विदेशों के प्रति पंजाबी युवाओं का आकर्षण

पंजाब के युवाओं की विदेशों में जाकर पढ़ाई करने व बसने की चाह इस  कदर जोर पकड़ने लगी है कि सरकार के सामने यह एक गंभीर मसला बनता जा रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार अकेले पंजाब प्रांत से ही लगभग 48 हज़ार युवा हायर स्टडी करने के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं। इस समय प्रांत में कुल 16 विश्वविद्यालय, 103 इंजीनियरिंग व 9 मैडिकल कॉलेज स्थापित हैं जिनमें विद्यार्थियों की संख्या हर वर्ष लगातार कम हो रही है। अभिभावक लगभग 28500 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष बच्चों को पढ़ाई के खर्च के रूप में भेज रहे हैं, जोकि पंजाब सरकार के वर्ष 2019-20 के कुल बजट का 19 प्रतिशत बनता है। पंजाब के 3.5 लाख युवा हर साल आइलेट्स एग्जाम पर लगभग 500 करोड़ रुपए खर्च कर रहे हैं। यूएसए, जर्मन, आस्ट्रेलिया, कनाडा सहित कई देश युवाओं की पसंद बने हुए हैं किंतु इन सबमें कनाडा सबकी प्राथमिकता बना हुआ है। इसका कारण यहां की उदार नीतियों सहित पढ़ाई के दौरान जॉब व पीआर की सुविधा मिलना है। पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थी हर सप्ताह 10-20 घंटे काम करके अपने जरूरी ़खर्चे निकाल सकते हैं। पार्ट टाइम जॉब के तौर पर उनके पास कई विकल्प हैं जैसे ड्राइविंग, एग्रीकल्चर वर्क्स, पैट्रोल पंप, स्टोर कीपर, प्लमबिंग आदि। यहां का लाइफ स्टाइल भी बेहतर होने के कारण युवाओं को लुभाता है। इसके साथ ही यहां विदेशी छात्रों के साथ किसी प्रकार का नस्लीय भेद न होना भी कनाडा को उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु एक  बेहतर देश बनाता है। 
  दूसरा बड़ा कारण है पंजाब में हर तरफ पसरा बेलगाम नशे का धंधा। अभिभावक नहीं चाहते कि बेरोज़गारी की समस्या से जूझते उनके बच्चे मानसिक तनाव दूर करने के लिए नशे को अपना लें। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वे कर्ज तक लेने को तैयार हो जाते हैं। पंजाब में बहता नशे का दरिया कहीं उनके बच्चों को अपनी चपेट में न ले ले, इस बात का डर सदैव उन्हें सताता रहता है।  तीसरा कारण है सिस्टम में प्रत्येक स्तर पर फैला भ्नष्टाचार, जिसकी जड़ें इतनी मजबूत हो चुकीं हैं कि किसी भी व्यक्ति  का इससे बच पाना नामुमकिन है। ब़गैर पैसे के लेन-देन के कोई भी काम नहीं होता, यह असहनीय किंतु कटु सत्य है। 75 प्रतिशत लोगों का यह मानना है कि भारत के छोटे राज्यों की बात करें तो भ्रष्टाचार के नाम पर भी पंजाब का नाम ही सबसे पहले स्थान पर आता है। रिश्वत न दे पाने के एवज में काम अधूरा ही रहने दिया जाता है या फिर होता ही नहीं। ऐसे में युवा ऐसी व्यवस्था में कार्य करना पसंद करते हैं जो हर प्रकार से साफ-सुथरी, सुशासित व स्पष्ट हो।
चौथा कारण है युवा पीढ़ी की विदेश में ही बसने की चाहत। पंजाब का मुख्य धंधा कृषि रहा है। किंतु आज की पीढ़ी उसमें अधिक रुचि नहीं दिखाती। जो लोग पैतृक व्यवसाय अपनाकर इसे करते भी हैं वे स्वंय परिश्रम करने के स्थान पर प्रवासी मजदूरों पर अधिक आश्रित रहते हैं। परिणाम स्वरूप लागत की अपेक्षा मुनाफा काफी कम हो जाता है। केवल कृषि पर निर्भरता कृषक को भरपेट भोजन नहीं दे पाती, इसके साथ ही उसे अन्य सहायक धंधे जैसे मधुमक्खी-पालन, मत्स्य-पालन, मुर्गी- पालन आदि भी अपनाने पड़ते हैं। इसलिए अब कृषक वर्ग भी खेती-बाड़ी  की बजाए अपने बच्चों को विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजना अधिक सही समझता है ताकि अच्छा रोजगार पाकर वे वहीं सैटल हो सकें। पंजाब के युवाओं के इतने बड़े स्तर पर विदेशों में जाने या सैटल होने से निश्चय ही सरकार भी सकते में है। देश का पैसा विदेशों में धड़ल्ले से जाना जारी है। पंजाबी युवा स्थानीय विद्यार्थियों की अपेक्षा 5 गुना अधिक पैसा फीस के तौर पर भर रहे हैं, विषय चिंता का होने के साथ-साथ सोच का भी है। आ़िखर इतने दावों के बाद, इतने रोज़गार मेलों के लगने के बाबजूद युवा नौकरी के लिए जगह-जगह धक्के क्यों खाता है? अपनी शैक्षणिक योग्यता से कहीं कम  वेतन पाकर अस्थाई नौकरी करने हेतु क्यों बाध्य है? यह विषय अवश्य ही विचारणीय है, हम सबके लिए भी और सरकार के लिए भी।