हर्षोल्लास का पर्व है दीपावली

बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश तथा अज्ञान पर ज्ञान की विजय का त्यौहार है दीपावली। त्यौहार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय एकता के जीवन्त प्रतीक होते हैं। इनमें देश के इतिहास का समावेश होता है। त्यौहार बिना जाति, धर्म और भेदभाव के सभी लोग मिलजुल कर मनाते हैं और एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदारी देते हैं। एक दूसरे से मिलने का यह सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं। त्यौहार आपसी कटुता, शत्रुता और बैर भाव को दूर भगाते हैं। दीपावली भी एक ऐसा ही त्यौहर है जो हमें समता, समानता और भाईचारे का सन्देश देता है। त्यौहार जीवन को प्रेम, बन्धुत्व और शुद्धता से जीने की सीख देता है। मन और चित को शांति प्रदान करता है और हमारे अन्दर की बुराइयों को अन्तर्मन से बाहर निकाल कर अच्छाइयों को ग्रहण करने की ताकत प्रदान करता है। चौदह साल का बनवास काटकर भगवान राम जब अयोध्या लौटे तब वहाँ के निवासियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर उनका स्वागत किया। भारत में सभी धर्मों और वर्गों के लोग यह त्यौहार मिलजुल कर मनाते हैं। दीपावली का शाब्दिक अर्थ है ‘दीपों की पंक्ति’ या ‘दीपों की माला’। यह पर्व सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, व्यापारिक और ऐतिहासिक महत्व का है। दीपावली को पंच पर्वों का त्यौहार कहा जाता है जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होता है। पंच पर्वों के अन्तर्गत धनतेरस, नरक चतुर्थी, दीपावली, राम-श्याम और भैयादूज सम्मिलित हैं। बुराई पर अच्छाई का प्रतीक यह पर्व अब रश्मि बनता जा रहा है। अच्छी बातें अब केवल वेद वाक्यों, ग्रन्थों, महापुरूषों के आदर्शों और नेताओं के भाषण तक सीमित होकर रह गई हैं। भारत ऋ षि मुनियों, संतों और महापुरुषों की जन्मस्थली है जिन्होंने सदा सर्वदा सद्मार्ग पर चलने की सीख और प्रेरणा देशवासियों को दी। हम धीरे-धीरे इन आदर्शों को आत्मसात करने की बजाय बैर-भाव और शत्रुता को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं।  देश में इस समय जो वातावरण बना हुआ है, उससे बन्धुत्व, प्रेम और समता के स्थान पर अविश्वास, घृणा और बुराई को अधिक बल मिल रहा है। इसके लिए किसी एक को दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा। हम सबको अपनी अन्तर आत्मा में झांक कर विवेचना करनी होगी। जब तक हम अपने अंदर की बुराइयों का त्याग नहीं करेंगे तब तक दीपावली की सीख, प्रेरणा और आदर्शों को आत्मसात करने की बातें थोथी और कागजी होगी।

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