ठीक नहीं है नागरिकता रजिस्टर पर बहस  

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने ऐजवाल में भारत के गृहमंत्री व भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात करके बताया कि उनके राज्य के लोग नागरिकता कानून 1955 में प्रस्तावित संशोधन के विरोध में हैं; क्योंकि नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 से मिजोरम में ‘अवैध अप्रवासियों की बाढ़ आ जायेगी’।  नई दिल्ली ने ढाका को आश्वासन दिया है कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ  सिटीजंस (एनआरसी) को लागू किया जाना भारत का अंदरूनी मामला है। बांग्लादेश ने भारत से एनआरसी का मुद्दा न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के दौरान भी उठाया था और फिर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात में भी उठाया। इसके बाद बांग्लादेश के विदेश सचिव शाहिदुल हक ने पत्रकारों को बताया, ‘प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री हसीना को उस प्रक्रिया के बारे में बताया है, जिससे आखिरकार यह सुनिश्चित किया जायेगा कि किसी को भी (एनआरसी से) बाहर न रखा जाये, सबको शामिल कर लिया जाये और हमें बताया गया है कि यह भारत का अंदरूनी मामला है।’ इससे कई प्रश्न उठते हैं। अगर एनआरसी भारत का ‘अंदरूनी मामला’ है और ‘आखिरकार सब को शामिल कर लिया जायेगा’ तो एनआरसी की कवायद किस लिए की गई? जो ‘विदेशी नागरिक’ घोषित हुए हैं, क्या उन्हें एक अवधि के बाद जेल या कैंपों में रखा जायेगा? नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर इतना राजनीतिक बल किसलिए? गौरतलब है कि अमित शाह ने एक अक्टूबर को फिर दोहराया था कि इस विधेयक को संसद में पारित किया जायेगा, जिसके तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश व पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध और जैन शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जायेगी, भले ही उनके पास उचित कागजात न हों, उन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) कानून 1920 व विदेशी कानून 1946 के तहत वापस उनके देश नहीं भेजा जायेगा। मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान नहीं की जायेगी, तो इसका अर्थ यह हुआ कि असम की एनआरसी में जो लगभग 13 लाख गैर मुस्लिम ‘विदेशी’ हैं उन्हें तो नागरिकता मिल जायेगी, लेकिन जो बाकी लगभग 6 लाख मुस्लिम ‘विदेशी’ हैं, उनका क्या होगा? ‘अंदरूनी मामले’ के चलते चूंकि बांग्लादेश उन्हें भेजा नहीं जायेगा, प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार ‘सभी को शामिल कर लिया जायेगा’ और मिजोरम व अन्य राज्य इन दोनों प्रकार के ‘विदेशियों’ को ‘शरण’ देकर अपना हिस्सा बनाना नहीं चाहते। सवाल है फिर आखिरकार इन्हें कहां रखा जायेगा? नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को लोकसभा ने 8 जनवरी को पारित कर दिया था, लेकिन राज्यसभा में न रखे जाने के कारण यह लैप्स हो गया। प्रस्तावित विधेयक के विरुद्ध उत्तर-पूर्व के लगभग सभी राज्यों में जबरदस्त विरोध हुआ था। अमित शाह ने मिजोरम में लागू इनर लाइन परमिट (आईएलपी) को विधेयक में शामिल करने का आश्वासन दिया है। आईएलपी भारत सरकार द्वारा जारी अधिकारिक यात्रा परमिट है जो भारतीय नागरिकों को प्रोटेक्टेड एरिया में अंदरूनी यात्रा के लिए सीमित अवधि हेतु जारी किया जाता है। यह लाजमी है। इसका अर्थ यह है कि अगर आप मिजोरम जैसे प्रोटेक्टेड राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य में रहते हैं और उस क्षेत्र में जाना चाहते हैं तो भारतीय नागरिक होने के बावजूद आपको यात्रा परमिट लेना होगा और वह भी सीमित अवधि के लिए। नागरिकता विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि देशीकरण से नागरिकता प्रदान करने के लिए आवास अवधि को 12 वर्ष से घटाकर 7 वर्ष कर दिया जाये। लेकिन विधेयक के आलोचकों का कहना है कि यह संविधान की बुनियादी संरचना का उल्लंघन करता है। अवैध अप्रवासियों में धर्म के आधार पर भेदभाव करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जिसके तहत समता के मौलिक अधिकार की गारंटी है। अनुच्छेद 14 की सुरक्षा दोनों नागरिकों व विदेशियों पर बराबर लागू होती है। यह विधेयक असम की एनआरसी को बाधित करता है जिसमें अवैध अप्रवासी धर्म से इतर परिभाषित हैं, कट-ऑफ-डेट के आधार पर। तीसरा यह कि यह विधेयक 1985 के असम समझौते को ध्वस्त करता है, जिसके अनुसार जो व्यक्ति 24 मार्च 1971 से पहले असम में अपना वंश साबित नहीं कर सकता वह विदेशी है, भले ही किसी भी धर्म का हो। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल एक याचिका विचाराधीन है जिसमें उन अवर कानूनों को निरस्त करने का आग्रह है जिनके तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश व पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई शरणार्थियों को देशीकरण के जरिये भारतीय नागरिकता दी जाती है। 5 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में केंद्र को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया है कि पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियमों, 2015 विदेशी (संशोधन) आदेश, 2015 और 26 दिसम्बर 2016 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गये आदेश, जिनसे देशीकरण के जरिये हिन्दू, सिख, बुद्ध, जैन, पारसी व ईसाई अवैध अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता मिल जाती है, उन्हें ‘अवैध व अयोग्य’ घोषित किया जाये। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अवर कानूनों से जो ‘चोर रास्ता’ दिया गया है उससे ‘असम में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ अनियंत्रित हो जायेगी’। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि अवैध घुसपैठ से उत्तर-पूर्व राज्य में जबरदस्त सामाजिक परिवर्तन आया है। इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई व न्यायाधीश संजीव खन्ना की खंडपीठ सुन रही है। याचिका असम की जमाअत-ए-उलमा-हिन्द और नागरिकता संशोधन विधेयक के विरुद्ध मंच (नागरिकातवा आइन सोंगुसुधन बिरोधी मंचा) ने अलग-अलग दायर की है। भारत-बांग्लादेश संबंधों को परवान चढ़ाने के लिए जरूरी है कि भारतीय नेतृत्व एनआरसी जैसे प्रोजेक्टों पर बल देना बंद करे। एनआरसी पर प्रधानमंत्री मोदी का प्रधानमंत्री हसीना को आश्वासन के बावजूद एनआरसी एक्सरसाइज द्विपक्षीय संबंधों पर तनाव डालती है। बांग्लादेश की अर्थ-व्यवस्था अच्छा कर रही है इसलिए अवैध घुसपैठ का मुख्य कारण अब रह नहीं जाता। तथ्य यह है कि नई दिल्ली को ढाका की सफलता से सबक लेते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने पर फोकस करना चाहिए बजाय एनआरसी व भेदभाव वाले नागरिकता संशोधन विधेयक के।

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