क्या बदलाव की इबारत लिख पाएंगे गांगुली ?

निश्चित रूप से पिछले तीन दशकों में भारत में ऐसा कोई दूसरा क्रिकेटर नहीं हुआ, जिसकी मैदान के बाहर और मैदान के भीतर उतनी ही इज्जत हो, जितनी इज्जत सौरव गांगुली की है। सौरव गांगुली को भारतीय क्रिकेट के एक नये युग का अगुवा माना जाता है।  आज हम जिस भारतीय क्रिकेट टीम को देश और विदेश दोनों ही जगह लगातार खेलते, जीतते और इज्जत पाते देखते हैं, उसकी नींव सौरव गांगुली ने ही अपनी कप्तानी के समय में रखी थी। वह तब तक के सारे भारतीय कप्तानों से भिन्न थे। वह विदेशी कप्तानों और क्रिकेट प्रशासकों से आंख से आंख मिलाकर बात कर सकते थे, वही थे जो लार्ड्स की बालकनी में टी-शर्ट उतारकर उसे परचम की तरह लहरा सकते थे। लेकिन हां, वह यह सब कुछ तभी कर पाये, जब भारतीय टीम को जीतने की आदत लगी और देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी भारतीय टीम प्रतिद्वंदी से बराबरी के साथ खेलने और बोलने लगी। अब जबकि अढ़ाई सालों के प्रतिबंध के बाद एक बार फिर से बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) को बहाल किया गया है और करीब 30 महीनों के बाद यानी जब से जस्टिस आर.एम लोढ़ा ने बीसीसीआई के प्रशासन को भंग किया था, उसके बाद बीसीसीआई का काम प्रशासन सीओए (कमेटी ऑफ  एडमिस्ट्रेस) देखने लगा। अब फि र से पहले की तरह बीसीसीआई अपने अध्यक्ष यानी मुखिया की देखरेख में काम करेगा। ..तो निश्चित रूप से इसके नये मुखिया पर असंख्य उम्मीदों का बोझ रहेगा। सवाल है क्या खिलाड़ियों और अपने चाहने वालों के बीच दादा के नाम से जाने जाने वाले सौरव गांगुली इस बोझ को सहजता से उठा पाएंगे? उनके क्रिकेट कॅरियर को देखें तो बेहिचक कहा जा सकता है, हां! वह न सिर्फ  भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे आक्रामक, सबसे त्वरित निर्णय लेने वाले और अपने खिलाड़ियों के लिए किसी भी हद तक जाकर उनका साथ देने वाले क्रिकेटर के रूप में जाने जाते हैं बल्कि माना जाता है कि भारतीय क्रिकेट टीम में मुकाबले का मनोविज्ञान उन्होंने ही विकसित किया है। इस वजह से एक तरफ  जहां उनसे ये तमाम उम्मीदें की जाती हैं, वहीं यह भी माना जा सकता है कि उन पर इन उम्मीदों का कुछ ज्यादा ही बोझ रहेगा।  यह बोझ इसलिए भी ध्यान खींचने वाला है क्योंकि हम सब जानते हैं कि सौरव गांगुली को महज 10 महीने का समय मिलेगा यानी उनका कार्यकाल सिर्फ  10 महीने का ही होगा। इसके बाद उन्हें कूलिंग पीरियड में जाना होगा यानी 3 साल तक वह बीसीसीआई के मुखिया नहीं बन सकते। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास में जितने भी महान लोग होते हैं, वे बहुत कम समय में ही बहुत बड़े-बड़े काम कर जाते हैं और बहुत बड़ा नाम बना जाते हैं।  सौरव गांगुली से हर स्थिति के बावजूद भी अगर उम्मीदें बंधती हैं तो उसके पीछे बड़ा कारण यही है कि सौरव गांगुली निर्णय लेने में देरी नहीं करते और एक बार उन्हें जो अच्छा लगे उसके लिए कोई समझौता नहीं करते। कहते हैं, ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’। अभी सौरव गांगुली ने सुचारू रूप से कार्यभार ही संभाला है, लेकिन इतने कम समय में उन्होंने जो संकेत दिये हैं, वे काफी बड़े हैं। मसलन उन्होंने साफ  कहा है कि घरेलू क्रिकेट खेलने वाले क्रिकेटरों को भी अच्छा पैसा मिलना चाहिए, जिससे उनकी ज़िंदगी और कॅरियर सुरक्षित रहे। यह सचमुच बड़ा फैसला होगा; क्योंकि भारत के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटरों को तो इतना पैसा मिलता है कि एक सीजन खेल लेने वाला क्रिकेटर भी एक जन्म के लिए सुरक्षित हो जाता है। लेकिन घरेलू खिलाड़ियों को अच्छे पैसे नहीं मिलते और अगर बात महिला क्रिकेटरों की करें तब तो हैरानी की हद तक आश्चर्य होता है कि उन्हें आज भी ए श्रेणी के होटलों में आवास नहीं मिलता, एक्जीक्यूटिव क्लास में हवाई सफ र की सुविधा नहीं मिलती और फीस तो उन्हें कम मिलती ही है।  सौरव गांगुली ने अपने पहले ही निर्णय के संकेत में यह कहा है कि घरेलू क्रिकेटरों को अच्छा पैसा और सुविधाएं मिलनी चाहिए। इससे पता चलता है कि उन्हें आखिरकार उनके साथी क्रिकेटर इतना क्यों प्यार करते हैं? सौरव गांगुली बेहद ईमानदार और सख्त प्रशासक के साथ-साथ सबके हितों का ईमानदारी से ध्यान रखने वाले शख्स के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए वक्त चाहे कितना ही कम क्यों न हो, वह बीसीसीआई मुखिया के तौर पर ऐसी विरासत छोड़ जाएंगे, जो हमेशा मिसाल के तौर पर जानी जायेगी।