भारत का पहला डे-नाईट टेस्ट मैच   क्या गुल खिलायेगी ओस से भीगी पिंक बॉल ?

टी-20 में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। लगभग हर क्रिकेट खेलने वाले देश में टी-20 लीग आयोजित की जा रही हैं। ऐसे में टेस्ट क्रिकेट को बचाए रखने के लिए आईसीसी को कुछ तड़का डालने की आवश्यकता थी, इसलिए अपने विभिन्न सदस्यों के साथ मिलकर वह डे-नाईट टेस्ट के आयोजन पर बल देने लगी, खासकर इसलिए कि उन क्रिकेट प्रेमियों को खेल देखने का अवसर मिल जाये जो दिन दफ्तर में गुजारने के बाद शाम में कुछ मनोरंजन के पल चाहते हैं। इस पृष्ठभूमि में पहला डे-नाईट टेस्ट 2015 में 27 नवम्बर से 1 दिसम्बर तक खेला गया। एडिलेड ओवल में खेले गये इस रोमांचक मैच में ऑस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड पर तीन विकेट से जीत दर्ज की। यह लो-स्कोरिंग मैच था। घास से भरी पिच पर तेज गेंदबाजों का बोलबाला रहा, खासकर दिन छुपने के बाद। यह मैच तीन दिन तक चला और इसे देखने के लिए स्टेडियम में दर्शकों की अच्छी संख्या पहुंची, जिससे यह संकेत मिला कि इस विचार का समय आ गया है और डे-नाईट मैच टेस्ट क्रिकेट का अटूट हिस्सा बन जायेंगे। हाल ही में रांची में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच श्रृंखला का तीसरा टेस्ट हुआ। यह आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप का मैच था और भारत ने बहुत शानदार प्रदर्शन भी किया, लेकिन इसके बावजूद भारत की रिकॉर्ड जीत को देखने के लिए दर्शकों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी। 
इससे निराश हुए कप्तान विराट कोहली ने कहा कि टेस्ट मैचों के सेंटर स्थाई व बड़े शहरों में होने चाहिए। टेस्टों में दिलचस्पी बढ़ाने के लिए आखिरकार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने भी वर्षों की न नुकर के बाद डे-नाईट टेस्ट आयोजित करने का निर्णय लिया। भारत का पहला डे-नाईट टेस्ट बांग्लादेश के विरुद्ध 22 से 26 नवम्बर तक ईडन गार्डन, कोलकाता में खेला जायेगा। भारतीय टेस्ट टीम में कुछ खिलाड़ी हैं- चेतेश्वर पुजारा, मयंक अग्रवाल, ऋषभ पंत, कुलदीप यादव, मुहम्मद शमी व ऋिद्धिमान साहा- जिनको फर्स्ट क्लास या क्लब गेम्स में गुलाबी या पिंक गेंद से डे-नाईट क्रिकेट खेलने का अनुभव है। गेंद का अंतिम रंग चयन करने से पहले पिंक के 16 शेड ट्राई किये गये थे। सवाल यह था कि पिंक बॉल खेल के दौरान किस तरह बर्ताव करती है? इस गेंद के अनुभवी जयदेव उनाद्कट का कहना है, ‘नई गेंद 4-5 ओवर तक स्विंग करती है, बस। जब वह पुरानी हो जाती है तो स्पिन या सीम या रिवर्स स्विंग के नाम पर कुछ नहीं होता है। गेंद दस ओवर के बाद ‘मर’ जाती है।‘ एक अन्य अनुभवी खिलाड़ी फैज फजल का कहना है, ‘गेंदबाजों के लिए कुछ भी नहीं था। भारतीय विकेटों पर अगर आप तेज गेंदबाजों के पहले स्पेल को निकाल देते हैं तो कोई टीम वापसी नहीं कर पाती है। आप बस बड़े बड़े शतक लगाते रहते हैं। दस ओवर के बाद गेंद पर सीम नहीं रहती।’लेकिन दिलचस्प यह है कि पिंक बॉल से जो अब तक 11 डे-नाईट टेस्ट खेले गये हैं (जिनमें से सबसे ज्यादा यानी तीन एडिलेड ओवल में आयोजित हुए) उन सभी में नतीजे निकले हैं। तो ऐसा क्यों? शायद इसका जवाब चेतेश्वर पुजारा के इस बयान से मिल जाये, ‘लाइट्स में सबसे कठिन सत्र तीसरा होता है। गेंद मूव करने लगी, वह तेजी से आने लगी। तीसरा सत्र बहुत कठिन हो गया। जब मैं स्पिनर्स का सामना कर रहा था तो लाइट्स में गुगली को पिक करना भी बहुत कठिन हो गया था।’यहां यह प्रश्न भी प्रासंगिक है कि गेंद का रंग पिंक ही क्यों रखा गया? पीली व फ्लोरोसेंट ऑरेंज रंग की गेंदों से अनेक प्रयोग करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि टीवी कैमरा गेंद को पिक नहीं कर पा रहे थे और वह आंखों के लिए भार थीं। पिंक गेंद की बाहरी सीम पहले हरी थी, लेकिन खिलाड़ियों से मिली फीडबैक के बाद अधिकारियों ने ब्लैक सीम का निर्णय लिया। पिंक बॉल में भी लाल व सफेद गेंदों की तरह कॉर्क, रबर व वूल होती हैं। लेकिन मुख्य अंतर यह है कि लाल गेंद की तरह पिंक बॉल को ग्रीस में डुबोया नहीं जाता। ग्रीस की वजह से गेंद के अंदर पानी नहीं जा पाता है। पिंक बॉल पर ग्रीस इसलिए नहीं लगाई जाती क्योंकि फिर उसे देख पाना मुश्किल हो जाता है।पिंक बॉल पहले 10 या 15 ओवर में बहुत अधिक स्विंग करती है, लेकिन एक बार सीम के मुलायम हो जाने पर बल्लेबाजों के लिए आसानी हो जाती है। रिवर्स स्विंग तो होती ही नहीं है और स्पिनर्स को भी अधिक टर्न नहीं मिलती है। इसलिए गेंद व बल्ले में संतुलन बनाये रखने के लिए क्यूरेटर्स पिच पर अधिक घास छोड़ देते हैं। 2015 के एडिलेड टेस्ट में 11 एमएम घास थी! इसलिए गेंदबाजों का ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में अधिक दबदबा रहा है। मार्च 2018 में इंग्लैंड की टीम महज 20.4 ओवर में मात्र 58 रन पर आउट हो गयी थी, ट्रेंट बोल्ट ने 32 रन देकर 6 विकेट लिए और टिम साउदी ने 25 रन देकर चार विकेट लिए। उस पारी में किसी अन्य गेंदबाज ने गेंदबाजी नहीं की। लेकिन एशियाई स्थितियों जैसे दुबई में बल्लेबाजों की बल्ले बल्ले हुई, जैसे 2016 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध अजहर अली ने 302 नाबाद रन बनाये।अब तक के सभी 11 डे-नाईट टेस्ट पर सरसरी निगाह डालने से एक दिलचस्प तस्वीर सामने आती है। मध्य सत्र के अंतिम 45 मिनट में गेंदबाजों का दबदबा रहा है। बल्लेबाजों के लिए धुंधलके की चुनौती कठिन रही है क्योंकि ठंडे मौसम में विकेट में जान आ जाती है और पिंक बॉल को स्पॉट करना मुश्किल हो जाता है। भारत में पहला डे-नाईट टेस्ट उस समय (22-26 नवम्बर) होगा जब ठंड आ चुकी होगी, जिसका अर्थ है कि सूरज के डूबने के बाद ओस मुद्दा बन जायेगी, जो पूर्वी भारत में लगभग 4:15 पर पड़नी शुरू हो जाती है। ओस में डूबी पिंक एसजी बॉल उस समय क्या गुल खिलायेगी? यह प्रश्न हर किसी की जबान पर है, जिसका उत्तर ईडन गार्डन में ही मिलेगा।