पानी के संकट पर पहल ज़रूरी

विश्व के 75 प्रतिशत भाग पर पानी विद्यमान है, फिर भी यहां पर जल संकट दिनाेंदिन बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार भविष्य में दुनियां में, विशेष कर दक्षिण-एशिया में जल संकट बढ़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग एवं अन्य पर्यावरणीय कारकों की वजह से दक्षिण एशिया में पानी के प्रमुख स्रोत हिमालय के ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं जिसके कारण यहां के देशों में पानी की कमी होने लगी है।
वैज्ञानिकों के अनुसार दक्षिण एशिया में 40 प्रतिशत जनसंख्या को आगामी 50 सालों में भीषण जल संकट से जूझना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है ग्लेशियरों से प्रतिवर्ष 86 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी एशिया की विभिन्न नदियों को मिलता है जिनमें चीन की यलो रिवर, भारत की गंगा, पाकिस्तान की इंडस, बांग्लादेश की ब्रह्मपुत्र तथा म्यांमार की इरावडी जैसी बड़ी नदियां शामिल हैं। विगत कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र का तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाने से ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और इसके आकार में कमी आ रही है। वर्ल्डवाइड फंड द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2050 तक इसका आकार तीन चौथाई व सन् 2100 तक आधा रह जाने की आशंका है।
यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इस कारण गंगा और इसकी सहायक नदियों में पानी की कमी हो रही है जिससे इन क्षेत्रों में जल संकट पैदा हो गया है। भारत की मुख्य नदी गंगा का मुख्य स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर प्रति वर्ष 23 मीटर छोटा होता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में कमी आई है। नेपाल में स्थित 3 हजार ग्लेशियर लगातार छोटे हो रहे हैं। यहां की झीलों में भी पानी लगातार कम हो रहा है। किसानों का भी मानना है कि नदियों और झीलों में पानी कम हो रहा है, जिससे सिंचाई में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पानी का मात्र 2.5 प्रतिशत ही स्वच्छ और पीने योग्य है जिसका तीन चौथाई हिस्सा ग्लेशियर के रूप में होने के कारण उपयोग नहीं हो पाता तथा 0.3 प्रतिशत पानी ही नदियों और झीलों के रूप में उपलब्ध है। (अदिति)