज़ार करोड़ रुपये से भी अधिक का ऋण दे दिया था। यह ऋण समय-समय पर दिया जाता रहा, परन्तु मिलीभुगत के कारण इसकी वापसी की कोई व्यवस्था नहीं की गई। यह बात तब सामने आई जब इस कम्पनी ने अपना वित्तीय घाटा दिखाना शुरू किया एवं बड़ी राशि देने से इन्कार कर दिया। इस पर रिज़र्व बैंक ने इसी वर्ष सितम्बर मास में इस पर अपना प्रशासक नियुक्त कर दिया तथा सभी तरह के खाताधारियों द्वारा राशि निकलवाने पर रोक लगा दी। इसमें क्योंकि अधिकतर मध्यम-वर्गीय लोगों एवं व्यापारियों का पैसा जमा था, जिससे स्थिति अधिक खराब हो गई। लोगों पर अपना पैसा निकलवाने पर लगी रोक के कारण स्थितियों का खराब होना प्राकृतिक बात थी, क्योंकि यदि 25 हज़ार रुपये तक की राशि निकलवाने की इजाज़त भी दी गई, तो इससे भी लोगों की बड़ी-छोटी आवश्यकताएं पूर्ण होना सम्भव नहीं था। बैंक का कारोबार बंद होने से अब इस संस्थान के बंद होने के आसार भी बन गये दिखाई देते हैं। लोगों के भीतर यह भी भय पैदा हो चुका है कि उनकी राशि उन्हें मिलेगी अथवा नहीं, या कब मिलेगी, इस संबंध में अनिश्चितता बनी हुई है। केन्द्र सरकार ने भी इस संबंध में खाताधारियों को पूरी तरह से विश्वास नहीं दिलाया। बैंक के चेयरमैन, कुछ बड़े पदाधिकारियों एवं भारी ऋण लेने वाली कम्पनी के मालिकों को पकड़ लिया गया है। एक समाचार के अनुसार हाऊसिंग डिवैल्पमैंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्पनी के सारंग वधावन एवं राकेश वधावन की लगभग 4 हज़ार करोड़ रुपये की सम्पत्ति भी ज़ब्त कर ली गई है। रिज़र्व बैंक के अधिकारियों, केन्द्र सरकार एवं प्रदेश सरकार की ओर से खाताधारियों के साथ उनका पैसा वापस करने के वायदे भी किये गये हैं, परन्तु अभी तक इस संबंध में कोई निश्चित योजनाबंदी नहीं की गई तथा न ही प्रभावित लोगों को उनका पैसा वापिस करने की कोई निश्चित तिथियां ही बताई गई हैं। उत्पन्न हुई ऐसी स्थिति से एक बार फिर समूची बैंकिंग प्रणाली के संबंध में समीक्षा करने की आवश्यकता प्रतीत होती है, क्योंकि अब तक अनेक बड़ी कम्पनियों की ओर से बैंकों को लाखों-करोड़ों रुपये का चूना लगाया जा चुका है। भारत में बैंकिंग प्रणाली पर लोगों का विश्वास बहाल करने के लिए सरकार की ओर से सचेत रूप में बड़े यत्न किये जाने की आवश्यकता होगी। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द