पिया, फिर ले आए घिया ?

जब शाम को काम से लौटते वक्त टिंडू राम आज फिर थैला भर घिया लेकर अपने घर में घुसे, तब उसकी पत्नी करतारी देवी ने तिरछी नज़र से पहले टिंडू राम की ओर देखा, फिर उसके हाथ से थैला झपट लिया। घिया से भरा थैला देखकर करतारी देवी गुस्से से भर उठी और उसने थैला चारपाई पर ‘फटाक’ से पटकते हुए कहा, ‘तुम कैसे निर्मोही और सनकी हो पिया? क्यों ले आते हो बार-बार घिया? इसे खा-खाकर उकता चुका है मेरा जिया। मैंने तुम्हें कितनी बार मना है किया कि न लाया करो बार-बार घिया। मगर तुमने कभी मेरी इस बात पर ध्यान नहीं दिया। गुस्से में करतारी देवी बोलती ही चली जाती है। उसके चुप होने के बाद ही टिंडू राम की बंद हुई बोलती खुलती है। आज भी ऐसा ही हुआ। उसने कपड़े बदलते हुए और करतारी देवी की ओर पलटते हुए कहा, ‘तरकारी देवी मेरी प्रिया, सब सब्ज़ियों में उत्तम है घिया। तुम्हें पता ही है क्या? तुम तो...।’ करतारी देवी ने उसे कुछ दूर धकेलते व बीच में टोकते हुए कहा, मेरा नाम तो सीधा लिया करो। सब काम उल्टे करने का तुमने ठेका है क्या लिया? मेरा नाम तरकारी देवी नहीं है, करतारी देवी है। समझें क्या? ठीक है, ठीक है। पहले तुम ठंडा पानी पियो, ताकि तुम्हारा दिमाग ठंडा हो।  फिर मुझे ठंडा पानी पिलाओ, ताकि मेरा दिमाग इस ताज़ा-ताज़ा घिया की तरह तरो-ताज़ा हो। टिंडू राम ने चारपाई पर पड़ा थैला उठा लिया, और फिर उसमें से एक-एक घिया निकाल कर रसोईघर में ले जाकर सजा दिया। ‘टिंडा राम, क्या मेरा दिमाग ठंडा नहीं रहता? हयं?’ वह तुनकती हुई बोली। मुझे अपना गलत नाम लेने से टोकती हो। मेरा गलत नाम लेने से खुद को क्यों नहीं रोकती हो? कपड़े बदलकर एक योगी बाबा की तरह वह चारपाई पर पालथी मारकर बैठ गया। गोया कि योगासन करने लगा हो। उनका बेटा टिंकू और बेटी पिंकू घर के सामने वाले मैदान में खेल रहे थे। दोनों अभी अपने बचपन में थे।  उन्होंने अपने पिता जी को हाथ में भरा-भरा थैला पकड़े घर में प्रवेश करते हुए देख लिया था। कुछ देर और खेलने के बाद वे भीतर आ गए। इसी बीच करतारी देवी ने स्वयं फ्रिज़ का ठंडा पिया और टिंडू राम को घड़े का ठंडा पानी पिलाया। क्योंकि वह इक्कीसवीं सदी में भी घड़े का पानी पीना और पैदल चलना, सादा भोजन खाना, सादा रहन-सहन पसंद करता था। वह कोई टीवी चैनल भी नहीं देखता था। केवल रेडियो सुनता था। ‘पापा, आज आप थैले में कौन-सा फल लाए हैं?’ सात वर्षीय टिंकू ने टिंडू राम के गले में अपनी दोनों बांहें डालते हुए मचलकर पूछा।  ‘बेटा, तुम्हारे पापा घिया के सिवाय और कोई सब्ज़ी या फल लाते हैं क्या?’ करतारी देवी ने रात का खाना तैयार करने का काम शुरू करते हुए कहा। वह एक अन्य चारपाई पर बैठकर एक-एक घिए को छिलने के बाद इस तरह बेदर्दी के साथ काट-काटकर एक थाली में फैंक रही थी, जैसे वह हर घिए का कत्ल कर रही हो। टिंडू राम को लगा कि उसकी पत्नी घिया पर छुरी नहीं चला रही है। बल्कि उसके गले पर चला रही है। ‘तनिक आराम और प्यार से काटो न घिया। क्यों घायल करती हो मेरा जिया?’ करतारी देवी ने क्रोध से उसकी ओर देखते हुए कहा, ‘चुप रहो। वरन् थाली सहित सारा घिया बाहर गली में फैंक दूंगी।’ पापा, प्लीज़ कोई और सब्ज़ी ले आया करो। जैसे भिंडी, करेला, कटहल, टिंडे, पलवल, गोभी वगैरह। कभी रामातोरी, सेमफलियां, गाजर, शलगम आदि ले आया करो। पापा, हमारे साथ पढ़ने व खेलने वाले बच्चे मुझे ‘लौकी’ और टिंकू को ‘घिया’ कहकर चिढ़ाते रहते हैं। उन्हें भी पता चला गया है कि हमारे घर में घिया की सब्ज़ी बहुत ज्यादा, बल्कि यही सब्ज़ी खाई जाती है।’ ग्यारह वर्षीय रिन्कू ने रुआंसे स्वर में कहा। टिंडू राम ने उसे पुचकारते व दुलारते हुए अपने पास बैठा लिया। फिर टिंकू को भी अपने पास बैठा लिया। इसके बाद वह घिया के घने गुणों का बखान करने लगा, ‘मेरे प्यारे-प्यारे बच्चो, गौर से सुनो। जैसे आंवला और तुलसी
में कई गुण होते हैं, वैसे ही घिया में भी होते हैं। घिया की सब्ज़ी हल्की और सुपाच्य होती है।  घिया खाने से पेशाब खुलकर आता है, जिससे गुर्दे ठीक ढंग से काम करते रहते हैं। कद्दूकश किए गए घिए को उबालकर अगर रायता बनाया जाए तो बात सोने पे सुहागा जैसी बन जाती है। घिया जिगर यानि लीवर की गर्मी को भी दूर करता है। अर्थात् घिया खाने से हमारा जिगर भी ठीक रहता है। ज्यादा घिया...मतलब
बार-बार घिया खाने से गुर्दों में पत्थरी भी नहीं पड़ती है। इसीलिए तो मैं...। टिंडू राम द्वारा घिया के किए जा रहे बखान में व्यवधान डालते हुए करतारी देवी ने फरमान किया, ‘तुम्हारी ये सभी बातें सही हैं। लेकिन जुबान का जायका बदलने के लिए कभी-कभी घिए के अलावा दूसरी सब्ज़ियां भी लाया करो। ताकि मुझे यह कहना न पड़े, ‘ए पिया, तुम फिर ले आए घिया?’ इसके बाद वे सभी ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे।

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