भाजपा के लिए चेतावनी 

हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ देश के 16 राज्यों में अलग-अलग सीटों पर उप-चुनाव हुये हैं। इनमें पंजाब की 4 सीटों के अलावा गुजरात, बिहार, असम, सिक्किम, राजस्थान तथा तमिलनाडू आदि राज्यों की भी कुछ सीटें शामिल हैं। चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद आगामी दिनों में महाराष्ट्र तथा हरियाणा में अलग-अलग पार्टियों के गठबंधनों द्वारा सरकारें बनाने की सम्भावना है। जबकि अन्य राज्यों में हुये उप-चुनावों के परिणामों का वहां की सरकारों पर कोई अधिक असर नहीं पड़ेगा।  मुख्य रूप में जो दृश्य सामने आया है, वह है इन चुनावों में भाजपा की चमक का कुछ मद्धम पड़ना। उदाहरण के तौर पर हरियाणा में भाजपा 90 सीटों में से 75 सीटें ले जाने का दावा करती थी, परन्तु उसको 40 सीटें प्राप्त हुई हैं, जोकि उसके दावे से कहीं कम है। हरियाणा में चुनावों से पूर्व ही यह प्रभाव अवश्य बना हुआ था कि भाजपा की ही सरकार बनेगी। अब चाहे भाजपा राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर अवश्य उभरी है, परन्तु इसके दावों में उतना दम दिखाई नहीं देता। इसी तरह महाराष्ट्र में भाजपा को जितनी सीटें वर्ष 2014 के चुनावों में मिली थी, इस बार उसकी सीटों की संख्या कम हो गई है। उसकी सहयोगी पार्टी शिव सेना में ज्यादा उभार आया है। इसके साथ-साथ यह भी अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस तथा नैशनल कांग्रेस पार्टी इन चुनावों में बुरी तरह मात खा जाएंगी, परन्तु इन पार्टियों को मिले जन-समर्थन से भविष्य में इनके आगे बढ़ने की उम्मीद बंधती है। उदाहरण के तौर पर पंजाब में हुए 4 उप-चुनावों में कांग्रेस के पास पहले एक सीट ही थी। परन्तु अब उसकी झोली में 3 सीटें पड़ गई हैं। इनमें से एक सीट पर भाजपा पिछड़ी है और अकालियों की 2 सीटों में से भी एक सीट पर कांग्रेस जीत गई है। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि इस बार जितनी उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मतदाताओं पर जादू चलेगा, वह चल नहीं सका। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। इनमें से एक बड़ा कारण स्थानीय मामलों का है।  चाहे हरियाणा और महाराष्ट्र में कश्मीर से धारा 370 को हटाने का अधिक प्रचार किया गया, परन्तु हरियाणा में जन-समस्याओं ने जन-मानस में अधिक जगह बनाये रखी है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भले ही अपनी सीट जीत गये हैं, परन्तु उनके अधिकतर साथी मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा है। चाहे खट्टर सरकार पर भ्रष्टाचार के दोष नहीं लगे, परन्तु इस सरकार के समय के दौरान हुए जाट आन्दोलन तथा डेरा सिरसा की घटनाओं का असर प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। इसके अलावा किसानों के मामले, छोटे दुकानदारों के तंगी से गुज़रने आदि के मुद्दे भी सामने आये हैं। एक अनुमान के अनुसार हरियाणा का अधिकतर दलित वोट भी खट्टर सरकार के विरोध में भुगता प्रतीत होता है। चाहे भाजपा दोनों राज्यों में अपनी सरकारें बनाने का दावा कर रही है। निकट भविष्य में ऐसा सम्भव भी हो सकता है। परन्तु इसके साथ यह बात भी बड़े रूप में उभर कर सामने आई है कि केन्द्र सरकार का प्रभाव और राज्यों के मामले अपना-अपना प्रभाव रखते हैं। कई बार प्रांतीय मामले इस कद्र हावी हो जाते हैं कि इन पर केन्द्र सरकार की कारगुज़ारी का अधिक असर नहीं पड़ता। इसी बात के आधार पर देखा जा सकता है कि लोकसभा के चुनावों में इन राज्यों में जितनी अच्छी कारगुज़ारी भाजपा की देखने को मिली थी, उसके मुकाबले में अब दोनों राज्यों में कारगुज़ारी काफी सीमा तक निराशाजनक ही रही है। चाहे इन चुनावों का व्यवहारिक रूप में बड़ा अंतर न भी पड़े, तो भी इनसे उभरी जन-मानसिकता का अनुमान तो सहज ही लगाया जा सकता है। इन चुनावों के परिणामों के आधार पर सभी पार्टियों को जहां पुन: आत्म-मंथन करने की आवश्यकता होगी, वहीं ऐसी नीतियों को अपनाने की अधिक ज़रूरत होगी, जो जन-समस्याओं का कोई अच्छा हल निकालने में सक्षम हों। चुनावों के यह परिणाम भविष्य में देश में राजनीतिक बदलाव और विकल्प की सम्भावनाएं भी प्रकट करते हैं। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द