बच्च्यिं पर ज़ुल्मो सितम क्यों ?

हमारा समाज किस तरफ जा रहा है? घोर कलियुग, आपसी रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। छोटी-छोटी बच्चियों और बच्चों से दुष्कर्म होना आम बात हो गई है। कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश के उन्नाव तथा जम्मू-कश्मीर के कठुआ कांड के दौरान मासूम बच्चियों के साथ जो दरिंदगी हुई उसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। दिसम्बर 2012 में निर्भया कांड ने समूचे देश को हिला कर रख दिया था।
 बेशक इस कांड के दोषियों को फांसी की सज़ा हो चुकी है, परन्तु अभी इस पर अमल होना शेष है। कड़े कानून बनाने के बावजूद बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं और बढ़ रही हैं। विगत में कठुआ तथा उन्नाव की घटनाओं ने दरिंदगी की सभी सीमाएं पार कर दी, तो लोगों के रोष के कारण सरकार ने क्रिमिनल एक्ट कानून 2018 जारी किया। इसके तहत 12 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथ दुष्कर्म की सज़ा फांसी है और 16 वर्ष तक की लड़कियों के साथ किये कुकर्म की सज़ा उम्र कैद है। 
यह एक गम्भीर सोचने वाली बात है कि इस कानून के लागू होने से इस प्रकार की घिनौनी घटनाओं पर काबू पा लिया जाएगा? हर रोज़ समाचार-पत्रों में दुष्कर्म की घटनाओं के बारे में पढ़ कर मन बहुत दुखी होता है। लड़कियों, महिलाओं का अकेले बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं, आखिरकार हमारे समाज को क्या हो गया है? ऐसी घटनाओं के कारण हम सभी शर्मिन्दा हैं। लोगों और मीडिया के विरोध के कारण अब कानून में संशोधन तो हुआ, परन्तु यह कैसे और कब लागू होगा यह तो समय ही बता सकता है। कितनी शर्म की बात है कि दोषियों के पक्ष में कैसे कई लोग आगे आ जाते हैं। हम किस तरह के समाज का निर्माण कर रहे हैं?
उल्लेखनीय है कि देश की राजधानी दिल्ली में हुए घिनौने निर्भया कांड के बाद तत्कालीन कानूनों में बहुत सारे बदलाव किये गये, परन्तु समस्या ज्यों की त्यों ही है। बल्कि इस तरह के अपराधों में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। ऐसे घिनौने अपराध करके भी अपराधी बच जाएं तो सोचें कि हमारे समाज की तस्वीर कैसी होगी? दुष्कर्म करने वाले अपराधियों को उपयुक्त सज़ाएं देने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया गया। यौन अपराधियों की प्रोफाइल तैयार करने की कोशिशें जारी हैं। सरकार, समाज और लोगों की सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि ऐसी घटनाओं के बढ़ने के मुख्य कारणों पर ध्यान दें। युवाओं को नैतिक शिक्षा दी जाए। उनकी सोच में बदलाव लाया जाए। सामाजिक जागरुकता के साथ-साथ शिक्षा से ही ऐसी घटनाओं पर रोक लग सकती है। 
नि:संदेह बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाले अपराधियों को मौत की सज़ा देने के लिए कानून तो बना दिया गया, परन्तु यहां इस बात पर भी विचार करना ज़रूरी है कि इस कानून का भविष्य में दुरुपयोग न हो। बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं के बाद बेशक सरकार ने कड़ी से कड़ी सज़ाएं और मौत की सज़ा देने के लिए कानून में बदलाव लाया, परन्तु इस कानून से किसी निर्दोष को बिना वजह सज़ा न मिले इस बात पर भी ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। लड़कियों को भी अपनी सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए। अंत में यही कहा जा सकता है कि कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरुकता से ही ऐसी घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है।
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