अफसोसनाक है कैप्टन द्वारा करतारपुर गलियारे का विरोध

सबसे पहली बात यह कि करतारपुर गलियारा गुरु बाबा नानक की अपनी कृपा के कारण ही खुल रहा है, नहीं तो इस समय जिस तरह के हालात भारत-पाकिस्तान में चल रहे हैं, उनमें भी इस गलियारे का बन जाना एक करिश्मा ही है। इसके पीछे लम्बे समय से सिखों की अरदास खास तौर पर जत्थेदार कुलदीप सिंह वडाला द्वारा शुरू की गई मुहिम को भी याद करना ज़रूरी है। परन्तु जहां इस गलियारे का श्रेय हम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके मित्र नवजोत सिंह सिद्धू को दे रहे हैं, वहीं इस गलियारे के ह़कीकत बनने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी आभारी होना ज़रूरी है। यह गलियारा दो देशों की सरकारों के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षरों के बिना नहीं बन सकता था। नहीं तो जिस तरह के हालात पुलवामा की दुर्घटना के बाद भारत-पाकिस्तान में बन गये हैं और दोनों देशों के जिस तरह आपसी संबंध टूट चुके हैं और प्रत्येक स्तर पर आपसी बातचीत तक बंद है, उन परिस्थितियों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा गलियारे के लिए अपनाया दोस्ती भरा दृष्टिकोण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थन के बिना वास्तविकता में नहीं बदल सकता था। फिर वह भी उस समय जब भारत का समूचा इलैक्ट्रानिक मीडिया और किसी सीमा तक राष्ट्रीय प्रिंट मीडिया खास तौर पर हिन्दी मीडिया और भाजपा के कई नेता भी चीख-चीख कर यह गलियारा बंद करवाने के लिए इस गलियारे के बारे में खाड़कू संगठनों, आतंकवादी कैम्पों, आई.एस.आई., पाकिस्तानी सेना के गुप्त मंसूबों का मसौदा इस तरह खींच रहे हैं जैसे कि पाकिस्तान के साथ अन्य सभी 3323 किलोमीटर लम्बी सीमा तो सील है, सिर्फ यह गलियारा ही भारतीय सेना नहीं सम्भाल सकेगी। परन्तु भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस गलियारे के ़िखलाफ एक शब्द न बोलना और बल्कि इसको मुकम्मल करवाना एक सराहनीय कदम है।
कैप्टन पर अफसोस
यहां इतिहास की एक घटना का उल्लेख करना ज़रूरी है। कुरान में अल्ला के 99 नाम लिखे गये हैं, जिनमें एक ‘हक’ भी है। महान स़ूफी दार्शनिक दरवेश शहीद मंसूर ने नारा लगाया अन-अल-हक अर्थात् मैं खुदा हूं। यह नारा इस्लाम के पैरोकारों के लिए एक बड़ा ‘क़ुफर’ बन गया था। ब़गदाद में हकूमत मुसलमानों की थी। मंसूर इस्लाम के कयामत के सिद्धांत का विरोध भी करते थे। ब़गदाद के खलीफे के आदेशों पर मंसूर को गिरफ्तार कर लिया गया। नौ महीने उन पर ऐसे-ऐसे जुल्म किये गये कि पढ़ते भी रूह कांप जाती है। उनको कत्ल किये जाने से पहले अन्यों को उनकी हालत से सबक सिखाने के इरादे से ब़गदाद की सड़कों पर घुमाया गया और आदेश दिया गया, जो भी मंसूर देखे उसको पत्थर अवश्य मारे। अचानक एक स्थान पर उस समय का एक और बड़ा विद्वान और दार्शनिक शिबली जो मंसूर के मित्र भी थे, मंसूर के रास्ते में आ गये। शिबली ने खलीफा के सिपाहियों को दिखाने के लिए कि उन्होंने खलीफा के आदेशों का पालन किया, पत्थर की बजाय मंसूर की तरफ एक फूल उछाल दिया। मंसूर जो पत्थर-दर-पत्थर खाकर भी ‘अन-अल-हक’ के अलावा कुछ नहीं कह रहे थे। शिबली द्वारा मारे फूल को देख कर उनकी रूह कांप गई। मंसूर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे और कहा, शिबली आपने यह क्या किया। तुम जा तो हकूमत के खिदमतगार बनते या फिर मेरे मित्र। यदि तुम्हारे लिए हकूमत का आदेश सही था, तो तुम भी मुझे पत्थर मारते, परन्तु यदि तुम मेरे मित्र थे और मेरा नारा ठीक था तो हकूमत के डर से पत्थर का भ्रम डालने के लिए फूल भी नहीं मारते। तुम्हारे जैसे विद्वान से मुझे यह उम्मीद नहीं थी। सच कहूं यह कहानी मुझे क्यों याद आई? वह इसलिए क्योंकि मुझे भी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से करतारपुर गलियारे के बारे में ऐसे बयान की उम्मीद नहीं थी। हमने कैप्टन को हमेशा ही सिखप्रस्त माना और देखा है। उनके द्वारा आप्रेशन ब्लू स्टार के समय दिया इस्तीफा, आप्रेशन ब्लैक थंडर के समय निभाई भूमिका और पंजाब के हितों के लिए कई बार लिये स्टैंड के कारण उनके कांग्रेसी होने के बावजूद उनको एक ‘अपेक्षित’ अच्छा सिख नेता भी माना जाता रहा है। परन्तु हैरानी की बात है कि इस समय कैप्टन साहिब के बयान शिबली के फूल से ज्यादा पीड़ा दे रहे हैं ‘सिख मानसिकता’ को। कोई कैप्टन साहिब से पूछे कि जब भारत के गृह मंत्री अमित शाह ट्विट कर रहे हैं कि जब हम श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व मना रहे हैं, उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाखों लोगों के सपने का एहसास करके यह करतारपुर गलियारा खोल रहे हैं, तो भारत के गृह मंत्री जिनके पास रॉ तथा ए.एन.आई. के साथ-साथ पता नहीं और कितनी गुप्तचर एजेंसियां हैं, को पता नहीं पाकिस्तान के इरादे क्या हैं? कैप्टन साहिब हमें पता है कि आप गुरु साहिब के सच्चे उपासक हैं, परन्तु यह क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो? भारत के प्रधानमंत्री और भारत सरकार से ज्यादा साधन पंजाब सरकार और आपके पास नहीं है। उनके पास गुप्तचर  एजेंसियां, टोही उपग्रह आदि भी हैं, इसलिए यह नहीं हो सकता कि आपको उनसे अधिक पता हो, परन्तु प्रधानमंत्री तो स्वयं उद्घाटन कर रहे हैं। भगवान के लिए करतारपुर गलियारे को ‘कड़वी मिठाई’ कह कर राजनीतिक खुदकुशी की और न चलें, बल्कि इस गलियारे के रास्ते की हर मुश्किल मजबूरीवश नहीं, बल्कि खुशी से दूर करें। गुरु आप पर हमेशा मेहरबान रहा है तथा और मेहरबान होगा। 
प्रधानमंत्री का फैसला 
हालांकि यूरोपियन यूनियन बनने का करिश्मा यूरोपियन देशों में व्यापारिक समझौतों और मुक्त व्यापार के कारण ही हुआ था। इसलिए हम आर.सी.ई.पी. (रिज़नल कांप्रीहैंसिव इक्नोमिक पार्टनरशिप) जिसमें आस्ट्रेलिया, चीन, न्यूज़ीलैंड, जापान जैसे देशों के अलावा दक्षिण कोरिया, मलेशिया, बुरनेई, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम आदि शामिल हैं, के साथ मुक्त व्यापार समझौते में शामिल होना इन देशों में भी यूरोपियन यूनियन जैसी किसी यूनियन की बनने की तरफ पहला कदम उठाना साबित हो सकता है। ऐसी बात क्षेत्र में शांति और खुशहाली का प्रतीक भी बन सकती है। भारत के इसमें शामिल होने पर प्रत्येक को खुशी होगी, परन्तु कोई भी समझौता किसी भी कीमत पर अपने देश की बर्बादी पर हस्ताक्षर करने के लिए नहीं किया जा सकता। हालांकि यह आसार दिखाई दे रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी थाईलैंड में इस समझौते पर हस्ताक्षर कर ही देंगे, परन्तु हैरानीजनक खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री ने बिल्कुल अंतिम समय ही सही अपने लोगों की आवाज़ सुनी और उस समय समझौता भारतीय हितों के अनुकूल न होने की बात कह कर हस्ताक्षर नहीं किये। जब अन्य सभी 15 देश इसके लिए तैयार हो चुके थे। अब शेष देश भारत की चिंताएं दूर करने की सोच के रास्ते पर चले पड़े हैं। 
हमारी जानकारी के अनुसार भारत के अधिकतर प्रमुख नौकरशाह यह समझौता करने के पक्ष में थे, परन्तु बिल्कुल अंतिम समय प्रधानमंत्री के समझौते से पीछे हट जाने के पीछे सिर्फ कांग्रेस का विरोध नहीं था, बल्कि एक तरफ समूचे देश के किसानों का विरोध, दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संगठनों का विरोध और गुजरात से संबंधित अमूल डेयरी द्वारा प्रधानमंत्री को सचेत करना कि इस समझौते से हम तो पूरी तरह बर्बाद ही हो जाएंगे, जैसे कई कारण थे। 

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